आज हम आपके लिए लेकर आए हैं दो इमानदारी की कहानी। दोस्तों ईमानदारी की राहें थोड़ी मुश्किल जरूर होती है किंतु इमानदारी हमें सफलता की ओर ले जाती है और हमे एक आदर्श व्यक्तित्व प्रदान करती है। इसलिए व्यक्ति को जीवन में हमेशा ईमानदार बनना चाहिए। व्यक्ति कहानियों से भी जीवन में सीख ले सकता है तो आइए जानते हैं इमानदारी की कहानी :
इमानदारी की कहानी : 1.
honesty story in hindi.
कलकत्ता में किराने का थोक व्यापार करने वाला एक व्यापारी रहता था । उसका नाम रामदुलार था । रामदुलार के पिता पहले गरीब थे । बचपन में ही रामदुलार के पिता परलोक चले गये थे । बड़े कष्ट और परिश्रम का जीवन बिताकर रामदुलार ने धन कमाया और व्यापार जमाया था । लेकिन व्यापार में वह बहुत ईमानदार और दयालु था ।
एक बार काली मिर्च का भाव बहुत घट गया । रामदुलार के पास बहुत – से बोरे काली मिर्च थी ; किन्तु उन्होंने घटे भाव में उन्हें बेचा नहीं । उन्हीं दिनों एक यूरोपियन उनके पास आया । उसने रामदुलार से कहा – मेरे पास बहुत काली मिर्च है । क्या तुम मेरे कुछ बोरे अपने पास रखकर मुझे थोड़े रुपये दोगे ? मुझे इस समय रुपयों की बहुत आवश्यकता है ।
रामदुलार ने कहा – ‘ मैं बोरे रखकर उधार रुपये देने का काम नहीं करता – आप चाहें तो मैं आपके बोरे खरीदकर उनके दाम दे सकता हूँ । ‘ यूरोपियन ने समझा कि काली मिर्च का भाव बढ़ने की सम्भावना है , इसी से यह बड़ा व्यापारी आज के घटे भाव में मेरी मिर्च खरीदना चाहता है । लेकिन उसे रुपयों की आवश्यकता थी । वह बोला – ‘ जब तुम मेरे बोरे रखकर उधार रुपये नहीं देते , तो उन्हें खरीद ही लो । मेरा काम रुपयों के बिना नहीं चल सकता । ‘ रामदुलार ने उसके मिर्च के बोरे खरीद लिये और दाम दे दिये । दो – तीन दिन बाद काली मिर्च का भाव बढ़ गया ।
रामदुलारने बढ़े भाव में अपनी काली मिर्च के बोरे और उस यूरोपियन व्यापारी से खरीदी काली मिर्च भी बेच दी । उन्हें खूब लाभ हुआ । उस यूरोपियन को फिर रुपयों की आवश्यकता हुई । वह अपने पास बचे काली मिर्च के बोरे लेकर फिर रामदुलार के पास आया । रामदुलार ने उसे देखते ही कहा – ‘ साहब ! मैं आपका रास्ता ही देख रहा था , आप क्या फिर मिर्च बेचेंगे ? ‘ यूरोपियन बोला – ‘ हाँ , मुझे रुपयों की फिर आवश्यकता है । तुम कृपा करके मेरे ये बोरे भी खरीद लो । ‘

रामदुलारने बोरों की काली मिर्च तौला ली और हिसाब करके रुपये दे दिये । यूरोपियनको पता नहीं था कि काली मिर्चका भाव बढ़ गया है । उसने रुपये गिने और आश्चर्य से कहा -‘तुम अपना हिसाब फिर देखो । तुमने मुझे बहुत अधिक रुपये दिए है। रामदुलारने कहा – ‘ हिसाब में भूल नहीं है । आपको पता नहीं है कि काली मिर्च का भाव बढ़ गया है । किन्तु आपके अनजानपने से लाभ उठाना तो बेईमानी है । मैं आपको धोखा देना नहीं चाहता । ‘
यूरोपियन ने काली मिर्च का उस समय का भाव पूछा और कागज – पेन्सिल लेकर हिसाब करने लगा । उसने रुपये गिने और कहा – ‘ तुमने अपने हिसाब में अवश्य भूल की है । रुपये बहुत अधिक हैं । ‘ रामदुलार ने फिर कहा – ‘ रुपये अधिक नहीं हैं । हिसाब में भूल भी नहीं है । पहली बार आप जब मुझे काली मिर्च दे गये थे तो भाव कम था । पीछे भाव बढ़ गया और मैंने बढ़े भाव में वह मिर्च बेच दी । उस दिन आप मिर्च बेचने नहीं आये थे । रुपयों की आवश्यकता से विवश होकर आपको मिर्च बेचनी पड़ी थी । आपकी विवशता से यदि मैं लाभ उठाऊँ तो यह भी बेईमानी और निर्दयता होगी ।
उस मिर्च में भाव बढ़ने पर जो रुपये अधिक आये वे आपके ही हैं । मैं उन्हें ही आपको दे रहा हूँ । वे रुपये लौटाने के लिये कई दिन से मैं आपका पता लगा रहा था । यूरोपियन रामदुलार की ईमानदारी देखकर आश्चर्य में पड़कर बोला – ‘ भारतीय व्यापारी ऐसा ईमानदार होता है !
