जानकी जयंती 2021: गुरुवार 20 मई (vaishakhi Shukla Navami)
माता जानकी अर्थात सीता माता के जन्मोत्सव वैशाख शुक्ल नवमी को जानकी जयंती मनाई जाती हैं। माता सीता के पिता का नाम जनक होने के कारण इन्हे भी जानकी कहा जाता हैं।
माता सीता भगवान श्री राम की धर्मपत्नी है जो त्याग बलिदान और समर्पण के के कारण अत्यंत पूजनीय है।
माता सीता मिथिला नरेश महाराज जनक व सुनयना की पुत्री है। वैशाख शुक्ल नवमी को पूरे विधि विधान के साथ जानकी जयंती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।
जानकी जयंती पर व्रत का महत्व
जानकी जयंती सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु व सकुशलता के लिए करती है। तथा कुंवारी कन्याएं के इस व्रत को करने से उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।
जानकी जयंती के व्रत की पूजा विधि
- व्रत के दिन प्रातः काल जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त हो जाए।
- पूरे घर की वह पूजा स्थल की साफ सफाई करें।
- माता सीता को प्रभु श्री राम की प्रतिमा का पूजन करें।
- सीता माता को श्रंगार अर्पित करें
- पूजन के पश्चात व्रत का संकल्प लें तथा श्रीराम व माता सीता की आरती करें।
- साय काल श्री राम जय माता सीता की आरती करें और पूजा अर्चना करें।
- इस दिन दूध और गुड़ से बने भोजन का दान करना चाहिए।
- सीता माता श्री राम को भोग लगाएं।
- और व्रत का पारण करें
- व्रत के दिन सात्विक भोजन ही ग्रहण करें।
माता सीता की आरती

राम प्रिया रघुपति रघुराई बैदेही की कीरत गाई ॥
चरण कमल बन्दों सिर नाई , सिय सुरसरि सब पाप नसाई ॥
जनक दुलारी राघव प्यारी , भरत लखन शत्रुहन वारी ॥
दिव्या धरा सों उपजी सीता , मिथिलेश्वर भयो नेह अतीता ॥
सिया रूप भायो मनवा अति , रच्यो स्वयंवर जनक महीपति ।।
भारी शिव धनु खींचै जोई , सिय जयमाल साजिहैं सोई ॥
भूपति नरपति रावण संगा , नाहिं करि सके शिव धनु भंगा ॥
जनक निराश भए लखि कारन , जनम्यो नाहिं अवनिमोहि तारन ।।
यह सुन विश्वामित्र मुस्काए , राम लखन मुनि सीस नवाए ।।
आज्ञा पाई उठे रघुराई , इष्ट देव गुरु हियहिं मनाई ।।
जनक सुता गौरी सिर नावा , राम रूप उनके हिय भावा ।।
मारत पलक राम कर धनु ले , खंड खंड करि पटकिन भू पै ॥
जय जयकार हुई अति भारी , आनन्दित भए सबै नर नारी ।।
सिय चली जयमाल सम्हाले , मुदित होय ग्रीवा में डाले ॥
मंगल बाज बजे चहुँ ओरा , परे राम संग सिया के फेरा ॥
लौटी बारात अवधपुर आई , तीनों मातु करें नोराई ॥
कैकेई कनक भवन सिय दीन्हा , मातु सुमित्रा गोदहि लीन्हा ।।
कौशल्या सूत भेंट दियो सिय , हरख अपार हुए सीता हिय ।।
सब विधि बांटी बधाई , राजतिलक कई युक्ति सुनाई ।।
मंद मती मंथरा अडाइन , राम न भरत राजपद पाइन ।।
कैकेई कोप भवन मा गइली , वचन पति सों अपनेई गहिली ॥
चौदह बरस कोप बनवासा , भरत राजपद देहि दिलासा ॥
आज्ञा मानि चले रघुराई , संग जानकी लक्षमन भाई ॥
सिय श्री राम पथ पथ भटकैं , मृग मारीचि देखि मन अटकै ॥
राम गए माया मृग मारन , रावण साधु बन्यो सिय कारन ।।
भिक्षा के मिस लै सिय भाग्यो , लंका जाई डरावन लाग्यो ।।
राम वियोग सों सिय अकुलानी , रावण सों कही कर्कश बानी ॥
हनुमान प्रभु लाए अंगूठी , सिय चूड़ामणि दिहिन अनूठी ॥
अष्ठसिद्धि नवनिधि वर पावा , महावीर सिय शीश नवावा ।।
सेतु बाँधी प्रभु लंका जीती , भक्त विभीषण सों करि प्रीती ।।
चढ़ि विमान सिय रघुपति आए , भरत भ्रात प्रभु चरण सुहाए ।।
अवध नरेश पाई राघव से , सिय महारानी देखि हिय हुलसे ॥
रजक बोल सुनी सिय बन भेजी , लखनलाल प्रभु बात सहेजी ॥
बाल्मीक मुनि आश्रय दीन्यो , लवकुश जन्म वहाँ पै लीन्हो ।।
विविध भाँती गुण शिक्षा दीन्हीं , दोनुह रामचरित रट लीन्ही ॥
लरिकल कै सुनि सुमधुर बानी , रामसिया सुत दुई पहिचानी ॥
भूलमानि सिय वापस लाए , राम जानकी सबहि सुहाए ।।
सती प्रमाणिकता केहि कारन , बसुंधरा सिय के हिय धारन ।।
अवनि सुता अवनी मां सोई , राम जानकी यही विधि खोई ॥
पतिव्रता मर्यादित माता , सीता सती नवावों माथा ।।