जून माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को वट सावित्री का व्रत किया जाता हैं,जो स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है।यह व्रत – मूलत : सौभाग्वती स्त्रियों का है । फिर भी सभी प्रकार की स्त्रियाँ कुमारी , विवाहिता , विधवा , कुपुत्रा , सुपुत्रा आदि इसे करती हैं । इस व्रत को करने का विधान ज्येष्ठ की अमावस्या को है । इस दिन वट बड़ या बरगद का पूजन होता है । इस व्रत को स्त्रियाँ अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं ।
वट सावित्री व्रत 2021 तारीख। Vat Savitri vrat 2021 date:
8 से 10 जून (कृष्ण पक्ष अमावस्या)
वट सावित्री पूजा की विधि। Vat Savitri pooja 2021.
व्रत – विधान प्रातःकाल स्नान आदि के पश्चात् बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करके ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें । इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करके टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखना चाहिए।ब्रह्मा और सावित्री के पूजन के पश्चात् सावित्री तथा सत्यवान की पूजा करके बड़ की जड़ में जल सींचना चाहिये । पूजा के लिए जल , मोली , रोली , कच्चा , सूत , भिगोये हुए चने , पुष्प तथा धूप होने चाहिये । जल से वट वृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करनी चाहिये । बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट – सावित्री की कथा सुननी चाहिये । भीगे हुए चनों का बायना निकालकर उस पर रुपये रखकर सासूजी के चरणस्पर्श करके उन्हें देना चाहिये । यदि सास दूर हो तो बायना बनाकर वहाँ भेज देना चाहिये । वट और सावित्री की पूजा के पश्चात् प्रतिदिन पान , सिन्दूर तथा कुमकुम से सौभाग्यवती स्त्री के पूजन का भी विधान है । पूजा की समाप्ति पर व्रत के फलदायक होने के लक्ष्य से ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएँ बांस के पात्र में रखकर दान करनी चाहिये ।
वट सावित्री व्रत कथा। but savitri vrat katha -1

but savitri vrat katha : भद्र देश के अश्वपति नाम का राजा था , जिसके संतान नहीं थी । उसने बड़े – बड़े पण्डितों को बुलाया और कहा , ” मेरे संतान नहीं है । इसलिए तुम ऐसा उपाय करो जिससे मेरे संतान हो जाये । ” पण्डित बोले ” राजन आपके भाग्य में एक लड़की लिखी है 12 वर्ष की आयु में ही उसके पति की मृत्यु होने से विधवा हो जायेगी । ” राजा ने कहा , ” क्या मेरे पुत्र नही होगा तो मेरा नाम कैसे चलेगा ? ” बाद में खूब यज्ञ – हवन इत्यादि कराये गये । जब पण्डितों ने कहा – उस लड़की से पार्वती की और बड़ सायत अमावस की पूजा कराना । यज्ञ – होम कराने से उसकी स्त्री गर्भवती हो गई और एक कन्या हो गई । तो उसका नाम सावित्री रखा गया । तब पण्डितों ने उसकी जन्मपत्रिका देखकर कहा कि जिस दिन यह कन्या 12 वर्ष की होगी , उस दिन इसका विधवा होने का योग है । इसलिए इससे पार्वतीजी और बड़ सायत अमावस की पूजा कराना । जब सावित्री बड़ी हुई तो उसका विवाह सत्यवान के साथ कर दिया । सावित्री के सास – ससुर अंधे थे । जिनकी वह बहुत सेवा करती थी और सत्यवान जंगल से लकड़ी तोड़कर लाया करता था और सावित्री को मालूम था कि जिस दिन 12 वर्ष की होगी उस दिन मेरे पति की मृत्यु हो जायेगी । जिस दिन जब वह 12 वर्ष की हुई उसे पता था कि आज उसके पति के मृत्यु होगी इसलिए उस दिन वह अपने पति से हाथ जोड़कर बोली , ” आज मैं भी आपके साथ चलूंगी । ” तब सत्यवान बोला , ” तू मेरे साथ चलेगी तो मेरे अन्धे माँ -बाप की कौन सेवा करेगा ? अगर वह कहेंगे तो तेरे को ले चलूंगा । ” फिर वह अपने सास – ससुर के पास गई और जाकर बोली , “ तुम कहो तो आज मैं जंगल देखने चली जाऊं । ” जब वह बोले , ” बहुत अच्छी बात है , चली जा । ” जंगल में जाकर सावित्री तो लकड़ी तोड़ने लगी और सत्यवान पेड़ की छाया में सो गया । उस पेड़ में एक सांप रहता था । जिसने उसको डस लिया । वह अपने पति को गोदी में लेकर रोने लगी तो महादेव और पार्वती जी वहाँ से जा रहे थे । उसने उनके पैर पकड़ लिए और बोली , “ मेरे पति को जिन्दा कर दो । ” जब वह बोले कि आज बड़ सायत अमावस है जिसकी तू पूजा करेगी तो तेरा पति जिन्दा हो जायेगा । फिर वह खूब प्रेम से बड़ की पूजा करने लगी । बड़ के पत्तों का गहना