करवा चौथ की कहानी।karva chauth ki kahani(katha).

करवा चौथ का व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है करवा चौथ को सबसे बड़ी चौथ माना गया है। इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत करती है और करवा चौथ की कहानी सुनती है। यह व्रत स्त्रियों का सर्वाधिक प्रिय व्रत है इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां पति के स्वास्थ्य, दीर्घायु एवं मंगल कामना करती हैं। कुंवारी कन्याये सुंदर, सुशील और अच्छे वर की प्राप्ति के लिए करवा चौथ का व्रत करती हैं यह व्रत सौभाग्य और शुभ संतान देने वाला है।

करवा चौथ के व्रत को करने वाली स्त्रियां सुबह स्नान आदि के बाद आचमन करके पति, पुत्र आदि के सुख सौभाग्य का संकल्प लेकर यह व्रत करती है करवा चौथ के व्रत में चौथ माता, गणेश जी महाराज, शिव-पार्वती और श्री कार्तिकेय जी के साथ चंद्रमा का भी पूजन किया जाता है और करवा चौथ की कहानी सुनी जाती है। इस दिन करवा चौथ की कहानी या करवा चौथ की कथा सुनने से चौथ माता प्रसन्न होकर व्रत का पूर्ण फल प्रदान करती है।

करवा चौथ को सभी चौथ में से सबसे बड़ी माना जाता है इस दिन करवा चौथ की कथा के साथ बिंदायक जी की कथा भी सुनी जाती है यहां व्रत के दिन सुनी जाने वाली करवा चौथ की कहानी (karva chauth ki kahani) दी गई है तो आइए जानते हैं करवा चौथ व्रत कथा (karva chauth vrat katha)

करवा चौथ की कहानी।karva chauth ki kahani.

करवा चौथ की कहानी।karva chauth ki kahani, karva chauth ki katha
करवा चौथ की कहानी

करवा चौथ की कहानी – एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। सातों भाई अपनी बहन के साथ रहकर खाना खाते थे कार्तिक माह में करवा चौथ आई। भाई अपनी बहन से बोले आ बहन खाना खा लेते हैं। बहन बोली आज तो मेरा करवा चौथ का व्रत है इसलिए चांद देखकर ही खाना खाऊंगी। भाइयों ने सोचा आज तो हमारी बहन भूखी रह जाएगी इसलिए एक भाई दीया(टोर्च) लाया, एक भाई चलनी लेकर टीले पर चढ़ गया और दीया जलाकर चलनी से ढककर चलनी में चांद दिखा दिया। भाई बोले बहन चांद उग गया , अरख दे ले ।

बहन बोली , आओ भाभियों चांद देखकर अरख दे लो । भाभियाँ बोली कि ननद जी अभी तो आपका ही चाँद उगा है । हमारा तो रात को उगेगा । बहन अरख देकर भाइयों के साथ जीमने बैठी । पहले ग्रास में बाल आया , दूसरे में छींक आई और तीसरा ग्रास तोड़ते ही ससुराल से बुलावा आ गया । वो कपड़े निकालने लगी तो सारे कपड़े ही सफेद निकलते । माँ बोली , तेरे भाग्य में जो लिखा है वहीं होगा । माँ ने उसे सफेद कपड़े ही पहना दिये और हाथ में सोने का रुपया दिया और कहा जो तुझे पूरा आशीर्वाद दे , उसे यह सोने का रुपया दे देना और पल्ले को मोड़कर गांठ दे देना ।

रास्ते में सब औरतें ‘भाइयों का सुख देखना’ कि आशीष देती गई लेकिन किसी ने भी सुहाग का आशीष नहीं दिया वो आगे गई तो उसे पूरा आशीर्वाद किसी ने नहीं दिया । एक छोटी – सी ननद पालने में सो रही थी वो बोली , ” सीली हो सपूती हो सात पूत की माँ हो , थारा अमर सुहाग हो । तो” उसने सोने का रुपया ननद को देकर पल्ले के गाँठ बाँध ली । घर में गई तो रोना कूटना लगा था । उसका पति मर चुका था , वो बोली , मैं तो अपने पति को जलाने नहीं दूंगी । मेरे लिए तो अलग झोपड़ी बनवा दो मैं भी इनके साथ जंगल में रहूँगी ।

उसकी सास रोजाना बची-खुची, ठंडी बासी रोटी भेज देती और कहती जा मुर्दा सेवणी को रोटी दे आ। ननद रोज उसको जंगल में ही खाना दे आती । अब गाजती धोरती माही चौथ आई । करवा ले, सात भाइयों की प्यारी करवा ले, दिन में चाँद ऊगानी करवा ले, बहुत भूखी करवा ले । वह बोली माता वो मेरे पिछले जन्म के दुश्मन थे तुझे मेरा सुहाग देना पड़ेगा । मेरे से बड़ी बैशाख की चौथ आएगी उसके पैर पकड़ लेना ।

बैशाख की चौथ आई , उसके पैर पकड़ लिए तो चौथ माता बोली , छोड़ पापिन मेरे पाँव । वो बोली , माता वो मेरे भाई नहीं थे पिछले के जन्म के बैरी , दुश्मन थे । आपको तो मेरा सुहाग देना ही पड़ेगा । मुझसे बड़ी भादवें की चौथ आएगी उसके पाँव मत छोड़ना , अगर उसके पाँव छोड़ दिए तो तुझे कहीं जगह नहीं है । भादवें की चौथ आई ‘ करवा ले, भाइयों की प्यारी करवा ले , दिन में चाँद उगानी करवा ले , बहुत भूखी करवा ले । ‘ उसने माता के पैर पकड़ लिए , तब चौथ माता बोली छोड़ पापिन ! मेरे पैर पकड़ने लायक नहीं है ।

वो बोली कि – हे माता ! वो मेरे भाई नहीं पिछले जन्म के दुश्मन थे । आपको बताना पड़ेगा , मैं क्या करूँ । माता बोली , तुझे इतनी शिक्षा कौन दे गया । माता मुझे किसी ने कुछ नहीं बताया , आप ही बताओ मैं है क्या करूं । तब माता बोली , मेरे से बड़ी करवा चौथ आएगी उसके पाँव मत छोड़ना । वो जो मांगे वो बस सामान मंगा लेना। बेस और सारे सुहाग का सामान मंगा लेना । दूसरे दिन ननद रोटी देने आई तो वो बोली , ननद जी काजल , मेंहदी बिन्दी , रोली , मोली , सारा सुहाग का सामान लाना और बेस भी लाना। ननद ने एक – एक करके सारा सामान ला दिया ।

कार्तिक की करवा चौथ आई , करवा ले करवा ले दिन में चाँद देखनी करवा ले , बहुत भूखी करवा ले । वो बोली, माता वे मेरे पिछले जन्म के दुश्मन थे और ये कहकर उसने माता के पैर पकड़ लिए , छोड़ पापिन मेरे पाँव , तू मेरे पाँव पकड़ने लायक नहीं है । माता आपको मेरा सुहाग देना पड़ेगा । तेरे पास जंगल में सुहाग की क्या चीज है । वो बोली , माता आप मांगो वो सभी है । माता बोली , रोली , मोली , सठेली , गठेली , पताशा , गेहूँ , करवा , जलेबी ला , उसने सभी चीजें निकालकर दे दी ।

माता बोली , तुझे ये ज्ञान कहाँ से आया । हे माता ! मुझे जंगल में ये ज्ञान कौन देगा । मुझे तो सारा ज्ञान आपने ही दिया है । माता ने सारी सुहाग की चीजों को घोलकर छींटा दे दिया तो उसका पति अकड़कर बैठ गया और जाते हुए माता ने झोपड़ी को लात मारी तो महल हो गए । सुबह ननद खाना देने आई तो वो बोली , मेरे भाई – भाभी कहाँ गए । भाभी ने ऊपर से आवाज लगाई , ननदजी आओ । हम तो यहाँ बैठे हैं । ननद ने पूछा , भाभी ये सब कैसे हुआ ।

भाभी बोली , रात में चौथ माता आई थीं वो ही ये कर गई हैं । जाओ ननद ,  माताजी को बोलो कि पुरानी चौथ का उजलवाओं और नई घड़ाओं और हमें गीत गाते लेने आओ । ननद माँ को जाकर बोली , माँ भाभी ने तो भाई को जिन्दा करवा दिया और भाभी बोलती है कि उनको गीत गाते हुए लेने चलो । सासू गीत गाती बहू को लेने गई , बहू सास के पैरों में पड़ी और कहने लगी कि यह तो आपके भाग्य से ही हुआ है , सासू कहने लगी कि नहीं यह तो आपके भाग्य से ही सही हुए हैं ।

सासू बोली , बहू घर चलो और चौथ माता का उजमन करके सास बहू – बेटे को घर लेकर आ गई। जैसे माता ने साहूकार की बेटी को सुहाग दिया वैसे माता सबको देना । करवा चौथ की कहानी कहते को, सुनते को, हुँकारा भरते को सबको देना।

यह थी करवा चौथ की कहानी (करवा चौथ की कथा)। आशा हैं कि आपको करवा चौथ की कहानी पसंद आई होगी धन्यवाद।

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होलिका दहन की कहानी।holika dahan ki kahani.

होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के त्योहार के रूप में मनाया जाता है और होलिका दहन की कहानी सुनते है। सनातन धर्म में होली का पर्व का अपना एक विशेष महत्व है होली का पर्व फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है होली 2 दिनों तक मनाई जाती है इस दिन लोग आपस मे दुश्मनी को भूलाकर आपस में गले मिलते हैं तथा एक दूसरे को रंग व गुलाल लगाते हैं।

होली का पर्व भाईचारे का पर्व है इस दिन लोग बुरा नहीं मानते हैं। होली के लिए एक कहावत भी प्रसिद्ध है कि “बुरा न मानो होली है”। होली मुख्यतः दो दिनों का पर्व होता है लेकिन होली की तैयारियां होलाष्टक लगने के साथ ही शुरू हो जाती हैं। होलाष्टक होली से आठ दिन पहले लग जाते हैं और आठवें दिन होली मनाई जाती है। होली से एक रात पहले होलिका दहन किया जाता है यहां इस पर्व से जुड़ी होलिका दहन की कहानी दी गई है

होलिका दहन की कहानी।holika dahan ki kahani.

होलिका दहन की कहानी।holika dahan ki kahani.
होलिका दहन की कहानी।holika dahan ki kahani.

होलिका दहन की कहानी – पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्यकशिपु असुर जाति का अत्याचारी और निर्दयी राजा था। उसके अत्याचार के कारण वहां की प्रजा भी बहुत दुखी थी।

हिरण्यकशिपु को भगवान से वरदान मिला था की कि कोई नहीं मार सकता है। इसी के घमंड में अँधा होकर उसने स्वयं को भगवान मान लिया और अपनी प्रजा को भी अपनी पूजा करने के लिए विवश किया।

हिरण्यकशिपु के पुत्र का नाम प्रहलाद था। वहा भगवान् विष्णु का बहुत बड़ा उपासक था। प्रह्लाद अपने पिता द्वारा स्वय को भगवान मानने की बात का विरोध किया करता था, जिसके कारण हिरण्यकशिपु क्रोधित हो जाता था।

प्रहलाद अपने पिता को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए कहता और भगवान विष्णु की भक्ति करने के लिए बोलता था। मगर हिरण्यकशिपु को अहंकार और शक्ति का इतना घमंड हो गया की वह खुद को भगवान मानता था।

हिरण्यकशिपु को जब पता चला की उसका पुत्र प्रहलाद दिन रात भगवान् विष्णु की आरधना करता है। अपने पिता की नहीं तब उसे इतना क्रोध आया की उसने प्रहलाद को मरने के लिए कई षड्यंत्र रचे मगर वह असफल रहा। अंत में उसे अपनी बहन होलिका की याद आई।

होलिका को वरदान मिला था की वहा आग में नहीं जल सकती है। इसी का फायदा उठा कर उसने प्रहलाद को आग में जलने की चाल चली और अपनी बहन के पास गया और उसको बोला की तुम प्रहलाद गोद में लेकर आग में बैठ जाना।

तब होलिका हिरण्यकशिपु के कहे अनुसार प्रहलाद को गोद में लेकर लकडियो में ढेर पर बैठ गयी। मगर प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था तो उसे भला क्या हो सकता था। उल्टा होलिका अपने वरदान में मिली आग में ही जल कर राख हो गयी और भगवान् विष्णु ने अपने भक्त प्रहलाद को बचा लिया। इसी घटना को हम सब होली के दिन यानि होलिका दहन के रूप में मनाते है।

इसके बाद भगवान् विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु का भी अंत कर उसके आतंक से सबको मुक्त किया और हिरण्यकशिपु को उसके बुरे कर्मो की सजा मिली। इस तरह धर्म की अधर्म पर विजय हुई।

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होलिका दहन की कहानी।holika dahan ki kahani.

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Holika Dahan katha in Hindi

होली पर राधा कृष्ण से जुड़ी होलिका दहन की कहानी (holi ki kahani)

होली का पर्व को रंगो के त्यौहार के रूप में श्री कृष्ण और राधा के प्रेम की यादों के रूप में मनाया जाता है मान्यताएं हैं कि बचपन में जब श्री कृष्ण छोटे थे तो उन्होंने यशोदा से कहा कि वह राधा के समान गोरे क्यों नहीं है तब माता ने मजाक में ही कहा कि यदि तुम राधा के रंग लगाते हो तो वह भी तुम्हारी तरह ही हो जाएगी।

तब श्रीकृष्ण जी ने होली के दिन राधा जी को और गोपियों को रंग लगाया तभी से होली को रंगो के त्योहार के रूप में जाना जाने लगा। राधा कृष्ण के प्रेम से जुड़े स्थान बरसाना व मथुरा की होली विश्व प्रसिद्ध है।

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संकेत बिंदु – वर्ष प्रतिपदा

  • नव वर्ष का आरम्भ
  • विक्रम संवत् के आरम्भकर्ता
  • ऐतिहासिक दृष्टि से विक्रम संवत्
  • विक्रम संवत् मनाने के अनेक ढंग
  • उपसंहार ।

नव वर्ष का आरम्भ

भारत का सर्वमान्य संवत् विक्रम संवत् है । विक्रम संवत् के अनुसार नव वर्ष का आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है । ब्रह्मपुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का आरम्भ हुआ था और इसी दिन से भारतवर्ष में कालगणना आरम्भ हुई थी ।

चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि ।

शुक्ल पक्षे समग्रे तु सदा सूर्योदये सति ॥

यही कारण है कि ज्योतिष में ग्रह , ऋतु , मास , तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही होती है ।

विक्रम संवत् के आरम्भकर्ता

चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वसन्त ऋतु में आती है । वसन्त में प्राणियों को ही नहीं , वृक्ष , लता आदि को भी आह्लादित करने वाला मधुरस प्रकृति से प्राप्त होता है । इतना ही नहीं वसन्त समस्त चराचर को प्रेमाविष्ट करके , समूची धरती को पुष्पाभरण से अलंकृत करके मानव – चित्त की कोमल वृत्तियों को जागरित करता है । इस ‘ सर्वप्रिये चारुतरं वसन्ते ‘ में संवत्सर का आरम्भ ‘ सोने में सुहागा ‘ को चरितार्थ करता है । हिन्दू मन में नव वर्ष के उमंग , उल्लास , मादकता को दुगना कर देता है ।

विक्रम संवत् सूर्य सिद्धान्त पर चलता है । ज्योतिषियों के अनुसार सूर्य सिद्धान्त का मान ही भ्रमहीन एवं सर्वश्रेष्ठ है । सृष्टि संवत् के प्रारम्भ से यदि आज तक का गणित किया जाए तो सूर्य सिद्धान्त के अनुसार एक दिन का भी अन्तर नहीं पड़ता ।

पराक्रमी महावीर विक्रमादिव्य का जन्म अवन्ति देश की प्राचीन नगरी उज्जयिनी में हुआ था । पिता महेन्द्रादित्य गणनायक थे और माता मलयवती थीं । इस दम्पती को पुत्र प्राप्ति के लिए अनेक व्रत और तप करने पड़े । शिव की नियमित उपासना और आराधना से उन्हें पुत्ररत्न मिला था । इसका नाम विक्रमादित्य रखा गया । विक्रम के युवावस्था में प्रवेश करते ही पिता ने राज्य का कार्य भार उसे सौंप दिया ।

राज्यकार्य संभालते ही विक्रमादित्य को शकों के विरुद्ध अनेक तथा बहुविध युद्धों में उलझ जाना पड़ा । उसने सबसे पहले उज्जयिनी और आस – पास के क्षेत्रों में फैले शकों के आतंक को समाप्त किया । सारे देश में से शकों के उन्मूलन से पूर्व विक्रम ने मानव गणतन्त्र का फिर संगठन किया और उसे अत्यधिक बलशाली बनाया और वहाँ से शकों का समूलोच्छेद किया । जिस शक्ति का विक्रम ने संगठन किया था , उसका प्रयोग उसने देश के शेष भागों में से शक- सत्ता को समाप्त करने में लगाया और उसकी सेनाएं दिग्विजय के लिए निकल पड़ीं । ऐसे वर्णन उपलब्ध होते हैं कि शकों का नाम – निशान मिटा देने वाले इस महापराक्रमी वीर के घोड़े तीनों समुद्रों में पानी पीते थे । इस दिग्विजयी मालवगण नायक विक्रमादित्य की भयंकर लड़ाई सिंध नदी के आस – पास करूर नामक स्थान पर हुई । शकों के लिए यह इतनी बड़ी पराजय थी कि कश्मीर सहित सारा उत्तरापथ विक्रम के अधीन हो गया ।

ऐतिहासिक दृष्टि से विक्रम संवत्

ऐतिहासिक दृष्टि से यह सत्य है कि शकों का उन्मूलन करने और उन पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में विक्रम संवत् आरम्भ किया गया था जो कि इस समय की गणना के अनुसार ईस्वी सन् से ५७ वर्ष पहले शुरू होता है । इस महान् विजय के उपलक्ष्य में मुद्राएँ भी जारी की गई थीं , जिनके एक और सूर्य था , दूसरी ओर ‘ मालवगणस्य जयः ‘ लिखा हुआ था ।

विदेशी आक्रमणकारियों को समाप्त करने के कारण केवल कृतज्ञतावश उसके नाम से संवत् चलाकर ही जनसाधारण ने वीर विक्रम को याद नहीं रखा , बल्कि दिन – रात प्रजापालन में तत्परता , परदुःख – परायणता , न्यायप्रियता , त्याग , दान , उदारता आदि गुणों के कारण तथा साहित्य और कला के आश्रयदाता के रूप में भी उन्हें स्मरण किया जाता है । यह तो हुई विक्रमादित्य की चर्चा । वर्ष प्रतिपदा के महत्त्व के कुछ अन्य कारण भी हैं

‘ स्मृति कौस्तुभ ‘ के रचनाकार का कहना है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रेवती नक्षत्र के विष्कुम्भ के योग में दिन के समय भगवान् ने मत्स्य रूप अवतार लिया था । ईरानियों में इसी तिथि पर ‘ नौरोज ‘ मनाया जाता है । ( ईरानी वस्तुतः पुराने आर्य ही हैं । )

