शास्त्र अनुसार इस दिन से सतयुग और त्रेता युग का आरंभ माना जाता है क्योंकि इस दिन किया हुआ तप,जप,ज्ञान तथा दान अक्षय फलदायक होता है इसलिए इसे अक्षय तृतीया कहते हैं।
यदि यह व्रत सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र में आए तो महा फलदायक माना जाता है। यदि तृतीया मध्याह्न से पूर्व प्रारंभ होकर प्रदोष काल तक रहे तो श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन किए जाने वाले प्रत्येक प्रकार के शुभ कार्यों का अति श्रेष्ठ फल मिलता है।
अक्षय तृतीया का महत्व_
संपूर्ण वर्ष में अक्षय तृतीया एक मात्र बिन पूछा अति शुभ मुहूर्त है।विवाह व्यापार का शुभारंभ भवन आदि का निर्माण आदि समस्त प्रकार के मांगलिक कार्य इस दिन निसंकोच संपन्न किए जा सकते हैं। शास्त्र के अनुसार भी अधिकांश शुभ व पूजनीय कारी इसी दिन होते हैं जिन से मनुष्य का जीवन धन-धान्य युक्त हो जाता है और मनुष्य दिन श्री गंगा जी में स्नान करते हैं तो उन्हें पापों से मुक्ति भी मिल जाती है।
इस दिन प्रात काल पंखा, चावल, घी,चीनी, साग, इमली, फल तथा वस्त्र का दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा भी देना चाहिए। इसी दिन श्री बद्रीनारायण के पट छःमहीने बाद खुलते हैं। श्रद्धालु मंदिर में जाकर बद्री नारायण जी का चित्र सिंहासन पर रखकर उन्हें मिश्री तथा भीगे चने की दाल का भोग लगाते हैं। इस दिन भगवान की तुलसी जल चढ़ाकर भक्ति पूर्वक आरती करनी चाहिए।
वृंदावन के बांके बिहारी जी के मंदिर में केवल इसी दिन विग्रह के चरण दर्शन होते हैं अन्यथा पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। नर नारायण ने भी इसी दिन अवतार लिया था। भगवान परशुराम का उत्तरण भी इसी दिन हुआ था इसी दिन परशुराम जी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा महत्व माना जाता है।ह्मग्रिव का अवतार भी इसी दिन हुआ था।
आखा तीज पर दान का महत्व
यह दान प्रधान है। आखा तीज के अवसर पर जल से भरे कुंभ का मंदिर में दान करने से भगवान ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों की कृपा दृष्टि होती है।आखा तीज के आसपास पढ़ने वाली में सक्रांति में ब्राह्मणों को चीनी या गुड़ के साथ सत्तू का दान करना चाहिए इस दिन दान करने से पितरों को अक्षय की तृप्ति होती है और इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए।