पार्वती पूजा व्रत 2021: रविवार 13 जून ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया
निर्णयामृत के अनुसार पार्वती जी का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल की तृतीया को हुआ था । अत : स्त्रियाँ अपने सुख एवं सौभाग्य की वृद्धि हेतु इस दिन श्रद्धा व भक्ति – भाव से पार्वती जी का पूजन करती हैं । विभिन्न प्रकार के फल , पुष्प और नैवेद्य आदि अर्पण करके गायन , वादन तथा नृत्य के साथ पार्वती जी का जन्मोत्सव मनाती हैं ।
माता पार्वती जी की पूजा विधि
- व्रत के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें
- पूरे घर की सफाई करें तथा पूजा स्थल की सफाई करें
- भगवान शिव और पार्वती की मूर्ति स्थापित करें।
- माता पार्वती की प्रतिमा को शिव जी की प्रतिमा के बाएं तरफ रखें क्योंकि सनातन धर्म में पत्नी को पति का बाया अंग माना जाता है।
- पार्वती जी को पंचामृत से स्नान करवाएं।
- माता पार्वती को श्रृंगार कराएं
- पूजा स्थल पर घी का दीपक जलाएं।
- माता पार्वती को पुष्प व नैवेद्य अर्पित करें और मूर्ति की परिक्रमा करें।
- इसके बाद व्रत का संकल्प लें।
पार्वती जी को प्रसन्न करने के मंत्र
सनातन धर्म में मंत्र उच्चारण का बहुत महत्व होता है। मंत्रों में असीम शक्तियां समाहित होती है। मंत्रों के जाप करने से ही ऋषि यों ने और देवताओं ने अनेक सिद्धियां प्राप्त की है। मंत्र उच्चारण से देवी देवता जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। और मनचाहा वरदान देते हैं आइए जानते हैं माता पार्वती से आशीर्वाद प्राप्त करने के मंत्र।
ऊँ उमामहेश्वराभ्यां नमः’’‘ऊँ गौरये नमः
‘ऊँ साम्ब शिवाय नमः’’’ऊँ पार्वत्यै नमः
इच्छानुसार वर पाने के लिए माता पार्वती का मंत्र
है गौरी शंकरार्धांगी। यथा त्वं शंकर प्रिया।तथा मां कुरु कल्याणी, कान्त कान्तां सुदुर्लभाम्।।
पसंद के वर वधू पाने के लिए माता पार्वती का मंत्र
अस्य स्वयंवरकलामंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अतिजगति छन्दः, देवीगिरिपुत्रीस्वयंवरादेवतात्मनोऽभीष्ट सिद्धये मंत्र जपे विनियोगः।
घर की सुख समृद्धि के लिए पार्वती का मंत्र
मुनि अनुशासन गनपति हि पूजेहु शंभु भवानि।
कोउ सुनि संशय करै जनि सुर अनादि जिय जानि।।
पार्वती जी की आरती

जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
ब्रह्म सनातन देवी शुभ फल की दाता॥
जय पार्वती माता
अरिकुल पद्म विनाशिनि जय सेवक त्राता।
जग जीवन जगदंबा, हरिहर गुण गाता॥
जय पार्वती माता
सिंह को वाहन साजे, कुण्डल हैं साथा।
देव वधू जस गावत, नृत्य करत ताथा॥
जय पार्वती माता
सतयुग रूपशील अतिसुन्दर, नाम सती कहलाता।
हेमांचल घर जन्मी, सखियन संग राता॥
जय पार्वती माता
शुम्भ-निशुम्भ विदारे, हेमांचल स्थाता।
सहस्त्र भुजा तनु धरि के, चक्र लियो हाथा॥
जय पार्वती माता
सृष्टि रूप तुही है जननी शिवसंग रंगराता।
नन्दी भृंगी बीन लही सारा जग मदमाता॥
जय पार्वती माता
देवन अरज करत हम चित को लाता।
गावत दे दे ताली, मन में रंगराता॥
जय पार्वती माता
श्री प्रताप आरती मैया की, जो कोई गाता।
सदासुखी नित रहता सुख सम्पत्ति पाता॥
जय पार्वती माता
शिव पार्वती की कहानी

माता पार्वती भगवान शिव की अर्धांगिनी है। उन्होंने 3000 वर्ष की कठोर तपस्या करके भगवान शिव को पाया था। माता पार्वती का जन्म पहले देवी सती के रूप में प्रजापति दक्ष के घर हुआ था। तब देवी सती का विवाह भगवान शिव से हुआ। एक बार प्रजापति दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन करवाया और सभी देवी देवताओं को यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया, किंतु भगवान शिव को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। इससे देवी सती बहुत आहत हुई और उन्होंने अपने पिता से भगवान शिव को नहीं बुलाने का कारण पूछा, इस पर प्रजापति दक्ष क्रोधित हुए और भगवान शिव के बारे में गलत टिप्पणियां करने लगे। जिसके कारण देवी सती बहुत दुखी हुई और उस यज्ञ में ही कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दी। यदि में कूदने से पहले उन्होंने भगवान विष्णु से आशीर्वाद लिया कि वह जन्मों जन्मों के लिए भगवान शिव के सानिध्य में ही रहे। देवी सती की मृत्यु से भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए और प्रजापति दक्ष का सिर उनकी धड़ से अलग कर दिया। देवताओं की अपने विनती करने पर उन्होंने दक्ष को प्राण दान दिया। देवी सती ने फिर पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया और 3000 वर्षों की कठोर तपस्या के पश्चात उनकी तपस्या सफल हुई पार्वती ने तपस्या के दौरान अन्न जल ग्रहण नहीं किया केवल बीलपत्र जो सुख के नीचे गिरे उन्हीं का सेवन किया। और भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त किया।