भगवान देवउठनी एकादशी के दिन भगवान 4 महीने अपने निद्रा से जागते हैं इस एकादशी को प्रदोषनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है इसी दिन चोमासे का समय समाप्त होता है और शादी विवाह आदि शुरू हो जाते हैं देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी से करवाया जाता है जिस घर में उतरी नहीं होती है वहां तुलसी जी का विवाह करवा कर कन्यादान का पुण्य प्राप्त किया जाता है
देवउठनी ग्यारस व्रत कथा, देवउठनी एकादशी व्रत कहानी
प्राचीन समय में एक राजा था उसके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी एकादशी के दिन उसके राज्य में कोई भी अन्न ग्रहण नहीं करता था और ना ही उनको बेचता था । सभी लोग फलाहार करते थे । एक बार भगवान श्री हरि ने राजा की परीक्षा लेनी चाही तब भगवान श्री हरि एक सुंदरी का रूप धारण कर सड़क पर बैठ गए । जब राजा वहां से गुजरा तो उसने सुंदरी को देखा वह सुंदरी को देखकर राजा चकित रह गया राजा ने उससे पूछा है सुंदरी तुम कौन हो और इस तरह बीच रास्ते में क्यों बैठी हो तब वह सुंदर स्त्री बने हुए भगवान बोले मैं बेसहारा हूं इस नगर में मेरा कोई जान पहचान वाला नहीं है मैं किस से सहारा मांगू । राजा पहले ही उसके रूप पर मोहित हो चुका था उसने सुंदरी से कहा तुम मेरे महल में चल कर मेरी रानी बन कर रहो, सुंदरी बोली मैं तुम्हारी बात मान लूंगी पर तुम्हें राज्य का अधिकार मुझे सोपना होगा राज्य पर मेरा पूर्ण अधिकार होगा, मैं जो भी बनाऊंगी तुम्हें खाना होगा । राजा उसके रूप पर मोहित था इसलिए उसने सुंदरी की सभी शर्त स्वीकार कर ली । अगले ही दिन देवउठनी एकादशी थी सुंदरी ने आदेश दिया कि बाजारों में बाकी दिनों की तरह अन्य बेचा जाए उसने महल में मांसाहारी भोजन पकवाया तथा प्रोस्कर राजा को खाने के लिए कहा । यह देख कर आजा बोला रानी आज देवउठनी एकादशी है मैं तो आज फलाहार करूंगा तब सुंदरी ने अपनी शर्त याद दिलाई और कहा या तो खाना खाओ नहीं तो मैं बड़े राजकुमार का सर कटवा दूंगी । राजा ने अपनी स्थिति अपनी बड़ी रानी से कही तब बड़ी रानी बोली महाराज धर्म ना छोड़े बड़े राजकुमार का सर दे दे पुत्र तो फिर मिल जाएगा पर धर्म नहीं मिलेगा । इसी दौरान बड़ा राजकुमार खेलकूद घर वापस आ गया मां की आंखों में आंसू देख कर राजकुमार ने अपनी मां से रोने का कारण पूछा तब बड़ी रानी ने अपने राजकुमार को सारी बात बताई इस पर राजकुमार बोला मैं सिर कटवाने के लिए तैयार हूं पिताजी के धर्म की रक्षा जरूर होगी । राजा दुखी मन से राजकुमार का सिर देने के लिए तैयार हो गया तब रानी के रूप में भगवान ने प्रकट होकर अपनी बात बताई और कहा है राजन तुम इस कठिन परीक्षा में उत्तीर्ण हुए । भगवान ने प्रसन्न मन से राजा को वर मांगने को कहा तब राजा बोले हे प्रभु हमारे पास आपको आप का दिया हुआ सब कुछ है आप हम पर अपना आशीर्वाद बनाए रखें और हमारा उद्धार करें । इसी समय वहां एक विमान उतरा राजा ने बड़े राजकुमार को अपना सारा राज्य सौंप दिया और और विमान में बैठकर परमधाम को चला गया हे विष्णु भगवान जैसे आपने राजा का उद्धार किया उसी प्रकार कथा सुनने वाले , पढ़ने वाले , हूकारा भरने वाले सभी का भला करना सब पर अपनी कृपा बनाए रखना ।

देवउठनी एकादशी व्रत विधि
गन्ने का मंडप बनाया जाता है और उसके बीच में एक चौक बनाया जाता है।
चौक के बीच में भगवान विष्णु की मूर्ति रखी जाति है। चौक के साथ ही भगवान के चरण चिन्हों को बनाकर ढक दिया जाता है।
भगवान को गन्ना, सिंघाड़ा, फल और मिठाई का भोग लगाया जाता है।
फिर घी का अखंड दीपक चलाया जाता है, जो रात भर जलता रहता है।
प्रात:काल में भगवान के चरणों की पूजा की जाती है। फिर भगवान के चरण स्पर्श करके जगाया जाता है
शंख, घंटी और कीर्तन की ध्वनि से व्रत की कथा सुनी जाती है।
सभी लोग श्री हरि के चरण स्पर्श कर सकते हैं, वे जो भी मांगेंगे, उन्हें अवश्य मिलेगा।