प्रदोष व्रत: कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी
प्रदोष व्रत कथा

भिक्षा में जो मिलता उससे अपना कार्य चलाती और शिव जी का प्रदोष व्रत भी करती। एक दिन जब वह भिक्षा के लिए अपने पुत्र के साथ जा रही थी तो मार्ग में उन्होने विदर्भ देश के राजकुमार को देखा।
शत्रु ने उसे उसकी राजधानी से बाहर निकाल दिया था और उसके पिता को मार दिया था। अतः वह मारा मारा फिर रहा था। ब्राह्मणी उस राजकुमार को अपने साथ ले आई और अपने पुत्र के साथ उसका पालन-पोषण करने लगी। एक दिन उन दोनों राजकुमार और ब्राह्मण बालक ने वन में गंधर्व कन्याओं को देखा। ब्राह्मण बालक घर लौट आया किंतु राजकुमार साथ नहीं आया क्योंकि वह अंशुमति नाम की गंधर्व कन्या से बातें करने लगा जो अपने माता-पिता के साथ बैठी थी। कुछ दिन पश्चात अंशुमति के माता-पिता ने राजकुमार धर्म गुप्त से कहा है कि तुम विदर्भ देश के राजकुमार धर्मगुप्त हो।
हम श्री शंकर जी की आज्ञा से अपनी पुत्री अंशुमति का विवाह तुम्हारे साथ कर देते हैं।
राजकुमार धर्मगुप्त का विवाह अंशुमति के साथ हो गया। बाद में राजकुमार ने गंधर्व राज की सेना की सहायता से विदर्भ देश पर अधिकार कर लिया। और ब्राह्मणी के पुत्र को अपना मंत्री बना दिया। यथार्थ में यह सब ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत करने का फल था इस प्रकार प्रदोष व्रत संसार में प्रतिष्ठित हुआ।
प्रदोष व्रत में खाने के नियम
प्रदोष व्रत के दिन उपवास रखने वाले व्यक्ति हरे मूंग का सेवन कर सकता है, क्योंकि यह मंदाग्नि को शांत करता है।
उपवास के दिन सादा नमक और लाल मिर्च का सेवन नहीं करते हैं। फलाहार का सेवन कर सकते हैं।
प्रदोष व्रत करने की विधि

और गाय के गोबर से पूजा घर को लीपकर भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग स्थापित करें।
पूरे घर की साफ सफाई रखें। और भगवान शिव की पूजा करें। इस दिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए।