शुक्रवार का व्रत माता संतोषी को समर्पित है। इस दिन माता संतोषी की पूजा अर्चना की जाती है व उनका व्रत भी किया जाता है। माता संतोषी को सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली देवी माना गया है।
माता संतोषी का 16 शुक्रवार व्रत करने का विधान भी है। माता संतोषी के इस व्रत करने से घर में खुशहाली धन-धान्य तथा सुख शांति प्राप्त होती है।
शुक्रवार, संतोषी माता के व्रत की विधि
इस व्रत को करने वाला कथा के पूर्व कलश को जल से पूर्ण भरकर उसके ऊपर गुड व चने से भरी कटोरी रखें तथा कथा कहते समय हाथ में गुड़ और भुने हुए चने रखें।
सुनने वाले संतोषी माता की जय, संतोषी माता की जय इस प्रकार जय जयकार से बोलते जाएं। कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड़ और चना गौमाता को खिलाएं। कलश में रखा हुआ गुड व चना सब को प्रसाद के रूप में बांट दें। तथा कथा समाप्त होने और आरती के बाद कलश के जल को घर में सब जगह पर छिड़के और बचा हुआ जल तुलसी की क्यारी में डालें। माता भावना की भूखी है कम ज्यादा का कोई विचार नहीं इसलिए जितना भी बन सके प्रसाद अर्पण कर श्रद्धा और प्रेम से प्रसन्न मन से व्रत करना चाहिए। व्रत के उद्यापन में अढ़ाई सेर खाजा, चने की सब्जी, मोइनदार पूड़ी, खीर, नैवेद्य रखें। घी का दीपक जलाकर संतोषी माता की जय जय कार बोलकर नारियल फोड़े। इस दिन घर में कोई खटाई न खाएं न दूसरों को खटाई खाने दें। इस दिन 8 लड़कों को भोजन कराएं। देवर जेठ घर के ही लड़के हो तो दूसरों को बुलाना नहीं। अगर कुटुंब में ना मिले तो ब्राह्मणों के रिश्तेदारों के या पड़ोसियों के लड़के बुलाएं। उन्हें खटाई की कोई वस्तु न दे तथा भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा दें।
शुक्रवार व्रत कथा

एक समय की बात है की एक नजर में कायस्थ, ब्राह्मण और वैश्य जाति के तीन लड़कों में परस्पर गहरी मित्रता थी। उन तीनों का विवाह हो गया था। ब्राह्मण और कायस्थ के लड़कों का गौना भी हो गया था, परंतु वैश्य के लड़के का गौना नहीं हुआ था। 1 दिन कायस्थ के लड़के ने कहा हे मित्र! तुम गौना करके अपनी पत्नी को अपने साथ क्यों नहीं रखते? पत्नी के बिना घर कैसा सुना लगता है।
यह बात वैसे के लड़के को जच गई। वह कहने लगा कि मैं अभी जाकर मुकलावा करके उसे लेकर आता हूं। ब्राह्मण के लड़के ने कहा अभी मत जाओ क्योंकि शुक्र अस्त हो रहा है जब उदय हो जाए तब जाकर ले आना। परंतु वैश्य के लड़के को ऐसी ज़िद्द हो गई किसी प्रकार से नहीं माना। जब उसके घर वालों ने सुना तो उन्होंने भी बहुत समझाया परंतु वह किसी प्रकार से नहीं माना और अपने ससुराल चला गया।
उसको आया हुआ देखकर ससुराल वाले भी चकराए। जामाता का स्वागत सत्कार करने के बाद उन्होंने पूछा कि आपका कैसे आना हुआ? वैश्य पुत्र कहने लगा कि मैं पत्नी को विदा कराने के लिए आया हूं। ससुराल वालों ने भी उसे बहुत समझाया कि इन दिनों शुक्र अस्त है उदय होने पर ले जाना परंतु उसने एक न सुनी और पत्नी को ले जाने का आग्रह करता रहा।
जब वह किसी प्रकार से ने माना तो उन्होंने लाचार होकर अपनी पुत्री को विदा कर दिया। वैश्य पुत्र पत्नी को एक रथ में बैठा कर अपने घर की ओर चल पड़ा।
थोड़ी दूर जाने के बाद मार्ग में उसके रथ का पहिया टूट कर गिर गया और बेल का पैर टूट गया। उसकी पत्नी पड़ी और घायल हो गई। जब दोनो घर की ओर चले तब रास्ते में आगे उन्हें लुटेरे मिले। उनके पास जो धन और पत्नी के पास वस्त्र आभूषण थे वे सब उन लुटेरों ने छीन लिए। इस प्रकार अनेक कष्टों का सामना करते हुए जब पति पत्नी अपने घर पहुंचे तो आते ही वैश्य के लड़के को सांप ने काट लिया वह मूर्छित होकर गिर गया। तब उसकी पत्नी अत्यंत विलाप कर रोने लगी। वैश्य ने अपने पुत्र को वैद्य को दिखलाया तो वैद्य कहने लगे यह 3 दिन में मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। जब उसके मित्र ब्राह्मण के लड़के को सारी बात का पता लगा तो उसने कहा सनातन धर्म की प्रथा है कि जिस समय शुक्र का अस्त हो कोई अपनी स्त्री को नहीं लाता। परंतु यह शुक्र के अस्त में स्त्री को विदा कराकर ले आया है इस कारण सारे विघ्न उपस्थित हुए हैं। यदि यह दोनों ससुराल वापस चले जाएं और शुक्र के उदय होने पर हीपुनःआवे तो निश्चय ही विघ्न टल सकता है। सेठ ने अपने पुत्र और उसकी पत्नी को शीघ्र ही उसके ससुराल वापस पहुंचा दिया। वहां पहुंचते ही वैश्य पुत्र की मूर्छा दूर हो गई और साधारण उपचार से ही सर्प विश से मुक्त हो गया। अपने दामाद को स्वस्थ देखकर ससुराल वाले अत्यंत प्रसन्न हुए। वैश्य पुत्र अपने ससुराल में ही स्वास्थ्य लाभ कराता रहा और जब शुक्र का उदय हुआ तब हर्षपूर्वक उसके ससुराल वालों ने उसको अपनी पुत्री सहित विदा किया। इसके पश्चात पति-पत्नी दोनों घर आकर आनंद से रहने लगी इस व्रत के करने से अनेक विघ्न दूर होते हैं।