बना कर पहना जो हीरे मोती के हो गए । इतने में धर्मराज का दूत आ गया और उसके पति को ले जाने लगा तो उसने उसके पैर पकड़ लिए । तब धर्मराज बोला कि तू वरदान माँग । तो उसने कहा के मेरे माँ – बाप के पुत्र नहीं है । जब धर्मराज बोला कि सत्य वचन हो जाएगा । फिर वह बोली मेरे सत्यवान से 100 पुत्र हो जाएं । फिर धर्मराज बोला , 100 पुत्र हो जाएंगा । फिर वह सत्यवान को ले जाने लगे । सब सावित्री बोली के हे महाराज । आप मेरे पति को ले जायेंगे तो पुत्र कहाँ से होंगे ? फिर धर्मराज बोले – हे सती ! तेरा सुहाग तो नहीं था , परन्तु बड़ सायत अमावस करने से और पार्वती जी की पूजा करने से तेरा पति जीवित हो जायेगा और सारे में ढिंढोरा पिटवा दिया कि कहते सुनते जेठ की अमावस आएगी जब बड़ की पूजा करना और बड़ के पत्तों कागहना बना कर पहनना । बायना निकालना ! हे महाराज ! जैसे बड़ सायत अमावस ने सावित्री को सुहाग दिये उसी प्रकार सब को दियो । जो भी इस कहानी को कहता , सुनता है उसकी सब मनोकामानाएँ पूर्ण होती हैं ।
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वट सावित्री व्रत कथा। but savitri vrat katha -2
but savitri vrat katha : एक राजा था । उसके एक लड़की थी । उसका नाम सावित्री था । जब वह 12 वर्ष की हुई तो राजा ने उसकी जन्मपत्री पंडितों को दिखाई और वर खोजने के लिए कहा । पंडितों ने जन्मपत्री देखकर राजा को बताया कि उसकी शादी के एक साल बाद विधवा हो जाने का योग है । यह सुनकर राजा बहुत परेशान हुआ । अब तो राजा ने शादी के बारे में सोचना ही छोड़ दिया । जब सावित्री अट्ठारह वर्ष की हुई तब वह दिन अपनी सखी सहेलियों के साथ वन में भ्रमण करने के लिए गई हुई थी । वहाँ उसने एक सुन्दर युवक को लकड़ी काटते हुए देखा । उसने उससे शादी करने का फैसला किया । सत्यवान के पिता एक राजा थे किन्तु उसका राज्य दुश्मनों ने छीन लिया था और अब वे जंगल में झोंपड़ी बना कर रहते थे । राजा ने सावित्री की इच्छानुसार उसकी शादी सत्यवान से कर दी । सावित्री अपने अन्धे सास – सुसर की बहुत सेवा करती थी । वह बचपन से शिवजी की पूजा किया करती थी । इसे अपने भविष्य के बारे में मालूम था । शादी के बाद अपना बचा हुआ समय वह शिवजी के ॐ नमः शिवाय का जाप करने में बिताने लगी और आने वाले संकट से बचाने की प्रार्थना करने लगी । शिवजी ने स्वप्न में उससे की पूजा करने के लिए कहा । सावित्री ने बड़ की पूजा भी आरम्भ कर दी । जब शादी को साल पूरा होने में तीन दिन शेष रहे तब उसने खाना – पीना भी छोड़ दिया । जेठ की अमावस को सत्यवान जब लकड़ी काटने के लिये जंगल में जाने लगा तब हठ करके सावित्री भी साथ हो गई । लकड़ी काटते काटते सत्यवान के सिर में दर्द होने लगा । सावित्री ने उससे कहा कि वह कुछ देर आराम कर लेवें । वह सावित्री की गोद में सिर रखकर सो गया । जब यमराज सत्यवान की आत्मा को ले जाने लगे तब व्रत के प्रभाव से वे उसे दिखाई देने लगे । वह उनके पीछे – पीछे चल पड़ी । यमराज ने कहा- ” वह उनके पीछे न आवे और उन्हे अपना काम करने देवे । ” किन्तु वह नहीं मानी । पीछे – पीछे चलती रही । तब यमराज ने कहा- ” मुझे तुम्हारे पति को ले जाना ही पड़ेगा । इस बात को छोड़कर तुम जो चाहो माँग लो । ” सावित्री ने कहा , ” तो मैं सौ पुत्रों की माता बनूं तथा मेरे सास सुसर की आँखों की रोशनी तथा राज्य वापस मिल जावे । ” यमराज ने कहा , ” तथास्तु ऐसा ही होगा । ” इस प्रकार तीनों वर मांगे । यमराज फिर अपने भैंसे पर सवार होकर चल दिए । सावित्री फिर पीछे – पीछे आने लगी । यमराज ने कहा , ” अब तुम मेरे पीछे – पीछे क्यों आ रही हो ? ” सावित्री ने कहा , ” आप मेरे पति की आत्मा को ले जायेंगे तो मेरे पुत्र किस तरह से होंगे ? ” अब यमराज को ध्यान आया कि वह क्या वरदान दे बैठे हैं । लाचार होकर उन्होंने सत्यावान की आत्मा को मुक्त कर दिया । सत्यवान उठ कर बैठा हुआ । अब सावित्री ने गाजे – बाजे से सखी – सहेलियों के साथ वट की पूजा करी और वट के पत्तों के गहने बनाकर पहने तो वे हीरे – मोती के हो गये । वट पूजा का पानी सास – ससुर की आँखों में तो सास – सुसर की आंखें भी ठीक हो गई । फिर राज्य भी वापस मिल गया । तभी से वट वृक्ष पूजा जाने लगा । हे बड़ देवता जैसा सावित्री को सुहाग दिया , अन्न – धन दिया वैसा सबको देना ।