सती अनुसूया की कहानी- एक बार महर्षि नारद भगवान शंकर , विष्णु और ब्रह्माजी से मिलने स्वर्ग लोग गए । किन्तु तीनों में से किसी से उनकी भेंट नहीं हो पाई । तीनों की धर्म – पत्नियां अपने – अपने लोक में अवश्य उपस्थित थीं । भेंट के दौरान महर्षि नारद ने यह अनुभव किया कि इन तीनों को ही अपने पतिव्रत धर्म , शील एवं सद्गुणों पर बड़ा गर्व है । अतः उन्होंने एक – एक के पास जाकर कहा , ” मैं अनुसूया के विश्वभर का भ्रमण करता हूँ । किंतु अत्रि ऋषि की पत्नी समान पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली शील एवं सद्गुण सम्पन्न स्त्री मैंने नहीं देखी न ही सुनी । ” यह सुनकर पार्वती , लक्ष्मी और सावित्री को बड़ी ईर्ष्या हुई ।
अब वे तीनों व्याकुलता से अपने पतियों के आने की प्रतीक्षा करने लगीं । अपने – अपने स्वामी के आगमन पर उन्होंने अपने पति से प्रार्थना की कि वे सती अनुसूया का प्रतिधर्म भंग करें । अर्धांगिनियों के कहने पर तीनों देवता इस हेतु राजी हो गए । अब वे तीनों एक साथ अत्रि ऋषि के आश्रम में इस कार्य हेतु पहुँचे । पूर्णतः योजना बनाकर वे तीनों याचक के रूप में भिक्षा माँगने गए । जब अनुसूया भिक्षा देने आई तो अतिथि सेवा में तत्पर अनुसूया ने कहा , ” आप लोग गंगा स्नान करके आइये तब तक मैं भोजन तैयार करती हूँ । ” स्नान के बाद अनुसूया ने उन्हें भोजन परोसा । तब तीनों देवता बोले कि जब तक तुम नग्न होकर भोजन नहीं परीसोगी तब तक हम भोजन नहीं करेंगे ।
अब पतिव्रत धर्म का पालन करने के कारण उसे देवताओं का छल – कपट ज्ञात हो गया । फिर वे तीनों को बिठाकर अपने पति अत्रि ऋषि के पास गई और उनके चरण धोकर जल ले आई । उस जल को उन्होंने देवताओं पर छिड़क दिया । जल के प्रभाव से तीनों देवता दूध मुहे बच्चे बनकर बाल – क्रीड़ाएं करने लगे । तब अनुसूया ने उन तीनों को दूध पिलाकर पालने में सुला दिया । इस प्रकार कई दिन बीत गए । जब तीनों देवता लौटकर अपने लोक नहीं पहुँचे तो देव – पत्नियाँ चिन्तित हुईं । फिर एक दिन नारद जी से ही उन्हें ज्ञात हुआ कि वे अत्रि ऋषि के आश्रम के आसपास देखे गए हैं । अब तीनों देव पलियाँ अपने पति के विषय में सती अनुसूया से पूछने लगीं तब अनुसूया ने पालने की ओर संकेत किया और कहा पहचान लो । तीनों ही किसी भी प्रकार अपने पति को नहीं पहचान पाई तो हाथ जोड़कर अनुसूयाजी प्रार्थना करने लगीं ” हे देवी ! हमें अपने – अपने पति अलग – अलग प्रदान कीजिए । ” देवी अनुसूया बोली , ” इन्होंने मेरा दूध पिया है । अतः ये मेरे बच्चे हुए । अब इन्हें किसी न किसी रूप में मेरे पास ही रहना होगा ।
” इस पर तीनों देवताओं के संयुक्त प्रयास से एक देवी तेज प्रकट हुआ जिसके तीन सिर और छ : भुजाएं थीं । इसी अलौकिक अवतार का नाम “ दत्तात्रेय ” रखा गया । अनुसूया ने पुनः पति के चरण धोये और जल को देवताओं पर छिड़का तो वे अपने पूर्व रूप में आ गए ।
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