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कृष्ण जन्माष्टमी की कहानी और जन्माष्टमी व्रत विधि।krishna janmashtami ki katha(janmashtami ki kahani)

कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी को भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में पूरे भारत देश में व्यापक रूप से मनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि के समय वृष के चंद्रमा में हुआ था।

यह पाप नाशक व्रत बालक, युवा, वृद्ध, सभी स्त्री-पुरुष करते हैं। इस दिन कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत किया जाता है और जन्माष्टमी की कहानी सुनी जाती है इससे पापों का नाश होता है और सुख सौभाग्य में वृद्धि होती है। इस पोस्ट में हम जानेंगे जन्माष्टमी व्रत विधि और जन्माष्टमी की कहानी के बारे में

जन्माष्टमी व्रत विधि (जन्माष्टमी की पूजा),janmashtami vrat ki vidhi

इसके लिए सप्तमी के दिन हल्का एवं सात्विक भोजन करना चाहिए अगले दिन अर्थात अष्टमी को उपवास के दिन प्रात काल स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान सूर्य, सोम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पाल, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मा जी को प्रणाम करके पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठते है। इसके बाद हाथ में जल, फल, कुश, पुष्प, और गंध लेकर निम्न मंत्र से संकल्प करते हैं –

ममखिलपापप्रशमन पूर्वक सर्वाभीष्टसिद्धये

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये।

मध्याह्न के समय काले तिलों के जल में स्नान कर देवकी जी के लिए सूतिका ग्रह नियत करें उसे स्वच्छ और सुंदर करके उसमें सूतीका के उपयोगी समस्त सामग्री यथा स्थान रखकर श्री कृष्णा और देवकी की छवि स्थापित करें साथ ही लक्ष्मी जी का चित्र भी रखें फिर इनका विधिवत पूजा करें।

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन अनेक मंदिरों या स्थानों पर श्री कृष्ण के जीवन से संबंधित झांकियां बनाई जाती है और श्री कृष्ण की झांकियां निकाली जाती है भगवान श्री कृष्ण से संबंधित गीत या भजन सभी वाद्य यंत्रों की ध्वनि के साथ गाये व सुने जाते है और जन्माष्टमी की कहानी सुनी जाती है। जो भी व्यक्ति यह व्रत कर जन्माष्टमी के कहानी सुनता है उसे ऐश्वर्य और मुक्ति की प्राप्ति होती है।

जन्माष्टमी के दिन पूरे दिन उपवास के बाद रात के 12:00 बजे श्री कृष्ण जन्म होने पर श्री कृष्ण की आरती करके फलाहार भोजन किया जाता है अनेक स्थानों पर इस दिन अखंड रामायण का पाठ भी किया जाता है हे। लोग कृष्ण जन्माष्टमी की कहानी सुनते हैं और रामधुनी भी करते हैं। जो मनुष्य भक्ति भाव से जन्माष्टमी व्रत कथा अथवा जन्माष्टमी की कहानी सुनता है उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी की कहानी। janmashtami ki kahani(katha).

कृष्ण जन्माष्टमी की कहानी और जन्माष्टमी व्रत विधि।krishna janmashtami ki katha(janmashtami ki kahani)
कृष्ण जन्माष्टमी की कहानी।

जन्माष्टमी की कहानी द्वापर युग में जब पृथ्वी पाप और अत्याचारों के भार से दबने लगी तो पृथ्वी गाय का रूप बनाकर सृष्टि करता विधाता ब्रह्मा जी के पास गई। सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए और ब्रह्मा जी को पृथ्वी की दुखांत कथा सुनाई। वहां उपस्थित सभी देवताओं ने निर्णय किया कि इस संकट के समाधान हेतु भगवान विष्णु के पास जाएंगे और सभी लोग पृथ्वी को साथ लेकर क्षीर सागर में भगवान विष्णु जी के पास पहुंचे।

जहां भगवान विष्णु शेष शैय्या पर शयन कर रहे थे। वहां जाकर सभी देवता गण भगवान विष्णु की स्तुति करने लगे स्तुति करने से भगवान विष्णु की निद्रा भंग हुई तब विष्णुजी ने सब से आने का कारण पूछा। तब दीन वाणी से पृथ्वी बोली – महाराज! संपूर्ण भूमंडल पाप और अत्याचारों से घिर गया है और पृथ्वी इन पाप और अत्याचारों के भार में दबने लगी है इसलिए कृपा करके इस संकट का निवारण करें।

यह सुनकर भगवान बोले – मैं ब्रज मंडल में वसुदेव गोप की भार्या कंस की बहन देवकी के गर्भ से जन्म लूंगा। इसलिए तुम ब्रजभूमि में जाकर यादव कुल में अपना शरीर धारण करो इतना कहकर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए और देवता तथा पृथ्वी ब्रजभूमि में आकर यादव कुल के नंद यशोदा तथा गोपियों के रूप में पैदा हुए।

इसके बाद कुछ दिन ऐसे ही व्यतीत हो गए। वसुदेव नवविवाहित देवकी तथा साले कंस के साथ गोकुल में जा रहे थे तभी अचानक भविष्यवाणी हुई की हे कंस जिसको तू अपनी बहन समझकर अपने साथ लेकर जा रहा है उसी के गर्भ से आठवां पुत्र होगा जो तेरी मृत्यु का कारण बनेगा। इतना सुनते ही कंस तलवार उठा कर देवकी को मारने के लिए दौड़ा।

तब वसुदेव ने कहा – कंस। यह औरत बेकसूर है और बेकसूर स्त्री को मारना उचित नहीं है इसलिए जब भी देवकी के गर्भ से पुत्र का जन्म होगा तो पैदा होते ही मैं आपको अपनी सब संतान दे दूंगा तो आपको कौन मारेगा? कंस ने उनकी बात मान ली और वसुदेव तथा देवकी को ले जाकर जेल में बंद कर दिया।

