Homeएकादशीutpanna ekadashi vrat katha (उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा)

utpanna ekadashi vrat katha (उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा)

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा- उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी है। उत्पन्ना एकादशी की व्रत कथा तथा इसके महत्व के बारे में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से शंखोद्धार तीर्थ में स्नान करके भगवान के दर्शन करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने पर किसी भी पापी दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करनी चाहिए।

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा- भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि हे धर्मराज! सतयुग में मुर नाम का दैत्य था। वह बहुत ताकतवर और बहुत ही भयानक था। उस दैत्य ने इंद्र, आदित्य, वसु, वायु, अग्नि सहित सभी देवताओं से युद्ध करके उन्हे पराजित कर दिया। तब सभी देवता भयभीत होकर भगवान शिव के पास गए और उन्हें मुर दैत्य के बारे में सारा वृत्तांत कहा और बोले हे प्रभु! मुर दैत्य के भय से सभी देवता मृत्यु लोक में जाकर छुप रहे हैं। तब भगवान शिव ने कहा- हे देवताओं! आपको तीनों लोकों के स्वामी, भक्तों के दु:खों का नाश करने वाले,संसार के पालनकर्ता भगवान विष्णु की शरण में जाना चाहिए। वे ही तुम्हे मुर दैत्य से मुक्ति दिला सकते हैं।

भगवान शिव के कहने पर सभी देवता क्षीरसागर में भगवान विष्णु के पास पहुँचे। वहाँ भगवान को शयननिद्रा देखकर सभी देवता हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे‍, कि हे प्रभु! आपको सभी देवताओं का नमस्कार है, देवताओं की रक्षा करने वाले श्री हरि ! आपको बारंबार नमस्कार है। आप हमारी रक्षा करें। मुर दैत्य से भयभीत होकर हम सब आपकी शरण में आए हैं।आप इस संसार के स्वामी, माता-पिता, उत्पत्ति और पालनकर्ता और संहार करने वाले व सबको शांति प्रदान करने वाले हैं। आकाश और पाताल भी आप ही हैं। सबके पितामह ब्रह्मा, सूर्य, चंद्र, मंत्र, तंत्र, जप,अग्नि, सामग्री, होम, आहुति, यजमान, यज्ञ, कर्म, कर्ता, भोक्ता भी आप ही हैं। आप सर्वव्यापक हैं। आपके सिवा तीनों लोकों में चर तथा अचर कुछ भी नहीं है।हे लीलाधर! दैत्यों ने हमें पराजित कर स्वर्ग से निष्कासित कर दिया है और हम सब देवता उन से बचकर इधर-उधर भागे-भागे फिर रहे हैं।हे प्रभु! आप उन दैत्यों से हम सबकी रक्षा करें।

सुरपति इंद्र के द्वारा ऐसी विनती सुनकर भगवान विष्णु कहने लगे कि हे इंद्र! ऐसा मायावी दैत्य कौन है जिसने सब देवताओं को पराजित कर दिया है, उसका क्या नाम है, उसमें बल कितना है और किसके आश्रय में है तथा उसका स्थान कहाँ है? यह सब मुझे बताओ।इंद्र ने कहा कि हे भगवन! प्राचीन समय में एक चंद्रावती नाम की नगरी है जिसमे नाड़ीजंघ नामक राक्षस था उसके महापराक्रमी और भयानक मुर नामक एक पुत्र हुआ। उसी ने सब देवताअओं को पराजित करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया है। उसने हम सभी के (इंद्र, अग्नि, वरुण, यम, वायु, ईश, चंद्रमा, नैऋत आदि) स्थान पर अधिकार कर लिया है।

सूर्य बनकर स्वयं ही प्रकाश करता है। स्वयं ही मेघ बन बैठा है और सबसे अजेय है। हे असुर निकंदन! उस दुष्ट मुर राक्षस का वध करके देवताओं को उससे मुक्ति दिलाइए।
इंद्र के इस वचन सुनकर भगवान विष्णु ने कहा- हे देवताओं, मैं शीघ्र ही उसका संहार करूंगा। तुम चंद्रावती नगरी में चलो ऐसा कहकर भगवान विष्णु सहित सभी देवताओं ने चंद्रावती नगरी की ओर प्रस्थान किया। उस समय मुर दैत्य अपनी सेना सहित युद्ध भूमि खड़ा था। उसकी भयानक गर्जना से सभी देवता भयभीत होकर चारों दिशाओं में भागने लगे।जब स्वयं श्री हरि रणभूमि में आए तो दैत्य उन पर भी अस्त्र, शस्त्र, आयुध लेकर दौड़े।

भगवान विष्णु ने उन दैत्यों को सर्प के समान अपने बाणों से बींध डाला। बहुत-से दैत्य मारे गए, केवल मुर बचा रहा। वह अडिग रहकर भगवान के साथ युद्ध करता रहा। भगवान जब भी तीक्ष्ण अस्त्र चलाते वह उसके लिए पुष्प सिद्ध होता। उसका शरीर छिन्न‍-भिन्न हो गया किंतु वह लगातार युद्ध करता रहा। दोनों के बीच मल्लयुद्ध भी हुआ।

लगातार 10 हजार वर्षों तक उनका युद्ध चलता रहा किंतु मुर नहीं हारा तो भगवान विष्णु विश्राम करने के लिए बद्रिकाश्रम चले गए। वहां पर हेमवती नामक सुंदर गुफा थी, उसमें विश्राम करने के लिए विष्णु जी ने उसके अंदर प्रवेश किया ।इस गुफा की लंबाई 12 योजन से भी अधिक थी और उसका एक ही द्वार था। भगवान विष्णु वहां जाकर योगनिद्रा की गोद में सो गए। मुर भी पीछे-पीछे आ गया और भगवान को सोते हुए देखकर मरने के लिए उन पर प्रहार करने लगा तभी भगवान के शरीर से उज्ज्वल, कांतिमय रूप वाली देवी प्रकट हुई। उस देवी ने राक्षस मुर को ललकारा, युद्ध किया और उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया।
श्री हरि जब योगनिद्रा की गोद से उठे, तब तक मुर दैत्य मर चुका था ,भगवान ने उस देवी की बातों को जानकर देवी से कहा कि आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है, अत: आप उत्पन्ना एकादशी के नाम से संसार में पूजित होंगी। मेरे सभी भक्त आपकी पूजा करेंगे। जब यह बात देवताओं को पता चली तो वह बहुत प्रसन्न हुए और स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया।

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