Homeव्रत और पूजनसोम प्रदोष व्रत कथा : som Pradosh Vrat Katha , kahani

सोम प्रदोष व्रत कथा : som Pradosh Vrat Katha , kahani

प्रदोष का दिन भगवान शिव को अति प्रिय माना गया है , इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से निर्धन को धन , नि : सन्तान को सन्तान की प्राप्ति होती है । सोमवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष व्रत कहते हैं , यदि मन में हमेशा घबराहट बनी रहती हो और चित्त शांत ना रहता हो तो प्रति माह आने वाले भगवान शिव के इस कल्याणकारी व्रत को जरूर करना चाहिये इस व्रत को करने वाले लोगों को जीवन में हार का सामना नहीं करना पड़ता , सोमवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला माना गया है ।

सोम प्रदोष व्रत कथा

सोम प्रदोष व्रत कथा , som Pradosh Vrat Katha

सोम प्रदोष की पौराणिक व्रतकथा के अनुसार एक में एक ब्राह्मणी रहती थी । उसके पति का स्वर्गवास हो गया था । उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रातः होते ही वह अपने पुत्र साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी । भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी । एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था कराहता हुआ मिला । ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई । वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था । शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा – मारा फिर रहा था । राजकुमार ब्राह्मण – पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा । कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता – पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए उन्होंने वैसा ही किया । एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो उस पर मोहित हो गई । अगले दिन अंशुमति अपने माता – पिता को राजकुमार से मिलाने लाई । उन्हें भी राजकुमार भा गया ।ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी । उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुनः प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा । राजकुमार ने ब्राह्मण – पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया । ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण – पुत्र के दिन फिरे वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं सोम प्रदोष का व्रत करने वाले सभी भक्तों को यह कथा अवश् अथवा सुननी चाहिए ।

सोम प्रदोष व्रत पूजा विधि

यदि किसी मास में त्रयोदशी सोमवार के दिन आये तो उसे सौम्य अथवा सोम प्रदोष कहते हैं । सोम प्रदोष का महात्म्य अन्य दिनों में आने वाली त्रयोदशी से अधिक होता है क्योंकि सोमवार शिवपूजा का विशेष दिन है । इसकी महत्ता इसलिए भी अधिक है क्योंकि अधिकांश लोग अभीष्ट फल की प्राप्ति के लिये यह व्रत नियमित रूप से करते हैं जब तक इच्छित फल की प्राप्ति न हो जाए प्रदोष व्रत की विधि और उद्यापन कर्म उसी प्रकार करने चाहियें जैसे अन्य प्रदोष व्रतों में करते हैं

स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहनें। उसके बाद आप बिल पत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें। इस व्रत के दौरान कोई भी भोजन नहीं किया जाता है। पूरे दिन उपवास करने के बाद सूर्यास्त से कुछ देर पहले फिर से स्नान करें और सफेद रंग के कपड़े पहनें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। इसके बाद गाय का गोबर लें और इसकी सहायता से मंडप तैयार करें। पांच अलग-अलग रंगों की मदद से आप मंडप में रंगोली बना सकते हैं. पूजा की सभी तैयारी करने के बाद आपको उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश आसन पर बैठना चाहिए। भगवान शिव के मंत्र ओम नमः शिवाय का जाप करें और शिव को जल अर्पित करें।

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