कोकिला व्रत आषाढ़ मास की शुक्ल पूर्णिमा से प्रारंभ होकर श्रावण पूर्णिमा तक किया जाता है। कोकिला व्रत में देवी पार्वती की कोयल स्वरूप में पूजा की जाती है।यह विशेषतया स्त्रियों द्वारा किया जाता है । मान्यता है कि इस व्रत को करने से पुत्र,सौभाग्य और संपत्ति की प्राप्ति होती है।
कोकिला व्रत का महत्व
कोकिला व्रत करने वाली स्त्रियां पति के साथ सुख सौभाग्य का भोग करके पार्वती जी के धाम को जाती है। कोकिला का व्रत करने से घर में सुख शांति आती है तथा कुंवारी कन्याओं द्वारा यह व्रत करने से सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।
कोकिला व्रत की विधि

कोकिला व्रत करने वाली महिला के द्वाराआषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के सायं काल को स्नानादि करके ब्रम्हचर्य रहकर कोकिला व्रत करने का संकल्प लिया जाता है।
इसके पश्चात् दूसरे दिन श्रावण मास की प्रतिपदा को किसी नदी या कुएं पर स्नान करके निम्न संकल्प करें – मम धन- -धान्यादिसहित सौभाग्यप्राप्तये शिवतुष्टे च कोकिला व्रतमहं करिष्ये । तत्पश्यात् आरम्भ के आठ दिनों तक भीगे ओर पिसे आँवलों में सुगन्धित तिल का तेल मिश्रित करके उससे स्नान करें । फिर उसके अगले आठ दिनों तक भिगोई हुई मुरामांसी , वच – कुष्ट जटामांसी , दोनों हल्दी , मुरा , शिलाजीत , चन्दन , बच , चम्पक , नागरमोथा आदि दस औषधियों को मिश्रित करके उससे स्नान करें । इसके अगले आठ दिनों तक पीसी हुई बच के जल से स्नान करें और अन्त के छः दिनों तक पिसे तिल , आँवले व सर्वोषधि के जल से स्नान करें । इस प्रकार प्रतिदिन स्नान करके मिट्टी द्वारा बनाई हुई कोयल की पूजा करें चन्दन , सुगन्धित पुष्प , धूप , दीप , तिल , तन्दुल का नैवेद्य आदि अर्पित करें इस प्रकार श्रावण पूर्णिमा तक करके अन्तिम दिन ताँबे के पात्र में मिट्टी की कोयल या कोकिला का वस्त्राभूषण आदि से सुन्दर श्रृंगार करके सास को भेट करें । ऐसा करने से स्त्री पति के साथ सुख – सौभाग्य का भोग करके पार्वती जी के धाम को जाती है । इस व्रत में कोकिला को पार्वती जी का रूप मानकर ही पूजते हैं ।
Kokila vrat Katha

शिव पुराण के अनुसार ब्रह्माजी के मानस पुत्र दक्ष के घर पर देवी सती का जन्म हुआ था। देवी सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी, लेकिन दक्ष भगवान शिव से द्वेष करता था और वह इस विवाह के पक्ष में नहीं था। प्रजापति दक्ष भगवान विष्णु का भक्त था उसकी इच्छा के विरुद्ध देवी सती ने भगवान शिव से विवाह किया, इस वजह से दक्ष देवी सती से बहुत नाराज हुआ तथा भगवान शिव से बहुत क्रोधित हुआ। दक्षिणी भगवान शिव का अपमान करने के लिए एक महायज्ञ का आयोजन किया तथा सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया लेकिन सती और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। जब देवी सती को इस यज्ञ के बारे में पता चला तो वह भगवान शिव से यज्ञ में जाने के लिए अनुरोध करने लगी। लेकिन भगवान शिव ने यज्ञ में जाने से मना कर दिया देवी सती के बार-बार अनुरोध करने पर भगवान शिव ने सती को यज्ञ में जाने की आज्ञा दे दी। जब देवी सती दक्ष के घर पहुंची तो उसने भगवान शिव और सती को नहीं बुलाने का कारण पूछा तो दक्ष ने भगवान शिव का बहुत अपमान किया और उनके बारे में कटु शब्द कहें। देवी सती बहुत दुखी हुई और उस यज्ञ के कुंड में ही कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। जब यह बात भगवान शिव को पता चली तो वे अत्यंत क्रोधित हो गई और उसने दक्ष का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया और देवी सती से भी उनके इच्छा के विरुद्ध प्राण त्यागने के कारण बहुत नाराज हुई और उन्होंने देवी सती को हजारों वर्ष तक कोयल स्वरूप में रहने का श्राप दे दिया। शराब की कारण देवी शक्ति हजारों वर्षों तक कोयल स्वरूप में रही और भगवान शिव की कठोर तपस्या की जिसकी वजह से उन्हें पार्वती के रूप में जन्म मिला और का 5000 वर्षों कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव उन्हें पति के रूप में प्राप्त हुए।