Homeव्रत कथाशुक्र प्रदोष व्रत कथा ,Shukra Pradosh Katha in hindi

शुक्र प्रदोष व्रत कथा ,Shukra Pradosh Katha in hindi

एकादशी की तरह ही वर्ष में 24 प्रदोष व्रत होते हैं , जो भी प्रदोष जिस वार को आता है उसका विशेष फल होता है । सर्वकार्य सिद्धि हेतु शास्त्रों में कहा गया है कि यदि कोई भी 11 अथवा एक वर्ष के समस्त त्रयोदशी के व्रत करता है तो उसकी समस्त मनोकामनाएं शीघ्रता से पूर्ण होती है । प्रदोष व्रत शुक्रवार के दिन पड़ने के कारण इसे शुक्र प्रदोष भी कहते हैं । मान्यता अनुसार शुक्र प्रदोष के दिन भगवान शिव के साथ शुक्र ग्रह का भी पूजन किया जाता है । शुक्र प्रदोष का व्रत रखने तथा इस दिन कुछ विशेष उपाय करने से विवाह संबंधी समस्याएं और ग्रह दोष समाप्त होते हैं । शुक्र प्रदोष के दिन गुलाबी या सफेद रंग के वस्त्र पहन कर पूजन करना चाहिए । ऐसा करने से शुक्र ग्रह मजबूत होता है तथा आर्थिक तंगी दूर होती है ।

शुक्र प्रदोष व्रत कथा

शुक्र प्रदोष व्रत कथा

प्राचीनकाल की बात है , एक नगर में तीन मित्र रहते थे एक राजकुमार , दूसरा ब्राह्मण कुमार और तीसरा धनिक पुत्र । राजकुमार व ब्राह्मण कुमार का विवाह हो चुका था । धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था , किन्तु गौना शेष था । एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे । ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा- ‘ नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है ’ धनिक पुत्र ने यह सुना तो तुरन्त ही अपनी पत्नी को लाने का निश्चय किया ।

माता – पिता ने उसे समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं । ऐसे में बहू – बेटियों को उनके घर से विदा करवा लाना शुभ नहीं होता । किन्तु धनिक पुत्र नहीं माना और ससुराल जा पहुंचा । ससुराल में भी उसे रोकने की बहुत कोशिश की गई , मगर उसने जिद नहीं छोड़ी । माता – पिता को विवश होकर अपनी कन्या की विदाई करनी पड़ी ।

ससुराल से विदा हो पति – पत्नी नगर से बाहर निकले ही थे कि उनकी बैलगाड़ी का पहिया अलग हो गया और एक बैल की टांग टूट गई दोनों को काफी चोटें आईं फिर भी आगे बढ़ते रहे । कुछ दूर जाने पर उनकी भेंट डाकुओं से हो गई । डाकू धन – धान्य लूट ले गए । दोनों रोते – पीटते घर पहुंचे । वहां धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया । उसके पिता ने वैद्य को बुलवाया । वैद्य ने निरीक्षण के बाद घोषणा की कि धनिक पुत्र तीन दिन में मर जाएगा ।

जब ब्राह्मण कुमार को यह समाचार मिला तो वह तुरन्त आया । उसने माता – पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने का परामर्ष दिया और कहा- ‘ इसे पत्नी सहित वापस ससुराल भेज दें यह सारी बाधाएं इसलिए आई हैं क्योंकि आपका पुत्र शुक्रास्त में पत्नी को विदा करा लाया है । यदि यह वहां पहुंच जाएगा तो बच जाएगा । ‘ धनिक को ब्राह्मण कुमार की बात ठीक लगी । उसने वैसा ही किया । ससुराल पहुंचते ही धनिक कुमार की हालत ठीक होती चली गई । शुक्र प्रदोष के माहात्म्य से सभी घोर कष्ट टल गए ।

शुक्र प्रदोष व्रत पूजा विधि

सुबह स्नान के बाद भगवान शिव, माता पार्वती और नंदी महाराज को पंचामृत और गंगा जल से स्नान कराएं. फिर बेल पत्र, गंध, अक्षत (चावल), फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), फल, पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं. फिर शाम के समय दोबारा स्नान करके इसी प्रकार से भगवान शिव की पूजा करें. इसके बाद सभी चीजों को एक बार फिर भगवान शिव को चढ़ाएं. भगवान शिव की सोलह सामग्री से पूजन करें. बाद में भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं. इसके बाद आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं. जितनी बार आप जिस भी दिशा में दीपक रखेंगे, दीपक रखते समय प्रणाम जरूर करें. अंत में शिव की आरती करें और साथ ही शिव स्त्रोत, मंत्र जाप करें. रात में जागरण करें.

शुक्र प्रदोष का महत्व

प्रदोष अथवा त्रयोदशी का व्रत मनुष्य को संतोषी व सुखी बनाता है । इस व्रत सम्पूर्ण पापों का नाश होता है । इस व्रत के प्रभाव से विधवा स्त्री अधर्म से दूर रहती है और विवाहित स्त्रियों का सुहाग अटल रहता है । वार के अनुसार जो व्रत किया जाए , तदनुसार ही उसका फल प्राप्त होता है । सूत जी के कथनानुसार त्रयोदशी का व्रत करने वाले को सौ गाय – दान करने का फल प्राप्त होता है ।

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