कम उम्र में बच्चों की शादी कर देने से उनके स्वास्थ्य, और् मानसिक विकास के साथ साथ खुशहाल जीवन पर असर पड़ता है। कम उम्र में शादी करने से पूरे समाज में पिछड़ापन आ जाता है। इसलिए हमारे देश के कानून में लड़के और लड़की की शादी के लिए एक निश्चित उम्र तय की गई है। इस उम्र से कम उम्र में शादी को विवाह कहा जाता है।
हमारे वार्तमान माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के प्रयासों से लड़की की शादी की उम्र 21साल से कम है या लड़के की उम्र 21 साल से कम है तो वह शादी बाल विवाह कहलायेगी। इससे पहले तक लड़की की शादी की उम्र 18 और लड़के की 21 मानी जाती थी इससे कम उम्र में शादी करने की हमारे कानून में इस तरह की शादी की पूरी तरह से मनाही है। इस तरह के विवाह के कई कानूनी परिणाम हो सकते हैं।
यदि 21 वर्ष से अधिक आयु का कोई लड़का 21 वर्ष से कम आयु की लड़की से विवाह करता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास, जिसे दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माने से जो एक लाख रुपए तक हो सकता है, या दोनों से दंडित किया जाएगा। .
जिसके विवाहित जोड़े से कोई बच्चा है, वह अदालत से शादी को रद्द करवा सकता है। शादी के बाद कभी भी कोर्ट में अर्जी दी जा सकती है। और दो साल के बच्चे होने के बाद भी।
जो कोई भी पंडित, मौलवी, माता-पिता, रिश्तेदारों, दोस्तों आदि जैसे बाल विवाह करवाता है या करवाता है, उसे दो साल तक के कठोर कारावास या एक लाख रुपये के जुर्माने या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
जिस व्यक्ति की देखभाल में बच्चा है, अगर वह बच्चे की शादी करवाता है, चाहे वह माता-पिता, अभिभावक या कोई अन्य व्यक्ति हो, तो उसे किसी भी अवधि के कारावास से दो साल तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माने से दंडित किया जाएगा। एक लाख रुपये तक या दोनों के साथ बढ़ाया जा सकता है।
जो कोई भी किसी भी तरह से बाल विवाह को बढ़ावा देता है, या जानबूझकर इसे लापरवाही से नहीं रोकता है, जो बाल विवाह में संलग्न है या बाल विवाह की रस्मों में संलग्न है, उसे किसी भी अवधि के कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे दो साल तक् की सजा दी ज सकती है।
प्रस्तावना –
भारतीय संस्कृति में सोलह संस्कारों में विवाह – संस्कार का विशेष महत्त्व है । वैदिक काल में यह संस्कार पवित्र भावनाओं का परिचायक था ,परन्तु परवर्ती काल में इसमें अनेक बुराइयाँ एवं कुप्रथाएँ समाविष्ट हो गईं । इन्हीं विकृतियों के फलस्वरूप हमारे देश में अनमेल विवाह तथा बाल विवाह का प्रचलन हुआ , जो कि हमारे सामाजिक – सांस्कृतिक जीवन के लिए घोर अभिशाप हैं ।
बाल विवाह की कुप्रथा –
इस कुप्रथा का प्रचलन मध्यकाल में हुआ , जब विदेशी – विधर्मी यवन – तुर्क आक्रान्ताओं ने अपनी वासना की पूर्ति के लिए कन्या अपहरण एवं जबर्दस्ती रोटी – बेटी का सम्बन्ध बनाने की कुचाल चली । इस कारण भारतीय समाज में अशिक्षित एवं अशक्त लोगों ने अपनी कन्या का बालपन में ही विवाह कराना उचित समझा । दहेज प्रथा के कारण भी बाल विवाह का प्रचलन हुआ । उस समय कन्या का जन्म अशुभ माना जाने लगा । बालक – बालिका पूर्णतया नासमझ रहने से अपने विवाह संस्कार का विरोध भी नहीं कर पाते और बाल विवाह में अधिक दहेज भी नहीं देना पड़ता । इसी कारण यह कुप्रथा निम्न – मध्यम वर्ग में विशेष रूप से प्रचलित हुई ।
बाल विवाह का अभिशाप –
विवाह संस्कार में कन्यादान पवित्र मांगलिक कार्य माना जाता है । इस अवसर पर कन्या के माता – पिता अपनी सामर्थ्य के अनुसार कन्या को कुछ उपहार भी देते हैं । यह प्रथा उत्तरोत्तर विकृत होती रही , फलस्वरूप लोग कन्या को भार मानने लगे तथा बालपन में ही उसका विवाह करवा कर अपने कर्त्तव्य से मुक्त होने लगे । परन्तु इस गलत परम्परा से समाज में अनेक समस्याओं का जन्म हुआ । बचपन में ही विवाह हो जाने से कम उम्र में ही सन्तानोत्पत्ति होने लगती है । जनसंख्या की असीमित वृद्धि तथा निम्नवर्ग के जीवन स्तर में निरन्तर गिरावट का एक कारण यह भी है । इन सब बुराइयों को देखने से बाल – विवाह हमारे समाज के लिए एक अभिशाप ही है ।
