जाहरवीर गोगा जी का जन्म भाद्रपद कृष्ण नवमी को 1003 ईस्वी में ददरेवा चुरु नामक स्थान पर हुआ।गोगाजी को सांपो का देवता तथा जाहरपीर (साक्षात देवता) भी कहते हैं।
इनके पिता का नाम जैवर जी चौहान तथा माता का नाम बाछल दे था। इनकी पत्नी कैमल दे थी ,जो कोलुमंड (जोधपुर) के बुड़ोजी राठौर की की पुत्री थी।
जाहरवीर गोगा जी के गुरु का नाम गोरखनाथ था। तथा घोड़ी का नाम नीली था।
जाहरवीर गोगा जी की कहानी।
जाहरवीर गोगा जी के माता पिता जेवर जी व बाछल दे के कोई संतान नहीं थी। इस किस बात को लेकर वह दोनों बहुत चिंतित रहते थे। एक दिन जब वह गुरु गोरखनाथ जी से मिले और उन्होंने गुरु गोरखनाथ को उनके निसंतान होने की बात कही गोरखनाथ जी उनकी श्रद्धा और भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद और एक फल दिया जिसे गूगल फल करते हैं और कहा कि आपको जल्द ही एक संतान की प्राप्ति होगी उस गूगल फल के खाने के 9 महीने बाद गोगा जी का जन्म हुआ गूगल फल के कारण ही उनका नाम गोगाजी रखा गया था।
गोगाजी का विवाह कैमल दे के साथ हुआ एक दिन सर्प के काटने से कैमल दे की मृत्यु हो गई इस वजह से गोगा जी बहुत अधिक क्रोधित हुए। उन्होंने सभी सांपो को मारने का निश्चय कर लिया। और सर्पों को मारने के लिए यज्ञ करने लगे। उनके यज्ञ करने से सभी देवता घबराने लगे और सोचने लगे कि इस प्रकार तो पृथ्वी से सभी सांपो का अंत हो जाएगा।
तभी नारद मुनि भगवान शनिदेव और इंद्र के साथ गोगाजी के पास आए और उन्होंने यज्ञ को रोकने की विनती की और उन्होंने गोगा जी की पत्नी के कैमल दे को जीवनदान दिया और साथ ही यह वरदान भी दिया कि किसी भी व्यक्ति को यदि सांप काट लेता है तो आपके थान पर आने से उसका इलाज हो जाएगा। तभी से जाहरवीर गोगा जी को सांपों का देवता के रूप में जाना जाने लगा।
गोगाजी और महमूद गजनवी के मध्य युद्ध

गजनी के शासक महमूद गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया जब वह गुजरात के सोमनाथ मंदिर से अपार धन संपदा लूट कर वापस गजनी जा रहा था। तो उसने धन को ले जाने के लिए गोगाजी की गाये चुरा ली जब गोगा जी को यह बात पता चली तो उसने अपने 47 भतीजे और 60 पुत्रों के साथ गजनवी से युद्ध किया। गोगाजी के दो भाई थे अर्जुन और सुर्जन। इस युद्ध में गोगाजी की पराजय हुई और वह वीरगति को प्राप्त हुये।
गोगाजी और गजनवी के मध्य युद्ध ददरेवा चुरु नामक स्थान पर हुआ जहां पर गोगाजी का शीश धड़ से अलग हो गया था लेकिन फिर भी गोगाजी नहीं मरे और नोहर हनुमानगढ़ तक उनका धड़ ही युद्ध करता रहा ।
जाहरवीर गोगाजी के शीश के कटने के स्थान शीशमेडी कहते हैं जो ददरेवा चुरु में है, तथा उनके वीरगति होने के स्थान धुरमेड़ी या गोगामेड़ी कहते हैं जो नोहर हनुमानगढ़ में हैं।
जाहरवीर गोगाजी के इस अदम्य साहस और वीरता को देखकर महमूद गजनवी भी अचंभित रह गया और उसने गोगाजी को जाहरपीर (जाहरवीर) की उपाधि दी।
हनुमानगढ़ में जाहरवीर गोगा जी के वर्तमान मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने करवाया था। गोगा जी के मंदिर पर बिस्मिल्लाह लिखा हुआ है।
गोगा जी के वंशजों ने बाद में मुस्लिम धर्म ग्रहण कर लिया था गोगा जी की आठवीं पीढ़ी के वंशज कायम खानी मुस्लिम(फतेहपुर सीकरी) हैं,जो गोगा जी के मंदिर में एक वर्ष 11 महीनों तक पूजा करते हैं तथा एक महीना हिंदू पूजा करते हैं।