रथ सप्तमी का व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रखा जाता है। रथ सप्तमी (Ratha Saptami 2022) के दिन खासतौर पर सूर्य की आराधना की जाती है. मान्यता है कि सूर्योदय से पहले पवित्र नदियों में स्नान करने से सारे कष्टों से मुक्ति मिल जाती है. आज के दिन सुबह उठकर सूर्य नमस्कार और आराधना करने से घर में सुख-शांति आती है. साथ ही घर के सभी कलेश खत्म हो जाते हैं

रथ सप्तमी की व्रत कहानी
एक बार की बात है कम्बोज साम्राज्य पर राजा यशोवर्मा नामक महान राजा राज्य किया करते थे। उनके उत्तराधिकारी के रूप में उनके कोई सन्तान नहीं हुई। राजा ने अनगिनत देवी देवताओं के मन्दिरों में जाकर मन्नतें मुरादें मांगी ताकि उन्हें अपने राज्य के लिए कोई वारिस मिल जाए।
परिणामस्वरूप ईश्वरीय कृपा से उन्हें एक सन्तान प्राप्त हुई।उनकी यह खुशी अधिक दिनों तक बनी न रह सकीं क्योंकि उनका पुत्र मानसिक रूप से बीमार था।तभी उनके राज्य में एक साधु भ्रमण करते हुए पहुंचे। राजा ने अपने राजमहल में साधु का बहुत आदर सत्कार किया।
अपनी सेवा से प्रसन्न होकर साधु ने बदले में कुछ मांगने को कहा। इस पर राजा ने अपने पुत्र की मानसिक बीमारी की व्यथा उन्हें सुनायी। साधु ने कहा कि यह सब तुम्हारे पूर्व जन्म के कर्मों का फल है जिस कारण से तुम्हारे पुत्र की यह हालत है।
इस सबसे उबरने के लिए साधु ने राजा को सूर्य रथ सप्तमी का व्रत पूरी सच्ची श्रद्धा और निष्ठा के साथ रखने को कहा। राजा ने भी रथ सप्तमी पूजा (Ratha Saptami Puja) पूरी विधि विधान से की।
इस सबका परिणाम यह हुआ कि राजा का पुत्र धीरे धीरे मानसिक लाभ प्राप्त करने लगा और पूरी तरह ठीक हो गया।
राजा के बाद उसके इस उत्तराधिकारी पुत्र ने राज्य पर शासन किया और कीर्ति, यश प्राप्त किया।
रथ सप्तमी की व्रत कहानी 2
एक गणिका इन्दुमती ने वशिष्ठ मुनि के पास जाकर मुक्ति पाने का उपाय पूछा. मुनि ने कहा, माघ मास की सप्तमी को अचला सप्तमी का व्रत करो. गणिका ने मुनि के बताए अनुसार व्रत किया. इससे मिले पुण्य से जब उसने देह त्यागी, तब उसे इन्द्र ने अप्सराओं की नायिका बना दिया. एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सौष्ठव पर बहुत अधिक अभिमान हो गया था. शाम्ब ने अपने इसी अभिमानवश होकर दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया. दुर्वासा ऋषि को शाम्ब की धृष्ठता के कारण क्रोध आ गया, जिसके पश्चात उन्होंने को शाम्ब को कुष्ठ हो जाने का श्राप दे दिया. तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र शाम्ब से भगवान सूर्य नारायण की उपासना करने के लिए कहा. शाम्ब ने भगवान कृष्ण की आज्ञा मानकर सूर्य भगवान की आराधना करनी आरम्भ कर दी. जिसके फलस्वरूप सूर्य नारायण की कृपा से उन्हें अपने कुष्ठ रोग से मुक्ति प्राप्त हो गई.