समस्या के निवारणार्थ उपाय –
बाल – विवाह की बुराइयों को देखकर समय – समय पर समाज – सुधारकों ने जन – जागरण के उपाय किये । भारत सरकार ने इस सम्बन्ध में कठोर कानून बनाया है और लड़कियों का अठारह वर्ष से कम तथा लड़कों का इक्कीस वर्ष से कम आयु में विवाह करना कानूनन निषिद्ध कर रखा है । फिर भी बाल – विवाह निरन्तर हो रहे हैं । अकेले राजस्थान के गाँवों में वैशाख मास में अक्षय तृतीया को हजारों बाल – विवाह होते हैं । इस समस्या का निवारण जन – जागरण से ही सम्भव है । सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार अब विवाह का पंजीकरण करना कानूनन अनिवार्य हो गया है । इससे भी अब बाल विवाह पर रोक लग सकती है । बाल – विवाह रोकने के और भी कठोर उपाय सरकार द्वारा किये जाने चाहिए । समाज – सुधारकों को इस दिशा में भरसक प्रयास करना चाहिए ।
उपसंहार-
बाल विवाह ऐसी कुप्रथा है , जिससे वर – वधू का भविष्य अन्धकारमय बन जाता है । इससे समाज में कई विकृतियाँ आ जाती हैं , कभी – कभी यौनाचार भी हो जाता है । अतः इस कुप्रथा का निवारण अपेक्षित है , तभी समाज को इस अभिशाप से मुक्त कराया जा सकता है ।
बाल विवाह पर निबंध (450 शब्द)

प्रस्तावना
भारतीय संस्कृति में सोलह संस्कारों में विवाह संस्कार का विशेष महत्त्व है । लेकिन इसमें धीरे – धीरे आने वाली विकृतियों के फलस्वरूप हमारे देश में बालविवाह का प्रचलन हुआ , जो हमारे सामाजिक – सांस्कृतिक जीवन के लिए घोर अभिशाप बन गया है ।
बाल – विवाह की कुप्रथा –
बाल विवाह की कुप्रथा का प्रचलन हमारे देश में मध्यकाल में विधर्मी आक्रान्ताओं के आने के कारण हुआ । उन्होंने अपनी वासना – पूर्ति के लिए कन्या अपहरण की कुचाल चली । जिसके कारण लोगों ने बालपन में ही अपनी कन्या का विवाह कराना उचित समझा । फिर दहेज आदि से बचने के कारण बाल – विवाह का प्रचलन हुआ । इस कारण यह कुप्रथा निम्न – मध्यम वर्ग में विशेष रूप से प्रचलित हुई ।
बाल – विवाह का अभिशाप –
विवाह – संस्कार में कन्यादान पवित्र मांगलिक कार्य माना जाता है । इस अवसर पर कन्या पक्ष की ओर से कुछ उपहार भी दिया जाता रहा है । लेकिन समय के प्रवाह से ऐसा उपहार देने में काफी विकृति आ गयी । परिणामस्वरूप दहेज माँग की समस्या खड़ी हो गयी और माता – पिता के लिए कन्या भार बन गयी । दहेज से मुक्ति पाने का कारण बाल विवाह प्रचलित हुआ जो एक समस्या तो थी ही , इससे और समस्याएँ उत्पन्न हो गयीं । जल्दी शादी होने से जनसंख्या में आशातीत वृद्धि होने लगी । जीवन – स्तर में गिरावट आने लगी । स्वास्थ्य की समस्या खड़ी हो गयी और बाल – विवाह एक अभिशाप बन गया ।
समस्या के निवारणार्थ उपाय –
बाल – विवाह की बुराइयों को देखकर समय – समय पर समाज – सुधारकों ने जन – जागरण के उपाय किये । भारत सरकार ने इस सम्बन्ध में कठोर कानून बनाया है और लड़कियों का अठारह वर्ष से कम तथा लड़कों का इक्कीस वर्ष से कम आयु में विवाह करना कानूनन निषिद्ध कर रखा है । फिर भी बाल – विवाह निरन्तर हो रहे हैं । अकेले राजस्थान के गाँवों में वैशाख मास की अक्षय तृतीया को हजारों बाल – विवाह होते हैं । इस समस्या का निवारण जन – जागरण से ही सम्भव है ।
उपसंहार-
बाल – विवाह ऐसी कुप्रथा है , जिससे वर वधू का भविष्य अन्धकारमय बन जाता है । इससे समाज में कई विकृतियाँ आ जाती हैं , कभी – कभी यौनाचार भी हो जाता है । अतः इस कुप्रथा का निवारण अपेक्षित है , तभी समाज को इस अभिशाप से मुक्त कराया जा सकता है ।