Homeव्रत कथागुरु प्रदोष व्रत कथा : guru pradosh vrat katha in hindi

गुरु प्रदोष व्रत कथा : guru pradosh vrat katha in hindi

गुरुवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोष व्रत कहा जाता है। हर दिन आने वाले प्रदोष व्रत का अलग-अलग महत्व होता है। प्रदोष व्रत हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को रखा जाता है। मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 

guru pradosh vrat katha

गुरु प्रदोष व्रत की कथा हिन्दी

स्कंद पुराण के एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी रोज अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती । ऐसे ही एक दिन वह जब भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे . एक अत्यंत सुन्दर बालक दिखा । वह बालक उदास था और अकेला बैठा हुआ था । वह विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था । हालांकि , ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है एक युद्ध में शत्रुओं ने धर्मगुप्त के पिता को मार दिया था और उसका राज्य हड़प लिया था । इसके बाद उसकी माता की भी मृत्यु हो गई । ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और अच्छे से उसका पालन – पोषण किया । कुछ समय बाद ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देव मंदिर गई । यहीं उनकी भेंट ऋषि शांडिल्य से हुई । ऋषि ने बताया कि जो बालक मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है । यह सुनकर महिला उदास हो गई । महिला की उदासी को देखकर ऋषि शांडिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी ऋषि की आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया ।

दोनों बालक कुछ दिनों बाद जब बड़े हुए तो वन में घूमने निकले गये । वहां उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई । ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की गंधर्व कन्या पर मोहित हो गया । कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया । दूसरे दिन जब वह पुन : गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता को पता चला कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है इसके बाद भगवान शिव की आज्ञा और आशीर्वाद से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से करा दिया । राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर फिर से अपना शासन स्थापित किया । मान्यता है कि ऐसा ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था । स्कंद पुराण के अनुसार जो कोई प्रदोष व्रत करता है और इसकी कथा सुनता या पढ़ता उसकी तमाम समस्याएं दूर होती हैं ।

गुरु प्रदोष व्रत विधि

गुरुवार यानी त्रयोदशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर सबसे पहले भगवान शिवजी को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें। इसके बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान कर आमचन कर व्रत संकल्प लें। अब सफेद वस्त्र धारण करें। इसके बाद सबसे पहले सूर्यदेव को जल का अर्ध्य दें। अब पूजा गृह में चौकी पर भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर उनकी पूजा जल, काले तिल, बिल्व पत्र, भांग, धतूरा, फल, फूल, दूध, दूर्वा, धूप-दीप आदि वस्तुओं से करें। साथ ही प्रदोष व्रत कथा कर भगवान भोलेनाथ की आरती अर्चना करें। अंत में ओम नमः शिवाय मंत्र का एक माला जाप करें। दिनभर उपवास रखें। संध्याकाल में आरती अर्चना कर फलाहार करें। अगले दिन नित्य दिनों की तरह पूजा पाठ कर व्रत खोलें।

गुरु प्रदोष व्रत का महत्व

त्रयोदशी तिथि का अपना महत्व हैं। मान्यता है कि भगवान शिव ने असुरों को परास्त कर उनका विनाश किया था। प्रदोष व्रत का धार्मिक महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व होता है। गुरु प्रदोष व्रत करने से मनोकामना पूरी होती है। मान्यता है यह व्रत करने से संतान पक्ष को लाभ प्राप्त होता है

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