छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय गणराज्य के महानायक थे। वीर सपूत छत्रपति शिवाजी महाराज को लोग हिंदू हृदय सम्राट भी कहते हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 में मराठा परिवार में हुआ कुछ लोगों के अनुसार उनका जन्म 1927 भी बताया जाता है। भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में शिवाजी महाराज की गौरव गाथा दर्ज है। तो आइए जानते हैं शिवाजी महाराज की कहानी (shiva ji ki kahani):
शिवाजी महाराज की कहानी – 1 . shiva ji ki kahani.
एक बार रात में छत्रपति शिवाजी महाराज सो रहे थे । एक तेरह – चौदह वर्ष का बालक किसी प्रकार उनके सोने के कमरे में छिपकर पहुँच गया । उसने शिवाजी को मार डालने के लिये तलवार निकाली ; किन्तु जैसे ही तलवार चलाने के लिये उसने हाथ उठाया , तानाजी ने पीछे से उसका हाथ पकड़ लिया । छत्रपति के विश्वासी सेनापति तानाजी ने उस लड़के को पहले ही देख लिया था और वे यह देखने उसके पीछे छिपे – छिपे आये थे कि वह क्या करना चाहता है ।
शिवाजी की नींद टूट गयी । उन्होंने बालक से पूछा- तुम कौन हो यहा क्यो आये हो।
बालकने कहा – ‘ मेरा नाम मालोजी है । मैं आपकी हत्या करने आया था ।
शिवाजी – ‘ तुम मुझे क्यों मारना चाहते हो ? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? ‘
बालक – ‘ आपने मेरी कोई हानि नहीं की है । लेकिन मेरी माता कई दिनों से भूखी है । हम बहुत गरीब हैं । आपके शत्रु सुभागराय ने मुझसे कहा था कि यदि मैं आपको मार डालूँ तो वे मुझे बहुत धन देंगे ।
इतने में तानाजी बोले – ‘ दुष्ट लड़के ! धन के लोभ से तू महाराष्ट्र के उद्धारकका वध करना चाहता था ? अब मरने को तैयार हो जा ।
बालक तनिक भी डरा नहीं । उसने तानाजी के बदले शिवाजी से कहा – ‘ महाराज ! मैं मरने से डरता नहीं हूँ । मुझे अपने मरने की चिन्ता भी नहीं है । लेकिन मेरी माँ बीमार है और कई दिनों से भूखी है । वह मरने को पड़ी है । आप मुझे एक बार घर जाने दीजिये । माताके चरणोंमें प्रणाम करके मैं फिर आपके पास लौट आऊँगा ।
मैंने आपको मारने का यत्न किया । अब आप मुझे मार डालें ; यह तो ठीक ही है । परन्तु मुझे थोड़ा – सा समय दीजिये । ‘
तानाजी ने कहा – ‘ तू हमें बातों से धोखा देकर भाग नहीं सकता है। बालक बोला – ‘ मैं भागूंगा नहीं । मैं मराठा हूँ , मराठा झूठ नहीं बोलता । ‘
शिवाजी ने उसे घर जाने की आज्ञा दे दी । बालक घर गया । दूसरे दिन सबेरे जब छत्रपति महाराज शिवाजी राजदरबार में सिंहासनपर बैठे थे , द्वारपाल ने आकर सूचना दी कि एक बालक महाराज के दर्शन करना चाहता है ।
बालक को बुलाया गया । वह वही मालोजी था । मालोजी ने दरबार में आकर छत्रपति को प्रणाम किया और बोला – ‘ महाराज ! मैं आपकी उदारता का आभारी हूँ । माता का दर्शन कर आया । अब आप मुझे मृत्यु – दण्ड दें । ‘
छत्रपति महाराज शिवाजी सिंहासन से उठे । उन्होंने बालक को हृदय से लगा लिया और कहा – ‘ यदि तुम्हारे – जैसे वीर एवं सच्चे लोगों को प्राण – दण्ड दे दिया जायगा तो देश में रहेगा कौन ? तुम्हारे – जैसे बालक ही तो महाराष्ट्र के भूषण हैं ।
बालक मालोजी शिवाजी महाराज की सेना में नियुक्त हो गया । छत्रपति ने उसकी माता की चिकित्सा के लिये राजवैद्य को भेजा और बहुत – सा धन उसे उपहार में दिया ।
तो दोस्तो यह थी शिवाजी महाराज की कहानी हम आशा करते हैं कि आपको शिवाजी महाराज की कहानी (shivaji maharaj ki kahani) पसंद आई होगी धन्यवाद।
पौराणिक कहानियां । mythology story in hindi
शिवाजी की कहानी – 2 . shiva ji ki kahani /shivaji maharaj ki katha.
जब छत्रपति शिवाजी महाराज को यह पता चला कि समर्थ रामदासजी ने महाराष्ट्र में 11 स्थानों पर हनुमान जी की प्रतिमा का स्थापन किया है और वहां पर हनुमान जयंती का उत्सव मनाया जाने लगा है। तब शिवाजी महाराज को उनके दर्शन करने की इच्छा हुई। मैं उनसे मिलने के लिए चाफल, माजगांव से होते हुए शिगडवाडी आए।
वहां पर समर्थ रामदास जी एक बगीचे में पेड़ के नीचे बैठकर दासबोध लिखने में मग्न थे। शिवाजी ने रामदास जी को दंडवत प्रणाम किया और अनुग्रह के लिए विनती की, तब समर्थ रामदास जी ने उन्हें त्रियोदशाक्षरी मंत्र देकर अनुग्रह किया। और फिर आत्मा नाम के विषय पर गुरु उपदेश देकर उन्हें श्रीफल एक अंजलि मिट्टी दो अंजलि लीद एवं चार अंजलि कंकड़ दिए।
जब शिवाजी महाराज ने कहा कि वे उनके पास रहकर लोगों की सेवा करना चाहते हैं तो संत रामदास जी ने कहा तुम क्षत्रीय हो प्रजा पालन और राज्य रक्षण ही तुम्हारा धर्म है। और फिर उन्होंने शिवाजी महाराज को राजधर्म और क्षात्रधर्म पर उपदेश दिया।
शिवाजी महाराज जब प्रतापगढ़ में वापस आए तो उन्होंने जीजामाता को सारी बात बताई। तब जीजामाता ने पूछा कि श्रीफल मिट्टी, लीद और कंकड़ का प्रसाद देने का क्या प्रयोजन है।
शिवाजी महाराज ने बताया कि – श्रीफल देने का उद्देश्य मेरा कल्याण है और मिट्टी देने का उद्देश्य पृथ्वी पर मेरा अधिपत्य होने से है। कंकड़ देने से यह कामना व्यक्त की गई है कि मैं अनेक किलो और दुर्गों पर राज करूं और लीद देने का तात्पर्य है कि मेरे पास असंख्य अस्तबल और आश्वाधिपति हो।
इस प्रकार राजधर्म और क्षात्रधर्म को समझकर शिवाजी महाराज ने अपनी शक्ति और राज्य का विस्तार किया तथा अपने राज्य में न्याय नीति की स्थापना की और गुरु के आदेश का पालन किया।
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