आस माता का व्रत फाल्गुन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर अष्टमी तक कोई भी दिन देख कर एक दिन कर सकते है। व्रत के दिन आस माता की कहानी सुनी जाती है। आस माता की कहानी या आस माता की कथा (aas mata ki katha) सुनने से कष्टो का निवारण होता है और सुख सौभाग्य की प्राप्ती होती है।
पूजा विधि – एक पट्टे पर एक जल का लोटा रखें , लोटे पर रोली का साठिया(स्वास्तिक) बनाए, चावल चढ़ायें । सात दाने गेहूं के हाथ में लेकर आस माता की कहानी सुनें । हलवा , पूरी , रुपये रखकर बायना निकालें । सासूजी के पैर छूकर दें और बाद में खुद जीम लें । अगर किसी के बेटा हो या विवाह हो तो आस माता का उज्जमन कर सात जगह चार – चार पूड़ी और हलवा रखकर उसके ऊपर एक नारियल और रुपये रखकर हाथ फेर कर सासूजी के पैर छूरक दें।
आस माता की कहानी। aas mata ki kahani

आस माता की कहानी – एक गांव मे एक आसलिया रहता था। वह आस माता का भक्त था, वह चौसर खेला करता था और वह हारे या जीते पर ब्राह्मणो को जिमाता था । एक दिन उसकी भाभियां बोलीं कि तुम तो हारो या जीतो दोनों पर ब्राह्मण जिमाते हो , ऐसे कब तक चलेगा और उसे घर से निकाल दिया । वह घर से निकल कर शहर में चला गया। तब आस माता के व्रत का दिन आया, वह आस माता का व्रत कर पूजा करने बैठ गया ।
सारे शहर में खबर फैल गई कि एक चौसर का बहुत अच्छा खिलाड़ी आया है। खबर फैलते – फैलते राजा के पास पहुंची तो यह सुनकर राजा उसके साथ खेलने आया। राजा चौसर में आसलिया से हार गया । वह आसलिया के खेल से इतना प्रभावित हुआ की उसने अपनी बेटी का विवाह उससे कर दिया और राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया ।
अब वह राजा बन गया और राज करने लगा। उधर जब से आसलिया अपने घर से आया था तब से वहां धन-धान्य की कमी हो गई और घर में अन्न की कमी पड़ गई। इसलिए वह भी नगर मे आ गए, उसकी भाभियां उसे ढूढ़ने निकल गई। वहाँ उन्होंने सुना कि एक आदमी जुए मे राजा से जीत गया । तब वह उसे देखने के लिए गए । वहां उसकी मां ने उससे कहा कि मेरा बेटा भी यहीं पर जुआ खेलता है । हमने उसको घर से निकाल दिया था ।
वह बोला माताजी मैं ही तुम्हारा बेटा हूँ तुम्हारी करनी तुम्हारे साथ , मेरी करनी मेरे साथ। इसके बाद वह अपने परिवार के साथ रहने लगा और सुख से राज्य करने लगा । हे आस माता जैसा आसलिया को दिया वैसा सबको देना । आस माता की कहानी कहने, सुनने, हुँकारा देने और पूरे परिवार को देना।
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