जब भी देवकी के पुत्र होता तो कंस उन्हें मार देता। देवकी के साथ पुत्र मारे जाने के बाद आठवें गर्भ की बात कंस को मालूम हुई इस बात का पता चलते ही कंस ने देवकी और वसुदेव को विशेष कारागार में डलवा कर पहरा लगवा दिया। भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भयावानी रात के समय जब शंख, गदा, पद्मधारी भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ तो चारों ओर प्रकाश फैल गया।

लीलाधारी भगवान की यह लीला देखकर वसुदेव और देवकी उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गये। भगवान श्री कृष्ण ने जब अपना बालस्वरूप लिया तब देवकी और वसुदेव के हाथों की हथकड़ियां टूट कर खुल गई दरवाजे अपने आप खुल गए और पहरेदार सोते हुए नजर आए। तब वसुदेव कृष्ण जी को अपने साथ लेकर वहां से निकल गए।

जब वसुदेव ने यमुना को पार करने के लिए अंदर प्रवेश किया तो यमुना का स्तर बढ़ने लगा भगवान के चरण कमल छूने को लालायित यमुना कृष्ण द्वारा पैर लटका देने पर भगवान के चरण कमलों को स्पर्श कर उतर गई व बिल्कुल घट गई। वसुदेव यमुना पार कर गोकुलधाम पहुंच गए वाह जाकर खुले दरवाजे और सोई हुई यशोदा को देखकर बालक कृष्ण को वही सुला दिया और सोई हुई कन्या को लेकर चले आए।

जब वसुदेव वापिस कारागार में पहुंचे तो अपने आप उनके बेड़िया लग गई और दरवाजे बंद हो गए दरवाजे बंद होने के बाद वहां सोए हुए पहरेदार भी जग गए। हथकड़ियां लगने के बाद कन्या रोने लगी तब जगे हुए पहरेदारो ने कन्या का रुदन सुनकर तुरंत कंस के पास खबर भेज दी की देवकी का आठवां पुत्र जन्म ले चुका है। यह सुनकर कंस तुरंत दौड़ता हुआ आया।

जब कंस ने कन्या को हाथ में लेकर पत्थर पर पटक ना चाहा तो कन्या हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और साक्षात देवी के रूप में प्रकट होकर बोली – हे कंस। तुम्हें मारने वाला तो गोकुल में पहले ही पैदा हो चुका है। पापी कंस अब वही तुम्हारा वध करेगा। यही भगवान बड़े होकर अकासुर और तारकासुर तथा कंस जैसे क्रूर राक्षसों का वध कर पृथ्वी तथा भक्त जनों की रक्षा की

यह थी जन्माष्टमी की कहानी(janmashtami ki kahani) । कृष्ण जन्माष्टमी की कहानी सुनने के बाद भगवान श्री कृष्ण जी की आरती करें। और हम आशा करते हैं कि आपको कृष्ण जन्माष्टमी की कहानी(janmashtami ki kahani) पसंद आई होगी धन्यवाद।

जन्माष्टमी की कहानी सुनकर करें श्री कृष्ण जी की आरती।

जय श्री कृष्ण हरे प्रभु जय श्री कृष्ण हरे ।
सकल जगत के प्राणी दुःख सन्ताप हरे ।
जय श्री कृष्ण हरे ।
मोर मुकुट सिर सोहे कर मुरली धारी ।
सुर नर मुनि सब मोहे सुन्दर छवि प्यारी ।
जय श्री कृष्ण हरे ।
ऊखल आप वेधा कर यमुला जिन हारी ।
वृन्दावन प्रभु आकर लीला बहुत करी ।
जय श्री कृष्ण कृष्ण हरे ।
अघासुर खेल दिखाकर काली नाग हरी।
अद्भुत खेल दिखाकर काली नाग हरी ।
जय श्री कृष्ण हरे ।
पान किया दाबानल गिरी पूजा कीनी ।
लीला रास रचाकर सुध हर लीनी ।
जय श्री कृष्ण हरे ।
प्रेम सहित नित आरती अर्जुन मैं गाऊँ ।
चरणकमल संग प्रति यह प्रभु वर चाहूँ ।
जय श्री कृष्ण हरे । ।

जन्माष्टमी का उद्यापन

जन्माष्टमी का उद्यापन वही स्त्री कर सकती है जो गर्भवती हो 16 नारियल लेकर प्रत्येक पर कुमकुम का टीका लगाकर कलपते हैं। प्रत्येक नारियल को एक एक गर्भवती स्त्रियों को देते हैं और साथ ही उद्यापन हेतु भोजन के लिए निमंत्रित करते हैं। संपूर्ण भोजन में खीर विशिष्टतया बनाते हैं और रात्रि 12:00 बजे श्री कृष्ण जन्मोत्सव के पश्चात सभी 16 गर्भवती स्त्रियों को भोजन कराते हैं।

इस प्रकार से उद्यापन के पीछे यह धार्मिक मान्यता है कि गर्भवती स्त्री को भोजन कराना सर्वोच्च स्तर का सर्वश्रेष्ठ दान माना जाता है अतः इतना दान पुण्य करके श्रीफल(नारियल) भेंट करने के पश्चात ईश्वर से इस आशा से प्रार्थना करते हैं कि है श्रीकृष्ण मुझे भी आप जैसा ही पुत्र प्रदान करना। इसके साथ ही जन्माष्टमी व्रत कथा अथवा जन्माष्टमी की कहानी सुनी जाती है।

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