संवत् 1946 में हिन्दू राष्ट्र के महान् उन्नायक , हिन्दू संगठन के मंत्र द्रष्टा तथा धर्म के संरक्षक परम पूज्य डॉ . केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म वर्ष प्रतिपदा के ही दिन हुआ था । वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक थे । वर्ष प्रतिपदा का पावन दिन संघ शाखाओं में उनका जन्मदिन के रूप में सोल्लास मनाया जाता है । प्रतिपदा 2045 से प्रतिपदा 2046 तक उनकी जन्म शताब्दी मनाकर कृतज्ञ राष्ट्र ने उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की थी ।

विक्रम संवत् मनाने के अनेक ढंग

आंध्र में यह पर्व ‘ उगादि ‘ नाम से मनाया जाता है । उगादि का अर्थ है युग का आरम्भ अथवा ब्रह्मा जी की सृष्टि रचना का प्रथम दिन आंध्रवासियों के लिए यह दीपावली की भाँति हर्षातिरेक का दिन होता है ।

सिंधु प्रान्त में नवसंवत् को चेटी चंडो ( चैत्र का चन्द्र ) नाम से पुकारा जाता है । सिन्धी समाज इस दिन को बड़े हर्ष और समारोहपूर्वक मनाता है ।

काश्मीर में यह पर्व ‘ नौरोज ‘ के नाम से मनाया जाता है । जवाहरलाल जी ने अपनी आत्मकथा ‘ मेरी कहानी ‘ में लिखा है , ‘ काश्मीरियों के कुछ खास त्यौहार भी होते हैं । इनमें सबसे बड़ा नौरोज याने वर्ष प्रतिपदा का त्यौहार है । इस दिन हम लोग नए कपड़े पहनकर बन ठनकर निकलते । घर के बड़े लड़के – लड़कियों को हाथ – खर्च के तौर पर कुछ पैसे मिला करते थे ।

उपसंहार

‘ नव वर्ष मंगलमय हो , सुख समृद्धि का साम्राज्य हो , शांति और शक्ति का संचरण रहे , इसके लिए नव संवत् पर हिन्दुओं में पूजा का विधान है । इस दिन पंचांग का श्रवण और दान का विशेष महत्त्व है । व्रत , कलश स्थापन , जलपात्र का दान , वर्षफल श्रवण , गतवर्ष की घटनाओं का चिंतन तथा आगामी वर्ष के संकल्प , इस पावन दिन के महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम माने जाते हैं । प्रभु से प्रार्थना की जाती है

भगवस्तव प्रसादेन वर्ष क्षेममिहास्तु मे ।

संवत्सरोपसर्गाः मे विलयं यान्त्वशेषतः ॥

( हे प्रभो ! आपकी कृपा से नववर्ष मेरे लिए कल्याणकारी हो तथा वर्ष के सभी विध्न पूर्णतः शान्त हो जाएँ ) हम हिन्दू हैं । हिन्दू धर्म में हमारी आस्था है , श्रद्धा है तो हमें चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को उमंग और उत्साह से नववर्ष मानना और मनाना चाहिए । सम्बन्धियों तथा मित्रों को ‘ ग्रीटिंग कार्ड ‘ भेजना तथा शुभकामना प्रकट करना हमारे स्वभाव का अंग होना चाहिए । इसी से हमारे समाज में पहले से ही विद्यमान परम्परा का निर्वाह करते हुए शुभसंस्कारों का विकास होगा और हमारी भारतीय अस्मिता की रक्षा भी होगी ।

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नारी सशक्तिकरण पर निबंध।women empowerment essay in hindi.

नारी सशक्तिकरण पर निबंध – प्राचीन और अर्वाचीन विचारक नारी को संस्कृति एवं सभ्यता का मेरुदण्ड मानते हैं । विश्व की सभी संस्कृतियों में नारीत्व के प्रति विशेष उदार और उन्नत विचार रखे गये हैं । नारी को शक्ति का महान् भण्डार और परिवार की नींव माना जाता है। चूँकि परिवार समुदाय की नींव है, और समुदाय राष्ट्र की, अतः नारी ही समाज व राष्ट्र की नौका की वास्तविक कर्णधार है ।

परन्तु इन सब के पश्चात् भी वास्तविक रूप में नारी की स्थिति ऐसी नहीं रही है । समय के साथ इसमें अनेक परिवर्तन भी आये हैं । यदि एक समय यह देवी की तरह पूजित हुई है , तो दूसरे समय प्रताड़ित भी हुई है , और समय बदलने के साथ अपने नवीन क्रान्तिकारी रूप में भी आई है ।

सबसे पहिले भारत में भारतीय समाज में महिला उत्पीड़न , यौन हिंसा , घरेलू हिंसा अत्याचार आदर – सम्मान अपमान तथा कानूनी वैधानिक उपचारों ( संरक्षण ) के बारे में आगे विस्तार से चर्चा करने से पूर्व , वर्तमान आज महिला सशक्तिकरण का दौर है , आज महिलाएँ आंगन से लेकर अंतरिक्ष तक पहुंच गई है।

यहाँ महिला सशक्तिकरण पर निबंध(mahila sashaktikaran par nibandh) – महिला सशक्तिकरण , भारत में महिला सशक्तिकरण की क्यों जरूरत है , सशक्तिकरण क्या है । मार्ग में कौनसी बाधाएँ हैं । सुरक्षा के लिए बनाये गये कानूनों की संक्षिप्त जानकारी से अवगत कराना है ।

नारी सशक्तिकरण पर निबंध -200 शब्द। women empowerment essay in hindi.

भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने हेतु सबसे पहले समाज में व्याप्त महिला विरोधी सोच को खत्म करना बहुत जरूरी है। समाज में उपस्थित बुराइयों (दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, बलात्कार, वेश्यावृत्ति, आदि) बहुत से अपराध हैं जिन पर सरकार के द्वारा महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने की जरूरत है।

हमारे देश में महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर अधिकार हैं । वे देश की आधी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करती है तथा विकास में भी आधी भागीदार है । इस बात को कतई नहीं नकारा जा सकता कि आज के आधुनिक युग में महिला पुरुषों के साथ ही नहीं बल्कि उससे दो कदम आगे निकल चुकी है । महिलाओं के बिना दिनचर्या की कल्पना भी नहीं की जा सकती । भारतीय संविधान के अनुसार महिलाओं को भी पुरुषों के समान जीवन जीने का अधिकार है ।

महिलाओं के लिए नियम – कायदे और कानून तो खूब बना दिये हैं किन्तु उन पर हिंसा और अत्याचार की घटनाओं में अभी तक कोई कमी नहीं आयी है । भारत 70 % महिलाएँ किसी न किसी रूप में कभी न कभी हिंसा का शिकार होती रहती है । महिलाओं के साथ बलात्कार हिंसा की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है । देश को आजाद हुये 75 वर्ष बाद भी महिलाएँ अभी तक स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रही हैं ।

जब तक देश के सभी क्षेत्रों में महिलाओं को समान अधिकार नहीं मिलेगा तब तक देश में महिला शक्ति का समुचित उपयोग नहीं हो सकेगा।वैदिक नारी पृथ्वी अदिति , उषा आदि को समाज में गौरव प्राप्त था , क्योंकि यहाँ नारी को माता रूप में ही प्रस्तुत किया गया था । इसीलिए कहा गया था यत्र नार्यास्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता। अर्थात् जहाँ नारियों की पूजा होती है , वहाँ देवताओं का वास होता है।

आज जरूरत है कि देश मे महिलाओं का हर क्षेत्र में सशक्तिकरण किया जाए, जो देश के विकास का आधार बनेंगी।

नारी सशक्तिकरण पर निबंध – 300 शब्द। nari sashaktikaran essay in hindi.

नारी सशक्तिकरण पर निबंध के संकेत बिन्दु- 1. प्रस्तावना 2. शिक्षित नारी का समाज में स्थान 3. शिक्षित नारी आदर्श गृहिणी 4. शिक्षा और स्त्री – सशक्तीकरण 5. उपसंहार

1. प्रस्तावना– हमारे समाज में पुरुष की अपेक्षा नारी को कम महत्त्व दिया जाता है , इस कारण पुरुष को शिक्षा प्राप्त करने का सुअवसर पर्याप्त मिलता है , परन्तु नारी परिवार की परिधि में कभी कन्या , कभी नववधू या पत्नी , कभी माता आदि रूपों में जकड़ी रहती है और उसकी शिक्षा पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता है । प्राचीन काल एवं मध्य काल में नारी शिक्षा की पर्याप्त सुविधाएँ नहीं थीं , परन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद सरकार नारी शिक्षा पर ध्यान दे रही है , फिर भी अभी शिक्षित नारियों का प्रतिशत बहुत ही कम है ।

2. शिक्षित नारी का समाज में स्थान – शिक्षित नारी अपने बौद्धिक विकास और भौतिक व्यक्तित्व का निर्माण करने में सक्षम रहती है । गृहिणी के रूप में वह अपने घर – परिवार का संचालन कुशलता से कर सकती है । वह अपनी सन्तान वीरता , त्याग , उदारता , कर्मठता , सदाचार , अनुशासन आदि के ढाँचे में आसानी से ढाल सकती है ।

सुशिक्षित नारी माँ के रूप में श्रेष्ठ गुरु , पत्नी के रूप में आदर्श गृहिणी , बहिन के रूप में स्नेही मित्र और मार्गदर्शिका होती है । यदि नारी शिक्षित है । तो वह समाज – सेविका , वकील , डॉक्टर , प्रशासनिक अधिकारी , सलाहकार और उद्यमी आदि किसी भी रूप में सामाजिक दायित्व का निर्वाह कर सकती है तथा अपने समाज व देश का अभ्युदय करने में अतीव कल्याणकारिणी और सहयोगिनी बन सकती है ।

3. शिक्षित नारी आदर्श गृहिणी– प्रत्येक आदर्श गृहिणी के लिए सुशिक्षित होना परम आवश्यक है । शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति को कर्तव्य – अकर्त्तव्य एवं अच्छे बुरे का ज्ञान होता है । गुणों और अवगुणों की पहचान भी इसी से होती है । गृहस्थी का भार वहन करने के लिए सुशिक्षित गृहिणी अधिक सक्षम रहती है । वह परिवार की प्रतिष्ठा का ध्यान रखती है , अन्धविश्वासों और ढोंगों से मुक्त रहती है तथा हर प्रकार से और हेर उपाय से अपनी गृहस्थी की सुख – समृद्धशाली बनाने की चेष्टा करती है ।

4. शिक्षा और स्त्री सशक्तीकरण – शिक्षित नारियों से समाज और देश का गौरव बढ़ता है । परन्तु वर्तमान नारियों के अधिकारों का हनन हो रहा है , उनके साथ समानता का व्यवहार नहीं किया जाता है तथा अनेक तरह से शोषण उत्पीड़न किया जाता है । ऐसे में शिक्षित नारी अपने अधिकारों की रक्षा कर सकती है । समाज का हित भी स्त्री – सशक्तीकरण से ही हो सकता है । इसके लिए स्त्री शिक्षा की तथा जन – जागरण की जरूरत है ।

वस्तुतः शिक्षित एवं सशक्त नारी ही घर – परिवार में सन्तुलन बनाये रख सकती है । देश की प्रगति के लिए नारी सशक्तीकरण जरूरी है ।

5. उपसंहार- शिक्षा प्राप्त करके नारी अपने व्यक्तित्व का निर्माण तथा घर परिवार में सुख का संचार करती है । शिक्षित नारी आदर्श गृहिणी , आदर्श माता , आदर्श बहिन और आदर्श सेविका बनकर देश के कल्याण के लिए श्रेष्ठ नागरिकों का निर्माण करती है । इसी कारण ‘ शिक्षित नारी को सुख – समृद्धिकारी ‘ कहा गया है।

उषा मेहता सावित्री बाई फुले का इतिहास और जिवन परिचय।

नारी सशक्तिकरण पर निबंध(nari sashaktikaran par nibandh) – 600 words.

नारी सशक्तिकरण पर निबंध।women empowerment essay in hindi
नारी सशक्तिकरण पर निबंध।women empowerment essay in hindi

नारी सशक्तिकरण पर निबंध संकेत बिन्दु – (1) प्रस्थावना ,(2) महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएँ, (3) भारत में महिला सशक्तिकरण मे सरकार की भूमिका (4) उपसंहार

प्रस्थावना –

भारत के पुरुष प्रधान समाज ने प्राचीन काल से ही नारी को अधीन रखकर उसके विकास के द्वार बंद कर रखे हैं । प्राचीन भारतीय समाज में सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों के साथ – साथ महिलाओं की स्थिति में भी परिवर्तन आता रहता है । भारत में महिलाओं की सामाजिक दशा के सम्बन्ध में भी तो जो तथ्य उपलब्ध हैं उनके अनुसार केवल वैदिक काल को ही महिलाओं के लिए स्वर्णिम काल कहा जाता है । वैदिक युग के बाद ही महिलाओं की सामाजिक स्थिति में गिरावट आने लगी है।

महिलाएं समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। महिलाओं का विकास किसी भी देश के लिए आवश्यक होता है।महिला सशक्तिकरण का अर्थ महिलाओं को सशक्त,मजबूत व आत्मनिर्भर बनाना है। इसके लिए शिक्षा की आवश्यकता है। महिलाएं इतनी सशक्त हो सके कि वह अपने जीवन के महत्वपूर्ण फैसलें स्वयं ले सके।

महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएँ-

( i ) सामाजिक मापदण्ड – पुरानी और रूढ़िवादी विचारधाराओं के कारण भारत में कई सारे क्षेत्रों में महिलाओं के घर छोड़ने पर पाबंदी होती है । इस तरह के क्षेत्रों में महिलाओं को शिक्षा या फिर रोजगार के लिए घर से बाहर जाने के लिए आजादी नहीं होती है । इस तरह के वातावरण में रहने के कारण महिलाएँ खुद को पुरुषों से कमतर समझने लगती हैं और अपने वर्तमान सामाजिक और आर्थिक दशा को बदलने में नाकाम साबित होती है ।

( ii ) कार्यक्षेत्रों में शारीरिक शोषण – कार्यक्षेत्र में होने वाला शोषण भी महिला सशक्तिकरण में एक बड़ी बाधा है । निजी क्षेत्र जैसे कि सेवा उद्योग सॉफ्टवेयर उद्योग , शैक्षिक संस्थाएँ और अस्पताल इस समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं । यह समाज में पुरुष प्रधानता के वर्चस्व के कारण महिलाओं के लिए और भी समस्याएँ उत्पन्न करता है । पिछले कुछ समय में कार्यक्षेत्रों में महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़ने में काफी तेजी से वृद्धि हुई है । पिछले कुछ दशकों में लगभग 17 % वृद्धि देखने को मिली है ।

( iii ) भुगतान में असमानता- भारत में महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों की अपेक्षा कम भुगतान किया जाता है । और असंगठित क्षेत्रों में यह समस्या और भी ज्यादा दयनीय है , खास तौर से दिहाड़ी मजदूरी वाले जगह पर तो यह सबसे बदतर है । समान कार्य को समान समय तक करने के बावजूद भी महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा काफी कम भुगतान किया जाता है।

( iv ) लैंगिक भेदभाव- भारत में अभी भी कार्यस्थलों पर महिलाओं के साथ लैंगिक स्तर पर काफी भेदभाव किया जाता है । कई सारे क्षेत्रों में तो महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर जाने की इजाजत नहीं होती है । और इसके साथ ही उन्हें आजादीपूर्वक कार्य करने या परिवार से जुड़े फैसले लेने की भी आजादी नहीं होती है और उन्हें सदैव हर कार्य में पुरुषों के अपेक्षा कमतर ही माना जाता है ।

इस प्रकार भेदभाव के कारण महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक दशा बिगड़ जाती है और इसके साथ ही यह महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को भी बुरी तरह से प्रभावित करता है ।

( v ) अशिक्षा – महिलाओं में अशिक्षा और बीच में पढ़ाई छोड़ने जैसी समस्याएँ भी महिला सशक्तिकरण में काफी बड़ी बधाएँ हैं । वैसे तो शहरी क्षेत्रों में लड़कियाँ शिक्षा के मामले में लड़कों के बराबर हैं पर ग्रामीण क्षेत्रों में इस मामले में काफी पीछे हैं । भारत में महिला शिक्षा दर लगभग 64.4 प्रतिशत है । जबकि पुरुषों की शिक्षा दर 80.9 प्रतिशत है । बहुत सी ग्रामीण लड़कियाँ जो स्कूल जाती भी हैं , उनकी पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है और वह दसवीं कक्षा भी पास नही कर पाती हैं। ।

( vi ) बाल विवाह- हालाँकि पिछले कुछ दशकों सरकार द्वारा किये गये प्रभावी फैसलों द्वारा भारत में बाल विवाह जैसी कुरीति को काफी हद तक कम कर दिया गया है लेकिन सन् 2019 में यूनिसेफ के एक रिपोर्ट द्वारा पता चलता है कि भारत में अब भी हर वर्ष लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहिले ही कर दी जाती है । जल्द शादी हो जाने के कारण वयस्क नहीं हो पाती हैं । महिलाओं का विकास रुक जाता है और वह शारीरिक तथा मानसिक रूप से

( vii ) महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराध– भारतीय महिलाओं के विरुद्ध कई सारे घरेलू हिंसाओं के साथ दहेज हॉनर किलिंग और तस्करी जैसे गंभीर अपराध देखने को मिलते हैं । हालांकि यह काफी अजीब है कि शहरी क्षेत्रों की महिलाएँ ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के अपेक्षा अपराधिक हमलों की अधिक शिकार होती हैं ।

(viii ) कन्या भ्रूण हत्या – कन्या भ्रूण हत्या या फिर लिंग के आधार पर गर्भपात भारत में महिला सशक्तिकरण के रास्ते में आने वाले सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है । कन्या भ्रूण हत्या का अर्थ लिंग के आधार पर होने वाली भ्रूण हत्या से है , जिसके अन्तर्गत कन्या भ्रूण का पता चलने पर बिना माँ के सहमति के ही गर्भपात करा दिया जाता है ।

कन्या भ्रूण हत्या के कारण ही हरियाणा और जम्मू – कश्मीर जैसे प्रदेशों में स्त्री और पुरुष लिंगानुपात में काफी ज्यादा अंतर आ गया है । हमारे महिला सशक्तिकरण के दावे तब तक नहीं पूरे होंगे जब तक हम कन्या भ्रूण हत्या की समस्या को मिटा हीं पायेंगे।

भारत में महिला सशक्तिकरण मे सरकार की भूमिका

भारत सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए कई सारी योजनाएँ चलायी जाती हैं महिला एवं बाल विकास कल्याण मंत्रालय और भारत सरकार द्वारा भारतीय महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कई सारी योजनाएँ चलाई जा रही हैं । उन्हीं में से कुछ मुख्य योजनाए निम्न है

( i ) बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना ( ii ) महिला हेल्पलाइन योजना ( iii ) उज्ज्वला योजना iv ) सपोर्ट टू ट्रेनिंग एण्ड एम्प्लायमेंट प्रोग्राम फॉर वूमन ( v ) महिला शक्तिकरण ( vi ) पंचायती राज योजनाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण ।

उपसंहार –

आधुनिक समय में महिलाओ का सशक्तिकरण होना अत्यंत आवश्यकत है,महिलाओं को पुरुष और सभ्यता का शिकार होने के बजाय सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
क्योंकि महिलाओं के सशक्तिकरण से ही उनका विकास सम्भव है। इससे महिलाएं आत्मनिर्भर बन पाएगी और देश में महिलाओं को पुरुषों के समान ही सम्मान प्राप्त होगा। इसी से इस समाज व देश की उन्नति होगी।

नारी सशक्तिकरण पर निबंध(महिला सशक्तिकरण पर निबंध) – 1000 शब्द। mahila sashaktikaran par nibandh.

