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शीतलाअष्टमी

होली के दूसरे दिन से 8 दिन बाद अष्टमी को शीतला अष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है। शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता के भोग लगाने से एक दिन पूर्व ही बास्योड़ा के दिन भोग बना लिया जाता है। और अष्टमी के दिन सुबह एक दिन पूर्व बनाए गए भोजन से भोग लगाया जाता है।

शीतला अष्टमी कब मनाया जाता है

शीतला माता का त्योहार शीतला अष्टमी चैत्र कृष्ण अष्टमी को मनाया जाता है। कुछ जगहों पर शीतला माता का त्योहार सप्तमी के दिन भी मनाया जाता है जिसे शीतला सप्तमी कहते हैं।

पूर्व तैयारी

शीतला अष्टमी के दिन ठंडे पकवानों से ही भोजन किया जाता है।अतः पूर्व तैयारी हेतु बास्योड़ा के दिन समस्त भोजन बनाना चाहिए, इनमें केर सांगरी, पचकुटे की सब्जी, पूरियां,खाजा,पापड़ पपड़ी बनाकर तनी और दही रात को ही जमा ले। साथ ही रात को चावल ,मक्की का दलिया, अच्छी तरह से उबालकर सीजाकर रख ले। अनेक प्रकार की मिठाइयां जैसे चक्की, गुलाब जामुन,शकरपारा आदि बना ले।

शीतला अष्टमी पूजन विधि

शीतलाअष्टमीअष्टमी के दिन प्रात काल ब्रह्म मुहूर्त में ही स्नानादि से निवृत्त होकर शीतला माता की पूजा करनी चाहिए। पूजा से पूर्व रात को बनाए गए चावल और मक्की के दलिए में दही अच्छी प्रकार से मिलाकर ओलिया बनाएं।चावल का शक्कर डालकर मीठा तथा मक्की का नमक डालकर औलिया बनाएं। अतः पूजन सामग्री में अन्य पकवानो के अतिरिक्त दही दोनों प्रकार के ओलिया भी रखें।तत्पश्चात आप शीतला माता की पूजा हेतु पधारे। शीतला माता की षोडशोपचार विधि द्वारा पूजा करें और साथ ही दही और ओलिये भी चढ़ाए। इस दिन कोई भी पकवान या भोजन सामग्री किसी प्रकार से गर्म नहीं करें ।आप ठंडे शीतल जल से ही स्नान करें ठंडा भोजन ही करें ग्राम पदार्थ जैसे चाय या दूध का सेवन नहीं करें। छोटे बच्चों की मां को इन बातों का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए क्योंकि यदि किसी बच्चे को माता जी निकल जाए तो शीतला माता की पूजा की जाती है यहां तक कि आप पूजा करने जाए तो अगरबत्ती और दीपक भी बिना जले ही माता जी को अर्पित करें।