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सम्राट विक्रमादित्य की मृत्यु कैसे हुई थी। Raja vikramaditya ki Mrityu kaise hui.

इस पोस्ट में हम जानेंगे सम्राट विक्रमादित्य के बारे में तथा सम्राट विक्रमादित्य की मृत्यु कैसे हुई थी।सम्राट विक्रमादित्य का नाम विक्रम सेन था। महाराज विक्रमादित्य उज्जैन के राजा थे। जो अपने न्याय वीरता पराक्रम शौर्य ज्ञान तथा उदारशिलता के लिए प्रसिद्ध थे। कलिकाल के 3000 वर्ष बीत जाने के पश्चात 101 ईसा पूर्व विक्रमादित्य का जन्म हुआ था। विक्रमादित्य के पिता का नाम गर्दभील्ल( गंधर्वसेन) था। सम्राट विक्रमादित्य की बहन का नाम मैनावती था तथा उनके भाई भर्तृहरि महाराज थे। सम्राट विक्रमादित्य की मां का नाम सौम्यदर्शना था। महाराज विक्रमादित्य की 5 पत्नियां भी थी जिनका नाम मलावती, मदनलेखा, पद्मिनी,चेल्ल और चिल्लमहादेवी था। महाराज के 2 पुत्र विक्रमचरित और विनयपाल थे तथा उनकी दो पुत्रियां विधोत्तमा(प्रियगुंमजंरी) तथा वसुंधरा थी। सम्राट विक्रमादित्य के एक भांजा था जिसका नाम गोपीचंद था। तथा उनके प्रमुख मित्रों में भट्टमात्र का नाम आता है।  महाराज विक्रमादित्य के राज में राजपुरोहित त्रिविक्रम तथा वसुमित्र थे। तथा उनके सेनापति विक्रम शक्ति तथा चंद्र थे। महाराज विक्रमादित्य ने शको को परास्त किया था। उन्होंने अपनी जीत के साथ ही हिंदू विक्रम संवत की शुरुआत की थी। तथा नौ रत्नों की शुरुआत भी महाराज विक्रमादित्य द्वारा ही की गई। जिसको तुर्क राजा अकबर ने भी अपनाया था।

सम्राट विक्रमादित्य अत्यंत ही पराक्रमी राजा थे। उनके सामने खड़े होने का साहस किसी में भी नहीं था। तो आइये जानते हैं कि सम्राट विक्रमादित्य कि मृत्यु कैसे हुई थी।

राजा विक्रमादित्य कि मृत्यु कैसे हुई। सम्राट विक्रमादित्य की मृत्यु कैसे हुई थी

सम्राट विक्रमादित्य की मृत्यु कैसे हुई थी। Raja vikramaditya ki Mrityu kaise hui.
Raja vikramaditya ki Mrityu kaise hui(Raja vikramaditya ki Mrityu kaise hui)