नारी सशक्तिकरण पर निबंध के संकेत बिंदु

  1. प्रस्तावना
  2. महिला सशक्तिकरण क्या है
  3. भारत में महिला सशक्तिकरण की जरूरत
  4. महिला सशक्तिकरण के लिए दिये गये अधिकार
  5. निष्कर्ष

प्रस्तावना।

भारतीय समाज – महिला सशक्तिकरण प्राचीन एवं अर्वाचीन विचारक नारी को संस्कृति एवं सभ्यता का मेरुदण्ड मानते हैं । विश्व की सभी संस्कृतियों में नारी के प्रति विशेष उदार और उन्नत विचार रखे गये हैं । नारी को शक्ति का महान् भण्डार और परिवार की नींव माना गया है । चूँकि परिवार समुदाय की नींव है और समुदाय राष्ट्र की अतएव नारी ही समाज व राष्ट्र की नौका की वास्तविक कर्णधार है ।

महिला परिवार की धुरी होती है और परिवार राष्ट्र की इकाई । समस्त विकास चक्र इसी इकाई के आसपास घूमते हैं।

महिला सशक्तिकरण क्या है

महिला सशक्तिकरण को बेहद आसान शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है कि इसमें महिलाएँ शक्तिशाली बनती हैं जिससे वह अपने से जुड़े हर फैसले स्वयं ले सकती हैं और परिवार और समाज में अच्छे से रह सकती है । समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना महिला सशक्तिकरण है । इसमें ऐसी ताकत है कि वह समाज और देश में बहुत कुछ बदल सके । वह समाज में किसी समस्या को पुरुषों से बेहतर ढंग से निपट सकती है ।

विकास की मुख्यधारा में महिलाओं को लाने के लिए भारत सरकार के द्वारा कई योजनाएँ चलाई गई हैं । समय के साथ महिलाओं ने अपने महत्त्व को जगजाहिर भी किया है । उसने दुनिया को बताया कि वह सिर्फ सन्तानोत्पत्ति के लिए नहीं हैं । वह कवि , लेखक , योद्धा , खिलाड़ी , राजनेता और अंतरिक्ष यात्री भी बन सकती है । उसने अपनी भूमिका को हर बार स्पष्ट और सिद्ध किया है । लेकिन क्या ऐसा सम्मान होने का सम्मान हम उसे देते हैं ?

भारत में महिला सशक्तिकरण की जरूरत ?

महिला सशक्तिकरण की जरूरत इसलिये पड़ी क्योंकि प्राचीन समय में भारत में लैंगिक असमानता थी और पुरुष प्रधान समाज था । महिलाओं को उनके अपने परिवार और समाज द्वारा कई कारणों से दबाया गया तथा उनके साथ कई प्रकार की हिंसा हुई और परिवार और समाज में भेदभाव भी किया गया ऐसा केवल भारत में ही नहीं , बल्कि दूसरे देशों में भी दिखाई पड़ता है । महिलाओं के लिए प्राचीनकाल से समाज में चले आ रहे गलत और पुराने चलन को नये रीति – रिवाजों और परम्परा में ढाल दिया गया था ।

भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान देने के लिये माँ , बहन , पुत्री , पत्नी के रूप में महिला देवियों को पूजने की परम्परा है लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं कि केवल महिलाओं को पूजने भर से देश के विकास की जरूरत पूरी हो जायेगी । आज जरूरत है कि देश की आधी आबादी यानी महिलाओं का हर क्षेत्र में सशक्तिकरण किया जाय जो देश के विकास का आधार बनेंगी । भारत एक प्रसिद्ध देश है जिसमें विविधता में एकता के मुहावरे को साबित किया है , जहाँ

भारतीय समाज में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं । महिलाओं को हर धर्म में , एक अलग स्थान दिया गया है जो लोगों की आँखों को ढके हुये बड़े पर्दे के रूप में कई वर्षों से आदर्श के रूप में महिलाओं के खिलाफ कई सारे गलत कार्यों को जारी रखने में मदद कर रहा है । प्राचीन भारतीय समाज दूसरी भेदभाव पूर्ण दस्तूरों के साथ सती प्रथा , नगरवधु व्यवस्था , दहेज प्रथा , यौन हिंसा , घरेलू हिंसा , गर्भ में बच्चियों की हत्या , पर्दा प्रथा , कार्यस्थल पर यौन शोषण , बाल मजदूरी , बाल विवाह तथा देवदासी प्रथा आदि परम्परा थी ।

इस तरह की कुप्रथा का कारण पितृसत्तात्मक समाज और पुरुष श्रेष्ठता मनोग्रन्थि है । पुरुष पारिवारिक सदस्यों द्वारा सामाजिक , राजनीतिक अधिकार ( काम करने की आजादी , शिक्षा का अधिकार आदि ) को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है । महिलाओं के खिलाफ कुछ बुरे चलन को खुले विचारों के लोगों और महान् भारतीय लोगों द्वारा हटाया गया जिन्होंने महिलाओं के खिलाफ भेदभाव पूर्ण कार्यों के लिए अपनी आवाज उठायी । राजा राममोहन राय की लगातार कोशिशों की वजह से ही सती प्रथा को खत्म करने के लिए अंग्रेज मजबूर हुये ।

बाद में दूसरे भारतीय समाज सुधारकों ( ईश्वरचन्द्र विद्यासागर , आचार्य विनोबा भावे , स्वामी विवेकानन्द आदि ) ने भी महिला उत्थान के लिए अपनी आवाज उठायी और कड़ा संघर्ष किया । भारत में विधवाओं की स्थिति को सुधारने के लिये ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने अपने लगातार प्रयास से विधवा पुनः विवाह अधिनियम 1856 की शुरुआत करवाई । पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले लैंगिक असमानता और बुरी प्रथाओं को हटाने के लिए सरकार द्वारा कई सारे संवैधानिक अधिकार बनायें और लागू किये गये हैं ।

हालाँकि ऐसे बड़े विषय को सुलझाने के लिए महिलाओं सहित सभी का लगातार सहयोग की जरूरत है । आधुनिक समाज महिलाओं के अधिकार को लेकर ज्यादा जागरूक है , जिसका परिणाम हुआ कि कई सारे स्वयंसेवी समूह और एन.जी.ओ. आदि इस दिशा में कार्य कर रहे हैं । महिलाएँ ज्यादा खुले दिमाग की हो रही है और सभी आयामों में अपने अधिकारों को पाने के लिए सामाजिक बंधनों को तोड़ रही है । हालाँकि अपराध इसके साथ – साथ चल रहा है ।

महिला सशक्तिकरण के लिए दिये गये अधिकार।

कानूनी अधिकारों के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए संसद द्वारा पास किये गये कुछ अधिनियम हैं।

  • न्यूनतम मजदूरी अधिनियम ( 1948 )
  • खान अधिनियम ( 1952 ) और कारखाना अधिनियम ( 1948 ) ( शाम 7.00 बजे से सुबह 6.00 बजे ) के बीच महिलाओं को काम पर नहीं लगाया जा सकता विशेष प्रावधान किया गया ।
  • हिन्दू विवाह अधिनियम ( 1955 )
  • हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम ( 1956 )
  • अनैतिक देह व्यापार ( रोकथाम ) अधिनियम ( 1956 )
  • दहेज निषेध अधिनियम ( 1961 )
  • मातृत्व लाभ अधिनियम ( 1961 )
  • गर्भावस्था अधिनियम ( 1971 )
  • समान पारिश्रमिक अधिनियम ( 1976 )
  • महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व प्रतिषेध अधिनियम ( 1986 )
  • सती ( रोकथाम ) अधिनियम ( 1987 )
  • राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम ( 1990 )
  • घरेलू हिंसा अधिनियम ( 2005 )
  • कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न ( रोकथाम , निषेध और निवारण ) अधिनियम ( 2013 )

निष्कर्ष

महिला सशक्तिकरण – महिलाओं का निरर्थक बन्धनों से मुक्त होकर अपने और अपने देश के बारे में सोचने की क्षमता का विकास होना ही महिला सशक्तिकरण कहलाता है । जब तक नारी अबला से सबला नहीं बनेगी और अपनी लड़ाई खुद नहीं लड़ेगी तब तक उसका शोषण होता रहेगा। यह सच है कि वासना के कीचड़ से निकलकर ही नारी मातृत्व के गौरव को प्राप्त करती है। जब तक देश के सभी क्षेत्रों में महिलाओं को समान अधिकार नहीं मिलेगा तब तक देश में महिला शक्ति का समुचित उपयोग नहीं हो सकेगा।

भारतीय समाज में सच में महिला सशक्तिकरण लाने के लिए महिलाओं के खिलाफ बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना और उन्हें हटाना होगा जो कि समाज की पितृसत्तात्मक और पुरुष प्रभाव युक्त व्यवस्था है । जरूरत है कि महिलाओं के खिलाफ पुरानी सोच को बदलें और संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों में भी बदलाव लाये ।

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एनी बेसेंट का जीवन परिचय व इतिहास। annie besant ka jeevan parichay.

