यह त्यौहार दीपावली आने की पूर्व सूचना देता है । यह त्यौहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है । इस दिन घर में लक्ष्मी का आवास मानते हैं । इस दिन धन्वन्तरि वैद्य समुद्र से कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए धनतेरस को धन्वन्तरि जयंती भी कहते हैं । अतः धन्वन्तरि जी का पूजन किया जाता है ।
इसी त्रयोदशी को वैदिक देवता यमराज का भी पूजन किया जाता है । इस दिन यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है ।
रात को घर की स्त्रियाँ दीपक में तेल डालकर चार बत्तियाँ जलाती है और जल , रोल , चावल , गुड़ , पुष्प , नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर यम का पूजन करती हैं । धन्वन्तरि जी का पूजन करके पुराने बर्तनों को बदलना और नये बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है । विशेषतया चाँदी के बर्तन खरीदने से अत्यधिक पुण्य लाभ होता है ।
धनतेरस पूजन विधि

- कार्तिक लगते ही तेरस को धन तेरस कहते हैं । धन तेरस के दिन एक मिट्टी का दीया बना लें ।
- बाद में रात को जीमने के बाद सिर्फ औरतें दीये की पूजन करें और दीये में तेल डालकर उसमें चार बत्ती एक कोड़ी में छेद कर दीया जला दे ।
- जल के छींटा दें , रोली चावल , चार सुपारी , थोड़ा सा गुड़ , फूल , दक्षिणा , धूप रख दें ।
- चार फेरी देकर बाद में दीया उठाकर अपने घर के आगे रख दें ।
- सुबह दीयें में से कोड़ी निकाल कर रख दें ।
- यदि धन तेरस के दिन आपके घर में पुराना बर्तन हो तो उसको देकर नया बर्तन ले आवें । हो सके तो चांदी का बर्तन भी मंगवाना चाहिए ।