उबछठ भाद्रपद मास(भादों) के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाते हैं । इस दिन उपवास करना चाहिये और ऊब छठ की कहानी सुननी चाहिए । सायंकाल नदी या कुंए पर स्नान करके चंदन घिसकर लगाना चाहिये । स्नान करने के पश्चात् बैठना नहीं चाहिये । स्नान के समय और स्नानके पश्चात् सूर्य भगवान को चन्दन और पुष्प से पूजा करके अर्ध्य देना चाहिये । सूर्यस्त्रोत बोलना चाहिये और भगवान सूर्य के बारह नाम बोलने चाहिये । तत्पश्चात् जब तक चन्द्रोदय न हो तब तक खड़े ही रहना चाहिये ।
संध्या समय सभी मंदिरों में भगवान के दर्शन करते हैं । सभी सखी – सहेलिया मिलकर भगवान के भजन करती हैं और चन्द्रोदय के पश्चात् चन्द्रमा को अर्ध्य देकर चन्द्रमा की पूजा करते हैं । उसके बाद उपवास खोलते हैं अर्थात् भोजन करते हैं इस व्रत को ‘ चन्दन षष्ठी व्रत ‘ भी कहा जाता है ।
ऊब छठ की कहानी।upchat ki kahani.

ऊब छठ की कहानी – एक साहूकार था । उसकी एक पत्नि थी । साहूकार महीने की होई हुई ( दूर होई हुयी ) बिना नहाए धोए सब जगह हाथ लगाती थी व खाना बनाती थी , पानी भरती थी , सब काम कर लेती थी । कुछ दिन बाद उनके एक पुत्र हुआ । उसकी इन्होंने शादी की । शादी के कुछ दिनों बाद साहूकार और साहूकारनी की मृत्यु हो गई । मृत्यु के बाद साहूकार तो बैल बना और साहूकारनी कुतिया । वे दोनों अपने बेटे के घर पर ही पहुँच गये । बेटा बैल से खूब काम लेता था । दिन भर खेत में जोतता और कुएँ में से पानी निकलवाता कुतिया उसके घर की रखवाली थी ।
जब उनको वहाँ एक साल हो गया तो उस लड़के के पिता का श्राद्ध आया । श्राद्ध के दिन खूब पकवान बनवाये गये । उनके खीर भी बनाई गई । खीर को ठंडा करने के लिए एक थाली में फैलाकर रख दिया गया । उसी समय एक चील उड़ती हुई आई जिसके मुंह में मरा हुआ सर्प था । वह सर्प उसके मुँह से छूट गया और खीर में गिर गया । यह बात बैठी हुई कुतिया देख रही थी । कुतिया सोचने लगी कि कोई इस खीर का खाएगा , तो वह मर जायेगा , अतः अब क्या करें ?
कुतिया यह सोच ही रही थी कि भीतर से लड़के की बहू उठकर आई । कुतिया ने उस खीर में मुंह दे दिया । जब लड़के की बहू ने देखा कि कुतिया ने उस खीर में मुँह दे दिया है तो वह डंडा लेकर कुतिया के पीछे भागी और उसकी पीठ में एक ऐसा डंडा मारा कि कुतिया की पीठ की हड्डी टूट गई । जब रात हुई तो कुतिया बैल के पास आई और बोली , ” आज तो तुम्हारा श्राद्ध था तुम्हें तो खूब भोजन मिला होगा । ” बैल बोला । ” मुझे तो आज कुछ भी नहीं मिला , दिन भर खेत में ही काम पर लगा रहा हूँ । “
कुतिया बोली , ” जो श्राद्ध की खीर बनाई थी , उसमें चील ने सर्प डाल दिया था । लोगों के मरने से बचाने के लिए मैंने खीर में मुँह दे दिया था । जिससे बहू ने मेरी पीठ पर ऐसा डंडा मारा कि मेरी हड्डी टूट गई , इससे बहुत दर्द हो रहा है और कुछ खाने को भी नहीं मिला । ” यह सब बात बहू ने सुन ली । उसने कुतिया व बैल की सब बातें अपने पति से कही तब लड़के ने ज्योतिषियों को बुलाकर पूछा , ” कि मेरे माता – पिता किस योनि में हैं ? ” तब ज्योतिषी ने कहा , ” तुम्हारे यहां जो बैल है वहीं तुम्हारे पिता हैं और जो तुम्हारे कुतिया है वह तुम्हारी माँ ।
लड़का बोला , ” इनका उद्धार कैसे हो ? पंडितों ने कहा , “ तुम अपनी कुँवारी लड़की से उबछठ का व्रत भादवा बदी छठ को करवा दो । जब वो अरग देवे तब जहाँ से पानी गिरे वहाँ इन्हें खड़ा कर देना, इससे इनकी ये योनि छूट जायेगी । तेरी माँ को अपने कर्मों के कारण यह योनि मिली है। साहूकार के लड़के ने अपनी लड़की से व्रत करवाया । अरग का पानी बहकर छत की नाली से जहाँ गिरा वहाँ उन्हें खड़ा कर दिया । इससे उन दोनों को मोक्ष मिल गया । हे उबछट माता उन को मोक्ष दिया वैसा हमारा भी करना किन्तु जैसा दोष उन्हें लगा वैसा किसी के भी मत लगाना । ऊब छठ की कहानी कहने वाले , सुनने वाले सबका भला करना ।
ऊब छठ का उद्यापन। ubchat ka udyapan
उब्छट का उद्यापन – इसका उद्यापन यदि कुँवारी लड़की करें तो आठ प्लेटे या प्याले जो भी बांटना चाहे रखे । आठ लड्डू या घेवर रखने चाहिये । एक प्याले के साथ नारियल भी रखना चाहिये । फिर रोली से छींटा देकर जोड़े । नारियल लड्डु और एक प्याला भाई को दे देना चाहिये बाकी सात व्रत वाली लड़कियों के घर भेज देना चाहिये । शादी के बाद उद्यापन करें तो 13 लड्डू निकालने चाहिये । एक साषी का और बैया का भी निकालना चाहिये ।
Read More – विनायक जी की कहानी