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एनी बेसेन्ट जन्म : 1 अक्टूबर , 1847

मृत्यु : 20 सितम्बर , 1933

एनी बेसेंट का जीवन परिचय।Biography of Annie Besant in hindi.

एनी बेसेंट का जीवन परिचय
एनी बेसेंट का जीवन परिचय

एनी बेसेंट का जीवन परिचय – एनी बेसेन्ट का जन्म 1 अक्टूबर 1847 को एमिली मॉरिस और विलियम वुड के घर लंदन , इंग्लैण्ड में हुआ और उनकी मृत्यु 20 सितम्बर 1933 को मद्रास ( भारत ) में हुई थी । वो प्रसिद्ध ब्रिटिश समाज सुधारक , महिला अधिकारों की समर्थक , थियोसोफिएस्ट लेखिका तथा वक्ता होने के साथ ही आयरिश तथा भारत की आजादी की समर्थक थी ।

20 साल की आयु में उनकी शादी फ्रेंक बेसेन्ट से हुई किन्तु शीघ्र ही अपने पति से धार्मिक मतभेदों के कारण अलग हो गयी । उसके बाद वो राष्ट्रीय सेक्यूलर सोसायटी की प्रसिद्ध लेखिका और वक्ता बन गयी और चार्ल्स ब्रेडलॉफ के सम्पर्क में आयी । वो 1877 में प्रसिद्ध जन्म नियंत्रक प्रचारक चार्ल्स नोल्टन की एक प्रसिद्ध किताब प्रकाशित करने के लिए चली गयी ।

1880 में उनके करीबी मित्र चार्ल्स ब्रेडलॉफ नार्थ हेम्पटन के संसद के सदस्य चुने गये । तब वो फैबियन सोसायटी के साथ ही मार्क्सवादी सोशल डेमोक्रेटिक फेडरेशन ( एसडीएफ ) की भी प्रमुख वक्ता बन गयी । उनका चयन लंदन बोर्ड स्कूल के हेमिल्टन टॉवर के लिए किया गया । वो 1890 में हेलना ब्लावस्टकी से मिली और थियोसोफी में रुचि लेने लगी । वो इस सोसायटी की सदस्य बन गयी और थियोसोफी में सफलतापूर्वक भाषण दिया ।

थियोसिफिक्ल सोसायटी के कार्यों के दौरान 1898 में वो भारत आयी । 1920 में उन्होंने केन्द्रीय हिन्दू कॉलेज की स्थापना में मदद की । 1907 में एनी बेसेन्ट थियोसिफिल सोसायटी की अध्यक्ष बनी , वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में जुड़ गयी । बावजूद एनी बेसेन्ट थियोसोफिक्ल सोसायटी और भारतीय होम रूल आन्दोलन में अपनी विशिष्ट भूमिका निभायी थी । इन्होंने विदेशी होने के बावजूद भी भारतीय महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ी ।

एनी बेसेंट किस धर्म से अत्यधिक प्रभावित थी?

एनी बेसेंट द्वारा लगभग 40 वर्षों तक दुनिया के महान धर्मों का अध्ययन करने के बाद पाया कि कोई भी धर्म हिंदू धर्म जितना उत्तम नहीं है। उतना पूर्ण नहीं है, न ही वैज्ञानिक, न ही आध्यात्मिक। हिंदू धर्म के रूप में दर्शन में श्रेष्ठ है। जितना अधिक आप हिंदू धर्म को जानेंगे, उतना ही अधिक आप इसे प्यार करेंगे, जितना अधिक आप इसे समझने की कोशिश करेंगे, उतनी ही गहराई से आप इसके मूल्यों को जानेंगे। हिंदुत्व के बिना भारत का कोई भविष्य नहीं है।

एनी बेसेंट के विचार। Thoughts of Annie Besant.

  • भारत एक ऐसा देश है जिसमें हर धर्म के लिए जगह है।
  • हिन्दू धर्म विश्व में सबसे प्राचीन और सबसे श्रेष्ठ धर्म है।
  • भारत और हिन्दुत्व एक-दूसरे के पर्याय हैं. भारत और हिन्दुत्व की रक्षा भारतवासी और हिन्दू ही कर सकते हैं। हम बाहरी लोग आपकी चाहे जितनी प्रशंसा करें, किन्तु आपका उद्धार आपके ही हाथ है।
  • आप किसी प्रकार के भ्रम में न रहें। हिन्दुत्व के बिना भारत का कोई भविष्य नहीं है। हिन्दुत्व ही वह मिट्टी है, जिसमें भारतवर्ष का मूल गडा हुआ है। यदि यह मिट्टी दृढ हटा ली गयी तो भारतवासी वृक्ष सूख जायेगा।
  • भारत में अनेक धर्म हैं, अनेक जातियां हैं, किन्तु इनमें किसी की भी शिरा भारत के अतीत तक नहीं पहुंची है, इनमें से किसी में भी वह दम नहीं है कि भारत को एक राष्ट्र में जीवित रख सकें, इनमें से प्रत्येक भारत से विलीन हो जाय, तब भी भारत, भारत ही रहेगा. किन्तु, यदि हिंदुत्व विलीन हो गया तो शेष क्या रहेगा. तब शायद, इतना याद रह जायेगा कि भारत नामक कभी कोई भौगोलिक देश था।
  • भारत के इतिहास को देखे, उसके साहित्य, कला और स्मारकों को देखिए, सब पर हिन्दुत्व स्पष्ट रूप से खुदा हुआ है।
  • चालीस वर्षों के सुगम्भीर चिन्तन के बाद मैं यह कह रही हूँ कि विश्व के सभी धर्मों में हिन्दू धर्म से बढ़ कर पूर्ण, वैज्ञानिक, दर्शनयुक्त एवं आध्यात्मिकता से परिपूर्ण धर्म दूसरा और कोई नहीं है।
  • पूर्व जन्म में मैं हिन्दू थी।
  • भारत की ग्रामीण व्यवस्था को छिन्न भिन्न करना इंग्लैंड की सबसे बड़ी गलती थी।
  • समाजवाद आदर्श राज्य है, लेकिन इसे तबतक हासिल नहीं किया जा सकता, जब तक मनुष्य स्वार्थी है।

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महाराणा प्रताप का जीवन परिचय । Maharana Pratap biography, life story, in Hindi

सफला एकादशी व्रत कथा- Saphala Ekadashi Vrat Katha.

सफला एकादशी व्रत कथा- सफला एकादशी पौष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी है। एकादशी का व्रत सभी व्रतों में सबसे श्रेष्ठ होता है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जो भी मनुष्य एकादशी का व्रत करते हैं वे उन्हें बहुत प्रिय है। सफला एकादशी का व्रत पूरे विधि विधान से करने पर अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। सफला एकादशी के महत्व के बारे में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था आइए सुनते हैं सफला एकादशी की व्रत कथा…..

सफला एकादशी व्रत कथा

सफला एकादशी व्रत कथा- एक समय चम्पावती नगरी में  महिष्मान नामक राजा शासन करता था। राजा के चार पुत्र थे तथा उन सबमें लुम्पक नाम वाला बड़ा राजपुत्र महापापी था। लुम्पक सदा परस्त्री और वेश्यागमन तथा दूसरे बुरे काम करता था और इन कामों में अपने पिता का धन लुटाता था। वह हमेशा देवता, बाह्मण, भक्तो, वैष्णवों की निंदा करता था। जब राजा महिष्मान को अपने बड़े पुत्र के ऐसे कुकर्मों का पता चला तो उन्होंने उसे राज्य से निकाल दिया। पिता के राज्य से बाहर निकल देने पर लुंपक सोचने लगा की अब कहाँ जाऊँ? और क्या करूँ? फिर उसने चोरी करने का निश्चय किया।

सारे दिन लुंपक जंगल में छुपा रहता और रात्रि होते ही अपने पिता के राज्य में जाता और वहां पर चोरी करता और वापस जंगल में आकर छुप जाता। लुम्पक के द्वारा चोरी करने पर सारी चंपावती नगरी में चोरी का भय व्याप्त हो गया। लोगों ने लुम्पक को पहचान लिया किंतु राजा के पुत्र होने के कारण वह उसे कुछ नहीं कहते थे। वह जंगल में रहकर पशुओं को मारकर खाने लगा। तथा पीपल के वृक्ष के नीचे रहने लगा। लोग पीपल की पूजा करते थे, किंतु लुम्पक के भय के कारण उन्होंने वहां जाना बंद कर दिया।

पौष मास के कृष्ण दशमी को जंगल में सर्दी के कारण उसका पूरा शरीर अकड़ गया उसके पास पहनने के लिए कपड़े भी नहीं बचे थे। पौष की भयानक सर्दी के कारण सुबह तक लंपक मूर्छित हो गया। दिन में धूप की वजह से उसकी मूर्छा टूटी तो भोजन की तलाश में इधर-उधर घूमने लगा किंतु उसकी हालत अब ना तो भोजन चोरी की नहीं रही थी और न ही पशुओं को मारकर खाने की। वह थक हार कर वापस उसी पेड़ के नीचे आकर बैठ गया तब तक सूर्यास्त हो चुका था। उस दिन पौष मास की कृष्ण एकादशी सफला एकादशी का दिन था उसे कुछ फल मिले तो उसने उन फलों को खाया नहीं हो और भगवान के चरणों में अर्पित कर दिया और कहने लगा कि हे भगवान! अब आप ही इसे स्वीकार करें ।

