पापमोचनी एकादशी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को होती है एकादशी को करने से माना जाता है कि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। तथा इसकी कथा सुनने से व पढ़ने मात्र से ही एक हजार गोदान का फल प्राप्त होता है और अंततः स्वर्ग लोक को जाते हैं।
यह एकादशी भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की विधि विधान से पूजा अर्चना व आराधना की जाती है।
इस एकादशी के बारे में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया था की जो भी व्यक्ति इस एकादशी के व्रत का पालन करता है उसके समस्त पाप हर लिए जाते हैं और उसे अंततः स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा- पापमोचनी एकादशी की महिमा के बारे में स्वयं भगवान विष्णु ने अर्जुन को बताते हुए कहा _
एक बार ऋषि लोमस से राजा मांधाता ने पूछा की ऋषिवर आप हमें बताएं कि जो पाप अनजाने में हो जाते हैं उन से मुक्ति कैसे मिल सकती है।
ऋषि लोमस ने राजा को बताया क कि एक बार ऋषि मेधावी जो कि ऋषि च्वयन के पुत्र थे। चेत्ररथ वन में भगवान शिव की तपस्या कर रहे थे। वहां से मंजूघोषा नामक अप्सरा जा रही थी। उसने ऋषि मेधावी को देखा तो उन पर मोहित हो गई और ऋषि को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयत्न करने लगी। जब कामदेव ने यह देखा तो अप्सरा की मदद की। कामदेव की सहायता से अप्सरा सफल हुई। और ऋषि भी मंजू भाषा के रूप पर मोहित होकर उनकी तरफ आकर्षित हुए।
और तपस्या को भूलकर अप्सरा के साथ ही चले गए कई वर्ष बीत गए और एक दिन उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ तो बहुत आत्मग्लानि हुई।
तपस्या भंग करने के कारण अप्सरा पर क्रोधित हुए और अप्सरा को श्राप दिया कि तुम पिशाचिनी बन जाओ।यह सुनकर अप्सरा बहुत दुखी हुई और श्राप मुक्ति के लिए ऋषि से प्रार्थना करने लगी।
यह बात जब नारद जी को पता चली तो और वहां गए उन्होने ऋषि व अप्सरा दोनों को पाप से मुक्ति के लिए पापमोचनी एकादशी व्रत के बारे में बताया।
दोनों ने पूरे विधि विधान से व्रत का पालन किया जिससे दोनों पाप से मुक्त हो गए। और अप्सरा भी पिशाचिनी की योनि से मुक्त होकर अपने सुंदर रूप में वापस आ गई और स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया।
पापमोचनी एकादशी व्रत की पूजन विधि
- इस एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्म करके स्नान करके साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें।
- सात धान की वेदी बनाए।(सात धान _गेहूं ,चावल, जौ ,बाजरा ,उड़द ,मूंग व चना)।
- वेदी पर भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति स्थापित करें और ऋतु फल व तुलसी रखें।
- वेदी पर आम या अशोक के पांच पत्ते कलश में डालकर रखें।
- फिर भगवान श्री कृष्ण की आरती उतारे और आराधना करें।
- सायंकाल में भी भगवान श्री कृष्ण की आराधना करके फलाहार ग्रहण करें।
- रात्रि में भगवान श्री कृष्ण के भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें।
- दूसरे दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन करा कर दान दक्षिणा देकर विदा करें।
- और उसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण करके व्रत का पारण करें।