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सूरज जी का रोट व्रत का उद्यापन,Suraj ji ka rot vrat ka udyapan

सूरज भगवान के व्रत का उद्यापन रविवार को ही होता है होली के बाद और गणगौर से पहले किसी भी रविवार को यह उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन के पहले मेहंदी लगा ले। उद्यापन के दिन सिर नहाना चाहिए। इस दिन मोयन और अजवाइन डाल कर दो रोड बनाए नमक नहीं डाले। आटे को गूंथकर कुछ भी डिजाइन बना ले बीच में एक अंगूठे के निकल जाने जितना बड़ा छेद कर दें। रोट बनाते समय रोट टूटना नहीं चाहिए इसका विशेष ध्यान रखा जाए। दूसरा रोट खुद को ही खाना है यह रोट इतना ही बड़ा बनाओ जितना खा सको क्योंकि झूठा नहीं छोड़ा जाता हैं और ना ही दूसरी रोटी लेते हैं। लेकिन मिठाई जैसे हलवा या घेवर तो ले सकते हैं। एक थाली में चावल, रोली, लच्छा,मेहंदी व घेवर का टुकड़ा और जल का लोटा रख ले और उस थाली में पूजा का रोट भी रख ले। यदि रोट नहीं बनाया तो एक घेवर रख लो।

दूसरी थाली में आठ घेवर तथा आठ प्लेटे रखें। और एक थाली में एक घेवर व एक नारियल रखें। इसके बाद आंगन में थोड़ी पीली मिट्टी और गोबर मिलाकर आठ  घर का चौका लगा ले यदि गोबर ना मिले तो गमले की मिट्टी घोलकर लगा ले। फिर उस चौकी पर पूजन की सब सामग्री तथा होली के दिन सूरज जी का लिया हुआ रंगा आठ तार  का डोरा रख दें। और इस डोरी की पूजा करो। तथा घेवर के टुकड़े से जीमा दो  रोट नहीं तोड़ना चाहिए।फिर उन्हीं होली वाले जौ में से आखै हाथ में लेकर सूरज जी व गणेश जी की कहानी कहे। कथा सुनने के बाद सूरज जी को रोली का छींटा देकर घेवर से जिमाये। तथा सिर डोरी को हाथ में लेकर सूरज जी को अर्घ्य दे। जल कोई दूसरा छोड़ें और व्रत वाली बोलें और व्रत वाली बोले” सूरज जी दिखा, दिखा वैसा ही टूट्या”। इसी प्रकार सात बार कहे कथा सुनते हुए आखै भी हाथ में ही रखे। अर्घ्य  इस प्रकार दे – बाएं हाथ से घेवर या रोट  लेकर गड्ढे में देखते जाएं और दाएं हाथ से पहले जल का छींटा फिर  रौली का छींटा दे। और चावल के दाने ऊपर  फेंके। फिर घेवर से या रोट से और हलवे से जीमा दे।एक औरत हाथ पर जल छोड़ दी जाए और व्रत वाली औरत हाथ को थोड़ा सा जल लगाकर उछलते हुए आंखें भी थोड़ी-थोड़ी गिराते हुए कहती जाए _

“सोना की सांकली मोती को सो हार।
चौबाती की दिवलो चार पहर की रात।
आम तले म्हारो सासरो नीम तले म्हारो पीहर,
चारों  गेला यूं बहे कीड़ी की सी नार।
उद्यापन के दिन सूरज जी का व्रत का ,
सूरज ने अरख देता, जिओ पुत्र बीर भरतार।।”

सूरज जी का रोट व्रत का उद्यापन,Suraj ji ka rot vrat ka udyapan
1 से लेकर 8 तक गिनती हुए पानी को उछाले  एक घेवर व एक प्लेट सास को पैर  लग कर दे दे ।एक घेवर जो अलग रखा था नारियल और 5 रुपए देवर को दे दे ।बाकी बची प्लेट रिश्ते की या अन्य औरतों को बांट दें। पूजा का घेवर या रोट जो भी हो ब्राह्मणी को या गाय को दे दे। इस दिन खाना एक बार ही  खाना चाहिए सूर्य के छीपने से पहले ही खा लेना चाहिए और सूर्य के छिपने के बाद पानी भी नहीं पीना चाहिए। इस दिन नमक नहीं खाए। सूरज जी का उद्यापन अवश्य ही करना चाहिए क्योंकि कहा जाता है कि गणगौर का उद्यापन करना हो तो पहले सूरज जी का उद्यापन करना होगा गणगौर का उद्यापन करना ही पड़ता है कोई जीते जी नहीं करे  तो मृत्यु के बाद 12 ब्राह्मणी जिमाकर करते हैं  नहीं तो आगे दूसरे लोक में गणगौर पानी नहीं पीने देती।

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