सारे दिन भोजन नहीं मिलने के कारण रात्रि में उसे भूख के चलते बहुत कष्ट झेलने पड़े। वह सो भी नहीं सका। उसके उपवास और भगवान के प्रति उसकी श्रद्धा के कारण भगवान विष्णु उनसे बहुत प्रसन्न हुए और उसको सभी पापों से मुक्त कर दिया। और जब सुबह हुई तो एक बहुत ही सुसज्जित सुंदर घोड़ा उसके सामने आकर खड़ा हो गया।और आकाशवाणी हुई कि हे राजपुत्र लुम्पक! भगवान श्रीहरि की कृपा से तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो गए हैं। अब तुम अपने पिता के पास जाओ और अपना राज्य प्राप्त करो। यह आकाश वाणी सुनकर लुम्पक बहुत प्रसन्न हुआ।

लुम्पक उस घोड़े पर सवार होकर अपने पिता के राज्य में गया और अपने पिता से सभी बात कही। उसके पिता बहुत प्रसन्न हुए और लुम्पक को अपना राज्य प्रदान किया और स्वयं वन में चले गए। लुम्पक अपने राज्य में शासन करने लगा और उसके शासन में उसका राज्य बहुत समृद्ध हुआ। वह रोज भगवान श्री नारायण की पूजा-अर्चना करता था । और जब वह बूढ़ा हुआ तो शासन अपने पुत्र को सौंप कर वन में चला गया और भगवान श्री हरि के नाम का जप किया जिससे अंत में उसे बैकुंठ की प्राप्ति हुई।

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उषा मेहता सावित्री बाई फुले का इतिहास और जिवन परिचय। usha mehta savitribai phule in hindi.

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उषा मेहता सावित्री बाई फुले

जन्म : 3 जनवरी , 1831

मृत्यु : 10 मार्च , 1897

सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 में हुआ था । इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था । सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ । आप भारत की पहली बालिका विद्यालय की प्रथम प्रधानाध्यापिका और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थी । महात्मा ज्योतिराव को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आन्दोलन के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है ।

ज्योतिराव जो सावित्रीबाई के पति के साथ – साथ उनके संरक्षक गुरु और समर्थक भी थे । सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जिया । उनका जीवन का उद्देश्य था विधवा विवाह कराना , छुआछूत मिटाना , महिलाओं को शिक्षित बनाना । और यह सब उन्होंने करके दम लिया । आप एक मराठी की आदि कवयित्री के रूप में भी मानी जाती है ।

आपने अपने पति के सहयोग से सन् 1848 में विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ एक विद्यालय की स्थापना की । उस वक्त बालिका विद्यालय खोलना असम्भव था । लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबन्दी थी । सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ी , बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया वह भी पुणे जैसे शहर में ।

कांग्रेस रेडियो जिसे ‘ सीकेट कांग्रेस रेडियो ‘ के नाम से भी जानते हैं । इसे शुरू करने वाली उषा मेहता ही थी । भारत छोड़ो आन्दोलन 1942 के दौरान कुछ महीनों तक यह सक्रिय रहा । इस रेडियो के कारण ही उन्हें पुणे की यरवदा जेल में रहना पड़ा था ।

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Indira ekadashi vrat Katha: इंदिरा एकादशी व्रत कथा

इंदिरा एकादशी व्रत कथा- इंदिरा एकादशी आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी है। भगवान विष्णु को समर्पित इंदिरा एकादशी का महत्व अन्य एकादशी से ज्यादा है क्योंकि इंदिरा एकादशी का व्रत करने पर पितरों को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है। इंदिरा एकादशी के व्रत का महत्व स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के समय बताया था। I

इंदिरा एकादशी के व्रत करने और व्रत कथा सुनने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है तथा पितरों को भी स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं। आइए सुनते हैं इंदिरा एकादशी व्रत कथा…….

इंदिरा एकादशी व्रत कथा

इंदिरा एकादशी व्रत कथा- सतयुग में महिष्मति राज्य में इंद्रसेन नामक राजा शासन करता था। राजा इंद्रसेन बहुत दयावान,धार्मिक राजा था तथा भगवान विष्णु का परमभक्त था । एक दिन नारद मुनि राजा इंद्रसेन के दरबार में आए। राजा ने नारद मुनि का अभिवादन किया उचित सत्कार किया और उनके दरबार में पधारने का कारण पूछा। नारद जी ने बताया कि अभी कुछ दिन पहले वे यमलोक गए थे जहां उनकी भेंट राजा इन्द्रसेन के पिता से हुई और इंद्रसेन के पिता ने कहा कि वे यमलोक में पीड़ा भोग रहे हैं उन्हें अभी तक मुक्ति नही मिली है। एकादशी का व्रत तोड़ने के कारण उन्हे यमलोक में रहना पड़ रहा है।

नारद जी ने कहा कि हे राजन आपके पिता ने संदेश भेजा है कि आप उनके लिए आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करें और उसका फल उन्हें दे, जिससे उन्हे मुक्ति मिल जाएगी। नारद जी की बात सुनकर राजा इंद्रसेन बहुत दुःखी हुए और उन्होंने इंदिरा एकादशी का व्रत करने का संकल्प लिया और नारद जी से व्रत की विधि के बारे में पूछा। नारद जी के बताए अनुसार इंद्रसेन इंदिरा एकादशी का व्रत किया तथा पितरों को भी मोक्ष देने वाली इस एकादशी पर उन्होंने मौन रहकर ब्राह्मणों को भोजन कराया और उन्हें दान दक्षिणा दी तथा गाय का दान दिया । इस इंदिरा एकादशी का व्रत पूरे विधि विधान से करने के कारण राजा के पिता को यमलोक से मुक्ति मिली और भगवान विष्णु के लोक बैकुंठ की प्राप्ति हुई।

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नखरालो राजस्थान पर निबंध।nakhralo rajasthan nibandh in hindi.

नखरालो राजस्थान पर निबंध – क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य राजस्थान अपनी खूबियों के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध है। राजा महाराजाओ से जुड़ा इतिहास और राजाओं की जन्म स्थली के कारण इसका नाम राजस्थान पड़ा। भारत के संवैधानिक इतिहास में राजस्थान का निर्माण एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। हम राजस्थान की कला, संस्कृति, इतिहास, परंपराए, राजधानी और अनेक बिंदुओं पर नखरालो राजस्थान पर निबंध में चर्चा करेंगे

नखरालो राजस्थान पर निबंध।

नखरालो राजस्थान पर निबंध संकेत बिन्दु – 1. प्रस्तावना 2. राजस्थान का रंगीला रूप 3. राजस्थान की सुरंगी संस्कृति 4. राजस्थान की नखराली छटा 5. उपसंहार

1. प्रस्तावना- राजस्थान में ऐसे अनेक ऐतिहासिक स्थान है जो राजपूत रणबांकुरों के मरण – महोत्सव के साक्षी रहे हैं । वस्तुतः राजस्थान नाम से इस भूभाग की रंग – बिरंगी परम्पराओं , रीति – रिवाजों एवं आंचलिक विशेषताओं का स्मरण हो जाता है । इसी कारण इसे जीवन्त संस्कृति वाला और रंगीला प्रदेश कहा जाता है ।

नखरालो राजस्थान पर निबंध
नखरालो राजस्थान पर निबंध

2. राजस्थान का रंगीला रूप – प्राकृतिक दृष्टि से राजस्थान अरावली पर्वतमाला से दो भागों में विभक्त है । यहाँ का पश्चिमोत्तर भाग रेतीली धरती के कारण सुनहरा दिखाई देता है , तो दक्षिण – पूर्वी भाग सुन्दर हरी – भरी भौगोलिक छटा से युक्त रहता है । यहाँ पर अनेक गढ़ , किले , ऐतिहासिक भवन या महल , मन्दिर एवं तीर्थ स्थल हैं । यहाँ पद्मिनी , पन्ना , तारा , महामाया आदि वीर क्षत्राणियों ने तथा भक्तिमती मीराँ , सहजो बाई आदि ने नारीत्व का गौरव बढ़ाया । शौर्य , पराक्रम तथा श्रेष्ठ सांस्कृतिक परम्पराओं के कारण राजस्थान का प्रत्येक भूभाग सुन्दर रंगीला दिखाई देता है ।

3. राजस्थान की सुरंगी संस्कृति – राजस्थान की संस्कृति अपना विशिष्ट स्थान रखती है । यहाँ पर अतिथि सत्कार दिल खोलकर किया जाता है । धार्मिक व्रत – त्योहारों का यहाँ पर आधिक्य है रक्षाबन्धन , होली , तीज , गणगौर शीतलाष्टमी आदि के अलावा यहाँ पर कई क्षेत्रीय पर्व मनाये जाते हैं । पाबूजी , गोगाजी , तेजाजी , रामदेवजी , जम्भेश्वरजी आदि लोकदेवताओं का जनजीवन पर गहरा प्रभाव दिखाई देता है , तो करणीमाता , जीणमाता , चौथ माता आदि लोकदेवियों के धान भी जनता की श्रद्धा से पूज्य रहे हैं । तीर्थराज पुष्कर , नाथद्वारा श्रीमहावीरजी , मेंहदीपुर बालाजी , अजमेर दरगाह आदि तीर्थस्थल जहाँ इसकी धार्मिक आस्था के परिचायक हैं , वहीं नानारंगी हुड़दंगों , गैरों , गींदड़ों , ख्यालों , सांग – तमाशों बारूद – भाटों के खेल के बड़े अद्भुत और कड़क नजारे देखने को मिलते हैं । इससे यहाँ की संस्कृति रंगीली लगती है