How did King Vikramaditya die? – सम्राट विक्रमादित्य की मृत्यु के बारे में इक्कतीस वी पुतली कौशल्या ने बताया। जब सम्राट विक्रमादित्य वृद्धावस्था में आ गए थे तो उन्होंने अपने योग बल से यह जान लिया था कि उनका अंतिम समय अब निकट है। महाराज विक्रमादित्य राज कार्य तथा धर्म में स्वयं को लगाए रखते थे और उन्होंने वन में साधना के लिए एक कुटिया बनाई थी। एक दिन उन्होंने देखा की कुटिया में सामने वाले पहाड़ से प्रकाश आ रहा है इस प्रकाश के बीच उनको एक सुंदर महल दिखाई दिया। महाराज को भवन देखने की जिज्ञासा हुई और उन्होंने मां काली द्वारा प्रदत दो बेतालो का स्मरण किया। उनके आदेश पर दोनों बेताल उनको पहाड़ी पर ले आए। तथा उन्होंने कहा कि हम इससे आगे नहीं जा सकते कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि एक योगी महात्मा ने इस महल के चारों ओर तंत्र शक्ति का घेरा बनाया हुआ है और इस भवन में उनका निवास है। तथा इस भवन में वही प्रवेश कर सकता है जिसका पुण्य उन योगी से अधिक हो। वास्तविकता जानने के पश्चात सम्राट विक्रमादित्य ने महल की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए वह जानना चाहते थे कि उनका पुण्य उन योगी से अधिक है या नहीं।  चलते-चलते वह उस भवन के प्रवेश द्वार तक आ गए तथा एकाएक उनके पास एक अग्नि पिंड आया और वहां पर स्थिर हो गया तथा महल के अंदर से एक आज्ञा भरा स्वर आया। उसके बाद वह अग्नि पिंड चलता हुआ महल के पीछे चला गया तथा दरवाजा साफ हो गया जब वह अंदर गए तो वही आवाज उनसे उनका परिचय पूछने लगी। तथा उन्होंने कहा कि वह सब कुछ साफ-साफ बताएं वरना वे अपने श्राप से आने वाले को भस्म कर देंगे। महाराज विक्रमादित्य तब तक एक कक्ष में पहुंच चुके थे।  उनको देखकर वहां एक योगी खड़े हुए। जब महाराज विक्रमादित्य ने बताया कि वे उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य है तो योगी ने कहा कि वे स्वयं को भाग्यशाली समझते हैं उनको आशा नहीं थी कि विक्रमादित्य के दर्शन होंगे योगी ने उनका बहुत आदर सत्कार किया। तथा महाराज विक्रमादित्य से कुछ मांगने को कहा तब महाराज विक्रमादित्य ने तमाम सुख-सुविधाओं से सहित यह भवन मांगा वे योगी खुशी-खुशी यह भवन महाराज विक्रमादित्य को सौंपकर उसी वन में कहीं चले गए। काफी दूर चलने के पश्चात उन योगी को उनके गुरु मिले। जब उनके गुरु ने उनसे इस तरह बन में भटकने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि वे उस भवन को महाराज विक्रमादित्य को भेंट कर चुके हैं। यह सुनकर उनके गुरु को हंसी आ गई उन्होंने कहा कि इस पृथ्वी के सबसे दानवीर व्यक्ति को वह क्या दान करेंगे। उन्होंने योगी से कहा कि वह ब्राह्मण रूप में जाकर विक्रमादित्य से उस भवन को मांग ले। तब योगी ने ब्राह्मण का वेश बनाकर विक्रमादित्य के पास उस कुटिया में गए। तथा रहने के लिए आश्रय प्रदान करने की मांग की तब महाराज विक्रमादित्य ने कहा कि वे अपनी इच्छा अनुसार रहने की जगह मांग सकते हैं तब उन्होंने उस महल को मांगा तो महाराज विक्रमादित्य मुस्कुरा उठे उन्होंने कहा कि उन्होंने उस महल जो का तो वहीं छोड़ कर आ गए थे। मैं तो बस उनकी परीक्षा लेना चाहते थे।  इक्कतीस वी पुतली ने बताया कि महाराज विक्रमादित्य देवताओं के समान गुणों वाले थे। लेकिन उन्होंने मृत्यु लोक में जन्म लिया था तो था वह मानव थे इसलिए उन्होंने एक दिन अपनी देह त्याग कर दिया। उनकी मृत्यु के पश्चात प्रजा में हाहाकार मच गया चारों ओर विलाप होने लगा जब उनकी चिता सजाई गई तो देवताओं ने उनकी चिता पर पुष्प वर्षा की।

महाराज विक्रमादित्य के पश्चात उनके बड़े पुत्र को राजगद्दी दी गई लेकिन वह उस सिंहासन पर बैठ नहीं सका उसको समझ नहीं आया कि वह क्यों इस सिंहासन पर नहीं बैठ पा रहा है। फिर एक दिन स्वय महाराज विक्रमादित्य उसके सपने में आए और कहाँ के तुम इस सिंहासन पर तभी बैठ सकोगे जब तुम देवत्व को प्राप्त कर लोगे। और जब तुम अपने पुण्य तथा यश से इस सिंहासन पर बैठने लायक हो जाओगे तो मैं स्वयं  तुम्हारे सपने में आकर तुम्हें बता दूंगा। लेकिन महाराज विक्रमादित्य उनके सपने में नहीं आए तब उज्जैन के विद्वानों ने महाराज विक्रमादित्य की मौत के पश्चात उनके बराबर का योग्य के राजा न होने के कारण इसे दफनाने का फैसला लिया। महाराज विक्रमादित्य ने सपने में आकर फिर कहां कि कालांतर में अगर कोई सर्वगुण संपन्न राजा होगा तो यह सिंहासन स्वयं ही उसके अधीन हो जाएगा। उनके पुत्र ने महाराज विक्रमादित्य की आज्ञा के अनुसार मजदूरों को बुलाकर सिंहासन को जमीन में गढ़वा दिया तथा स्वयं खंभावती में राज करने लगे।

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