शशांकासन विधि : वज्रासन में बैठे व दोनों एड़ियों को नितम्बों से बाहर करना चाहिए । दोनों हाथ सीधे ऊपर ले जाकर तथा श्वास छोड़ते हुए दोनों हाथों को आगे फैलाकर हथेलियों को भूमि पर टिकाना चाहिए । ठोड़ी जमीन में लगाते हुए सिर का अगला हिस्सा भी भूमि से स्पर्श कराना चाहिए । सामान्य स्थिति में जितना रोक सकते हैं रोकना चाहिए । धोरे – धीरे आसन छोड़ते समय श्वास भरते हुए वज्रासन में आना चाहिए ।
लाभ : 1. हृदय रोग में विशेष लाभदायक है । 2. हाथों व पाँवों की मांसपेशियाँ सुदृढ़ होती हैं । 3. आँतें , लीवर व अग्नाशय में लाभ देता है । 4. पाचन शक्ति बढ़ती है ।
विशेष : इस आसन से हृदय की मालिश होकर अनावश्यक चर्बी दूर होती है । रक्त संचार सुचारु गति में आ जाता है । हाथों तथा पाँवों के जोड़ों में जमा विषाक्त तत्वों को बाहर करता है
सावधानी: मेरुदंड की खिसकी हुई हड्डी वालों को यह आसन किसी योग विशेषज्ञ की देखरेख में करना चाहिए।