4. राजस्थान की निराली छटा – राजस्थान निर्जल डूंगरों , ढाणियों रेतीले धोरों का प्रदेश है , फिर भी यहाँ की धरती खनिज सम्पदा से समृद्ध संगमरमर तथा अन्य इमारती पत्थरों की यहाँ पर अनेक खानें हैं । इसी प्रकार ताँबा सीसा , अभ्रक , जस्ता आदि कीमती धातुओं के साथ चूना – सीमेण्ट का पत्थर बहुतायत में मिलता है । कलापूर्ण भित्ति चित्रों , सुरम्य बावड़ियों एवं छतरियों के साथ यहाँ मीनाकारी , नक्काशी की वस्तुओं और साक्षात् बोलती के दर्शन कहीं हो जाते हैं । रंगाई – छपाई एवं कशीदाकारी पर संगीत , नृत्य , लोकगीत आदि की विशेषताएँ राजस्थान के रंगीलेपन की प्रतिमान हैं । पत्थर की मूर्तियों आदि अनेक कलाओं के साथ अनोखी छटा दिखाई देती है ।

5. उपसंहार – राजस्थान की धरा शौर्य – गाथाओं , धार्मिक पर्वों , आस्थाओं तथा सांस्कृतिक ऐतिहासिक परम्पराओं के कारण समृद्ध दिखाई देती वहीं यहाँ पर शिल्प – कला , स्थापत्य एवं चित्रकला के साथ अन्य विविध विशेषताओं से जन – जीवन की जीवन्तता एवं रंगीलापन दिखाई देता है । वेश – भूषा एवं पहनावे में आचार विचार , आस्था – विश्वास और आंचलिकता की छाप आदि में भी राजस्थान रंगीला दिखाई देता है।

आशा है आपको नखरालो राजस्थान पर निबंध की जानकारी पसंद आई होगी धन्यवाद

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शरत् ऋतु पर निबंध । Winter Season Essay in Hindi

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संकेत बिंदु –

  1. शरत् का आगमन
  2. प्रसाद और कालिदास द्वारा वर्णन
  3. रामचरितमानस में शरत् वर्णन
  4. आयुर्वेद और भारतीय पर्वों की दृष्टि से महत्त्व
  5. वैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्व ।
Winter Season Essay in Hindi

भारत में शरत् वसन्त के ही समान सुहावनी ऋतु है । शरत् के सम्बन्ध में गोस्वामी जी का कथन है-

वर्षा विगत शरद ऋतु आई ।

फूले कास मकल महि छाई ।

जनु वर्षा कृत प्रगट बुढ़ाई ।

शरत् का आगमन

‘ शरत् ऋतु आने पर आकाश निमंल और निरभ्र हुआ । रात्रि में सुधाकर अपनी किरणों से अमृत की वर्षा करने लगा । मन्द – मन्द शीतल पवन चलने लगी । वर्षा की बौछारों से , कीट – पतंगों की भरमार से तथा वर्षा – व्याधियों से प्राणियों को छुटकारा मिला । उनका हृदय शरत् स्वागत के लिए तत्पर हो उठा ।

भारतीय ऋतु – परम्परा की दृष्टि से आश्विन और कार्तिक शरत ऋतु के मास हैं । शरत् ऋतु के आगमन तक वर्षा की मेघ – मालाएँ लुप्त हो गईं । दुर्गन्ध और कीचड़ का अन्त हो गया । वातावरण की घुमस और घुटन समाप्त हो गई । ‘ पंक न रेनु , सोह अस धरनी । ‘ स्वच्छ ( 14 ) और निर्मल आकाश मण्डल चमकने लगा । चाँदनी का रूप निखर गया । नदो – तट पर काँस विकसित हो गए । सर्वत्र स्वच्छता और शान्ति का साम्राज्य छा गया ।

शरत् ऋतु के आगमन के सूचक लक्षणों का वर्णन करते हुए प्रमाद जी लिखते हैं – ‘ नदी के तट पर कांस का विकास , निर्मल जल पूरित नदियों का मन्द प्रवाह , कुछ शीत वायु , छिटकी हुई चंद्रिका , हरित वृक्ष , उच्च प्रासाद , नदी , पर्वत , कटे हुए खेत तथा मातृ धरणी पर रजत मार्जित आभास ।

‘ शरत् ऋतु में शस्य श्यामला धरिणी कृषि गंध से परिपूर्ण होती है । निरुक्त की परिभाषा से इस ऋतु में प्रकृति उन्मुक्त भाव से अन्नपूर्णा बनकर जल को स्वच्छ और निर्मला करती है । कोष्ठी प्रदीप के अनुसार

नरः शरत्संज्ञकलब्ध जन्मो भवेत्सुकर्मा मनुजस्तग्स्वा । शुचिः सुशीलो गुणवान् समानी धनान्वितो राजकुल प्रपन्नः ॥

अर्थात् शरत् में जन्मा व्यक्ति सुकर्मा , तेजस्वी , पवित्र विचारों वाला मुशोल , गुणवान धनी होता है । कालिदास ने शरत् का वर्णन करते हुए कहा है

कालिदास द्वारा शरत् का वर्णन

काशांशुका विकचपदम मनोज्ञवक्त्रा , सोन्माद हंसरवनपुर नादरम्या । आपक्वशालि रुचि रानतगात्र यष्टिः , प्राप्ता शरन्नवधूरिव रूपग्म्या ।।

अर्थात् फले हुए कांस के वस्त्र धारण किए हुए , मतवाले हंसों की रम्य बोली क बिछुए पहने , पक हुए धान के मनोहर व नीचे झुके हुए शरीर धारण किए हुए तथा खिले हुए कमल रूपी सुन्दर मुख वानी , यह शरत ऋतु नवविवाहिना सुन्दरी वधू के समान आ गई है । तुलस्मैदाम जी रामचरितमानस में शरत् की प्राकृतिक छटा का उपमायुक्त वणन हृदयहारी है

रामचरितमानस में शरत् वर्णन

उदित अगस्त पंथ जल सोषा । जिमि लोभहि मोषड़ सतोया ।। सरिता सर निर्मल जल सोहा संत हृदय जम गत मद माहा ॥ ग्म – रस सूख मरित पर पानी । ममता त्याग करहिं जिमि ग्यानी ॥ जानि सरत ऋतु खंजन आए । पाई समय जिमि सुकून सुहाए ।

अथात् अगस्त्य नक्षत्र ने उदित होकर मार्ग क जल की मांख लिया जैसे सन्तोष लोभ को सोख लेता है । नदियों और तालाबों का निर्मल जल ऐमी शोभा पा रहा है , जैसे मद और माह मे रहित संतों का हृदय नदी ओर तालाबों का जल धीरे – धीरे सूख रहा है , जैसे ज्ञानी पुरुष ममता का त्याग कर देते हैं । मेघ गहत निर्मल आकाश ऐसा सुशोभित हो रहा है , जैसे भगवान् का भक्त मब आशाओं को छोड़कर सुशोभित होता है ।

आयुर्वेद और भारतीय पर्वों की दृष्टि से महत्त्व

जनजीवन में जावन का संचार हुआ हृदय प्रकृति – नटी के साथ प्रसन्न हो उठा । नर नारी , युवा युवती , बान्न – वृद्ध सबके चेहरों पर रौनक आई । काम में मन लगा । उत्साह का संचार हुआ । प्रेरणा उदित हुई । आयुर्वेद की दृष्टि से शरत् में पित्त का संचय और हेमन्त में पकांप होता है । अतः पित्त के उपद्रव से बचने के लिए शरत्काल में पित्तकारक पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए । दूसरे , शरत्काल में ही गरिष्ठ और पौष्टिक भोजन का आनन्द है । जो खाया , सो पच गया , रक्त बन गया । स्वास्थ्यवर्धन की दृष्टि से यह सर्वोत्तम काल है ।

भारतीय ( हिन्दू ) पर्वों की दृष्टि से शरत्काल विशेष महत्त्वपूर्ण है । शा अर्थात् आश्विनशुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर कार्तिक की पूर्णिमा तक सम्पूर्ण धरा शुभ्र चाँदनी में स्नात हो जाती है । नवरात्र आए । विधि – विधान स की गई । नवरात्र संयमित जीवन का सन्देश दे गए । तत्पश्चात् दशहरा आया- शस्त्रपूजन का दिन , मर्यादापालन का सूचक पर्व , आसुरी वृत्ति पर देवत्व की विजय का प्रतीक । शारदी — पूर्णिमा पर चन्द्रमा की किरणें सुधारस बरसाती हैं । ‘ तमसो मा ज्योतिर्गमय ‘ का महापर्व दीपावली कार्तिक की अमावस्या को होता है । यह लक्ष्मीपूजन का भी त्यौहार है । भगवती लक्ष्मी चेतावनी दे गई , जिसकी स्वामिनी बनती हूँ उसको उलूक बनाती हूँ , जिसकी सखी बनती हूँ , वह कुबेर बन जाता है , जिसकी दासी बनती हूँ , वह स्वयं श्री लक्ष्मी – निवास अर्थात् भगवान् बन जाता है ।

वैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्व

‘ वैज्ञानिक दृष्टि से शरत् का बहुत महत्त्व है । वर्षा के बाद घर की सफाई लिपाई – पुताई की परम्परा है । वर्ष भर के कूड़े – करकट को निकाला जाता है । घर की दीवारों को रंग रोगन से अलंकृत किया जाता है । दुकानों और व्यापारिक संस्थानों की सफाई का विधान है । गंदगी रोग का घर है । साफ – सुथरा घर म्वास्थ्यवर्धन का आधारभूत सिद्धान्त है । शरत् ऋतु क्रम का स्वर्णिम काल । इसमें वस्त्रपरिधान का आनन्द है , विभिन्न पदार्थों के खाने – पीने और पचाने की शक्ति है , कार्य करने का उल्लास है . चेहरों पर उमंग है और है जीवन जीने के लिए प्रेरणा और स्फूर्ति ।