Homeयोगकुंजल क्रिया करने की विधि लाभ और सावधानी

कुंजल क्रिया करने की विधि लाभ और सावधानी

कुंजल क्रिया करने की विधि


रात्रि में करीब तीन लीटर पानी उबालकर रख दें । सुबह शौच क्रिया समाप्त कर एवं दांतों को साफ करने के बाद उबले पानी को हल्का गुनगुना गर्म कर इच्छानुसार नमक मिलाएँ । अब कागासन में बैठकर पानी से गिलास भरते जाएँ व पीते जाएँ । गले तक पानी भर न जाए तब तक पीते रहे , तत्पश्चात् खड़े होकर आगे की तरफ झुक जाएँ । सीधे हाथ को तीन अंगुलियों मुंह में देकर , धीरे धीरे आगे जाने दें । बीच वाली अंगुली को रगड़ें तथा बाएं हाथ से पेट को दबाएँ । पानी जोर से बाहर आएगा , इसी तरह पानी जब तक पूरा बाहर न आ जाए इस अंगुली वाली क्रिया को चालू रखना चाहिए

कुंजल क्रिया करने के लाभ

1 . यह क्रिया आहारनाल व आमाशय में चिपके हुए बलगम को बाहर करती है , जिससे दमा व जुकाम वालों को आराम मिलता है ।
2. रक्त विकार , जैसे- चेहरे पर कालापन , झाइयाँ पड़ जाना , मुख पर मुंहासे व छोटी – छोटी फुन्सियाँ हो जाना आदि रोगों को यह क्रिया दूर करती है कुजलक्रिया कुपित हुए पित्त को बाहर करती है , 3 कुंजल क्रिया कुपित हुए पित्त को बाहर करती है
जिससे पीलिया , बुखार , खाँसी व नजला आदि रोगों में आराम मिलता है
4. पाचनक्रिया तीव्र होती है ।
5. यह ऋतु परिवर्तन के समय अत्यन्त लाभकारी है । आश्विन व चैत्र मास में यह क्रिया अवश्य ही करनी चाहिए , जिससे मौसमी बीमारियाँ समीप न आने पाएँ ।

कुंजल क्रिया करने की सावधानियां


दोनों हाथों के नाखून काटकर साफ रखें । जननांगों पर कसा वस्त्र पहनकर ही इस क्रिया को करना चाहिए , अन्यथा हर्निया होने का भय रहता है । आँखें भी यदि कमजोर हों तो कुजलक्रिया नहीं करनी चाहिए । दमा , अल्सर , उच्चरक्तचाप वालों को किसी योगविशेषज्ञ की देखरेख में ही यह क्रिया करनी चाहिए । हर्निया के रोगियों को यह क्रिया नहीं करनी चाहिए ।

कुंजल क्रिया करने की विशेषताएं


: यह क्रिया उन लोगों के लिये है जो धौति – क्रिया करने में सफल नहीं हो पाते । इस क्रिया में नमक के गुनगुने पानी को पीकर वमन द्वारा बाहर निकाला जाता है प्रारम्भ में दो – तीन गिलास पानी से शुरूआत करके अभ्यस्त होने पर क्रमश : यह मात्रा दो लीटर पानी तक बढ़ा लें । धौति क्रिया करने के बाद इसे अवश्य करना चाहिए , जिससे आमाशय व आहारनाल की दीवारों पर धौति – क्रिया द्वारा उखड़ी हुई गन्दगी बाहर निकल सके ।

कुंजल क्रिया करने की अवधि

इस क्रिया को सप्ताह में एक बार अवश्य करना चाहिए ।

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