यह थी व्यापारी की इमानदारी की कहानी हम आशा करते हैं कि आपको यह इमानदारी की कहानी पसंद आई होगी धन्यवाद।
इमानदारी की कहानी : 2 .
honesty story in hindi
एक राजा के तीन पुत्र थे। वह बूढ़ा था। इसलिए, वह अपना राज्य तीनों में से सबसे योग्य पुत्र को सौंप देना चाहता था। एक दिन उसने तीनों राजकुमारों को उनकी क्षमताओं का परीक्षण करने के लिए बुलाया और उन्हें एक एक बीज दिया और कहा, पुत्रो। मैं चाहता हूं कि आप तीनों इन बीजों को गमले में लगाएं और इसकी अच्छी देखभाल करें। एक साल के बाद में तुम तीनों अपने बर्तनों के साथ मेरे सामने उपस्थित होंगे जो कुछ तुम अपने साथ लाते हो, उसे देखकर मैं तय करूंगा कि तुम में से कौन मेरे राज्य पर अधिकार करेगा।
तीनों राजकुमारों ने उन बीजों को राजा से लिया और शाही बगीचे में गए, अपने लिए एक-एक बर्तन चुनकर उनमें अपने बीज बोए। उस दिन से वे अपने बीजों की देखभाल के लिए प्रतिदिन शाही उद्यान में जाते थे। वर्ष के अंत में राजा ने तीनों को अपने पास बुलाया। तीनों अपने-अपने बर्तन लेकर राजा के पास गए। जहां दोनों बड़े राजकुमार खुश थे, वहीं सबसे छोटा राजकुमार दुखी था।
राजा के कहने पर, दोनों बड़े राजकुमारों ने गर्व से वे पौधे दिखाए जो उन्होंने उगाए थे। लेकिन छोटे राजकुमार ने खाली घड़े को राजा के सामने रख दिया और कहा, “पिताजी! मैंने बीज को साल भर सींचा। इसकी अच्छी देखभाल की लेकिन पौधा बिल्कुल नहीं लगा।
राजा ने तीनों घड़ों की ओर देखा और कहा, “समय आ गया है कि मैं तुम्हें बताऊं कि मैं इस राज्य की बागडोर किसको सौंपने जा रहा हूं। दोनों बड़े राजकुमार उत्तेजित हो गए और राजा की ओर देखा। लेकिन छोटे राजकुमार ने अपनी दृष्टि नीची कर ली। वह जानता था कि खाली घड़े को देखकर राजा उसे अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाएगा।
अगले ही पल राजा ने घोषणा की, “मैं इस राज्य की बागडोर छोटे राजकुमार को सौंपना चाहता हू। यह सुनकर दोनों बड़े राजकुमारों ने कहा, “पिताजी! आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? हम आपके पास बीज से दिए गए पौधों के साथ मौजूद हैं और छोटे राजकुमार का बर्तन खाली है। फिर भी आपने हमें नहीं चुना और उसे उत्तराधिकारी चुना। यह अन्याय है।
राजा मुस्कुराया और कहा, “बेटा! जब मैंने एक साल पहले आप तीनों को बीज दिए थे, तो मैंने आपको यह नहीं बताया कि वे बीज उबले हुए थे। उन बीजों से पौधे उगाना संभव नहीं था। यह बताये कि आप दोनों ने असंभव को कैसे संभव बनाया। आपके द्वारा लाए गए गमले में पौधे वास्तव में मेरे द्वारा दिए गए बीज के नहीं हैं। आप दोनों झूठे हैं। छोटा राजकुमार सच्चा और ईमानदार है। इसलिए मे राजा होने के नाते मैं एक योग्य उत्तराधिकारी का चयन करता हू और छोटे राजकुमार को राजा बनाता हू।
इस प्रकार सच्चाई और ईमानदारी के मार्ग पर चलकर छोटा राजकुमार राजा बन गया और दोनों बड़े राजकुमारों ने पश्चाताप किया।
यह थी राजकुमार की इमानदारी की कहानी। आपको राजकुमार की इमानदारी की कहानी पसंद आई होगी धन्यवाद।
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