Homeएकादशीमोहिनी एकादशी व्रत कथा।Mohini ekadashi vrat katha.

मोहिनी एकादशी व्रत कथा।Mohini ekadashi vrat katha.

मोहिनी एकादशी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार समुंद्र मंथन के समय निकले अमृत को राक्षसों से बचाने व देवताओं को पिलाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था तभी से वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाते हैं। मोहिनी एकादशी का व्रत करने से पापों से मुक्ति मिलती है। तथा इस व्रत का पालन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मोहिनी एकादशी व्रत कथा।

मोहिनी एकादशी व्रत कथा।Mohini ekadashi vrat katha.
मोहिनी एकादशी व्रत कथा

मोहिनी एकादशी व्रत कथा – शास्त्रों के अनुसार एक बार देवता और राक्षस मिलकर समुद्र का मंथन कर रहे थे तभी समुद्र से लक्ष्मी जी और विश के साथ अमृत का कलश निकला । लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को वर लिया तथा विश को भगवान शंकर ने सभी को बचाने के लिए अपने कंठ में ही रोक लिया। देवता और राक्षसों के मध्य अमृत को लेकर झगड़ा हो गया। देवता चाहते थे कि अमृत उन्हें मिले तथा राक्षस चाहते थे कि अमृत उनको मिले। तब देवताओं ने भगवान विष्णु से आग्रह किया हे प्रभु! “यदि इन राक्षसों को अमृत मिल गया तो यह सदा के लिए अमर हो जाएंगे और पूरी सृष्टि पर आतंक में मचाएंगे,अब आप ही कुछ कीजिए”।

तब भगवान विष्णु ने अति सुंदर स्त्री मोहनी का रूप धारण करके सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया और सारा अमृत देवताओं को पिला दिया उस दिन वैशाख शुक्ल एकादशी थी , तभी से इस एकादशी को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है।

मोहिनी एकादशी व्रत करने की विधि।

  • व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूरे घर की व पूजा स्थल की सफाई करें।
  • पूजा स्थल पर एक वेदी बनाकर सप्त धान ( गेहूं, चावल, चना, जौ, मूंग, उड़द, बाजरा) रखकर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें।
  • वेदी पर एक जल का कलश स्थापित करें।
  • वेदी पर एक दीपक जलाएं और भगवान विष्णु की आरती उतारे।
  • भगवान विष्णु को ऋतु फल व पीले पुष्प अर्पित करें।
  • पूरे दिन निराहार रहे
  • साय काल में भगवान विष्णु की आरती व पूजा अर्चना करें।
  • भगवान विष्णु की आरती के पश्चात फलाहार ग्रहण करें।
  • रात्रि में भगवान विष्णु का भजन कीर्तन करे तथा जागरण करें।
  • दूसरे दिन सुबह ब्राह्मणों को भोजन करा कर यथाशक्ति दक्षिणा दे।
  • और भगवान को भोग (तुलसी सहित)लगाकर स्वयं भोजन करें तथा व्रत का पारण करें।