अशोकाष्टमी का त्यौहार चैत्र शुक्ल अष्टमी को मनाया जाता है । इस दिन अशोक वृक्ष के पूजन का विधान है । हिंदू धर्म में अशोक अष्टमी को बहुत ही पुण्य दायिनी बताया गया है माना जाता है कि जो भी अशोक अष्टमी का व्रत करता है उसके सभी शौक दूर होते हैं।
अशोक अष्टमी का महत्व – अशोक अष्टमी के व्रत का वर्णन स्वयं ब्रह्माजी के मुख से हुआ है इसलिए अशोक अष्टमी व्रत को महत्वपूर्ण माना जाता है। अशोक अष्टमी के दिन यदि पुनर्वसु नक्षत्र हो तो यह अधिक शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अशोक अष्टमी को अशोक के वृक्ष के नीचे बैठने से मनुष्य के सभी शोक का नाश होता है, और जो भी मनुष्य अशोक अष्टमी का व्रत करता है उसका जीवन हमेशा शोक मुक्त रहता है।

अशोका अष्टमी की कथा – इसके सम्बन्ध में एक अति प्राचीन कथा है कि रावण की नगरी लंका में अशोक वाटिका में निवास करने वाली चिरवियोगिता सीता को इसी दिन श्री हनुमान जी द्वारा अंगूठी तथा सन्देश प्राप्त हुआ था । इसलिए इस दिन अशोक वृक्ष के नीचे भगवती जानकी तथा श्री हुनमान जी की प्रतिमा स्थापित कर विधिवत् पूजा करते हैं । श्री हनुमानजी द्वारा सीता जी खोज की कथा रामचरितमानस श्रवण से ज्ञात होती है । इस दिन अशोक वृक्ष की कलिकाओं का रस निकालकर पान करना चाहिये । इससे शरीर के रोग – विकार का समूल नाश हो जाता है ।