भविष्य पुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल अष्टमी को भवानी का प्रादुर्भाव हुआ था। इस दिन कुंवारी कन्याएं और सुहागिनी औरतें पार्वती जी की गोबर से निर्मित प्रतिमा का पूजन करती है। नवरात्रि के पश्चात इसी दिन दुर्गा का विसर्जन किया जाता है इसलिए इसे दुर्गाष्टमी भी कहते हैं। इस पर्व पर नवमी को प्रातः काल देवी का पूजन होता है अनेक पकवान से श्री दुर्गा देवी को भोग लगाया जाता है। पार्वती जी के निमित्त व्रत करने वाली स्त्रियों को पति सेवा का भाव नहीं भूलना चाहिए इसी में इस व्रत का कीर सार्थकता है।
दुर्गा पूजा की अष्टमी व नवमी की पूजन विधि

दुर्गा अष्टमी का महत्व
नवरात्रि में स्त्रियों द्वारा नित्य प्रति माताजी की षोडशोपचार विधि द्वारा पूजा की जाती है। और सोलह सिंगार की संपूर्ण माताजी को अर्पित की जाती है। सुहागिन स्त्रियां अपने सुहाग की अमरता हेतु प्रार्थना एवं पूजा करती है क्योंकि श्री दुर्गा माता सुहाग की अमरता एवं मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली देवी है। नवरात्रि में नौ दिनों तक व्रत या उपवास रखना चाहिए और विभिन्न स्रोतों एवं मंत्रों उपासना से देवी को प्रसन्न करने का प्रयास करें।