कामदा एकादशी व्रत कथा। kamada ekadashi vrat katha in Hindi.

6 Min Read


चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी ही  कामदा एकादशी होती हैं। कामदा एकादशी का व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है।यह पापों को उसी प्रकार नष्ट कर देती है जिस प्रकार अग्नि सूखी लकड़ी को जलाकर नष्ट कर देती है।

कामदा एकादशी के पुण्य के प्रभाव से पाप नष्ट हो जाते हैं और पुत्र की प्राप्ति के लिए भी कामदा एकादशी व्रत किया जाता है इसके व्रत करने से कुयोनि से मुक्ति मिलती है और स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है यह एकादशी रामनवमी के एक दिन बाद होती है।

कामदा एकादशी व्रत कथा।

कामदा एकादशी व्रत कथा- एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कामदा एकादशी के महत्व के बारे में पूछा कि हे प्रभु! आप हमें कृपया कामदा एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताएं। भगवान श्री कृष्ण ने कहा की है धर्मराज आपने जो पूछा है यही राजा दिलीप ने ऋषि वशिष्ठ से भी पूछा था और उन्होंने जो इस व्रत का महत्व के बारे में बताया वही मैं आपको बताता हूं।
प्राचीन काल में भोगीपुर नामक एक शहर था। पुंडरिक नाम का एक शक्तिशाली राजा, वहाँ शासन करता था। भोगीपुर शहर में कई अप्सराएँ, यमदूत और गंधर्व रहते थे। एक जगह पर, ललिता और ललित नाम की दो स्त्री पुरुष एक बहुत ही शानदार घर में रहते थे। दोनों में अपार स्नेह था, कुछ देर के लिए अलग होने पर ही दोनों विचलित हो जाते थे।

एक समय, ललित राजा पुंडरिक की बैठक में अन्य गंधर्वों के साथ गीतगा रहा था। जब ललित गा रहा था तो उसे अपनी प्यारी ललिता का ध्यान आया और ध्यान भटक जाने के कारण गीत का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन को जानने के बाद, करकोट नामक एक नाग ने राजा को पद से भटकने का कारण बताया। तब राजा पुंडरिक ने गुस्से से कहा कि तु अपनी स्त्री को मेरे सामने गाते हुए याद कर रहा है, इसलिए, तु कच्चे मांस और मनुष्यों को खाने वाले राक्षस बन जायेगा, और अपने कर्म के फल भोगेगा।

पुंडरीक के श्राप के कारण ललित बहुत भयानक और बहुत ही विशालकाय लगभग आठ योजन के बराबर बहुत बड़ा राक्षस बन गया और श्राप के कारण बहुत दुख भोगने लगा। जब यह बात ललित की पत्नी को पता चली तो वह बहुत दुखी हुई और अपने पति को श्राप से मुक्ति के लिए सोचने लगी। वह भी अपने पति ललित जो अब एक भयानक राक्षस बन चुका था के पीछे पीछे जंगलों में चली गई। और एक दिन उसके पीछे घूमती हुई विंध्याचल पर्वत तक जा पहुंची।
विंध्याचल पर्वत पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था वह आश्रम में गई और ऋषि से अपने पति के श्राप से मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगी।
श्रृंगी ऋषि ने श्राप का कारण पूछा तो उसने बताया कि राजा पुंडरीक के श्राप के कारण एक ही ललित भयानक और विशालकाय राक्षस बन चुका था।
ऋषि ने श्राप से मुक्ति का उपाय बताते हुए ललिता से कहा की अब से कुछ ही दिनों बाद चैत्र शुक्ल एकादशी को कामदा एकादशी का व्रत है तुम्हें उस व्रत का पालन करना है। और एकादशी के व्रत का फल अपने पति को दो तुम्हारा पति राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा।
ललिता ने ऋषि द्वारा बताई गई विधि अनुसार एकादशी का व्रत किया और ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को दिया जिससे उसका पति राक्षस योनि से मुक्त हो गया और दोनों ने स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया।
अपने पापों से मुक्ति के लिए कामदा एकादशी व्रत से अधिक महत्व किसी व्रत का नहीं है इस व्रत की कथा सुनने में कहने मात्र से ही वाजपेई यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

कामदा एकादशी व्रत का महत्वकामदा एकादशी व्रत का पालन करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और सुहागिन स्त्रियों द्वारा यह व्रत करने से उनको अखंड सौभाग्यवती होने का फल प्राप्त होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कामदा एकादशी का व्रत करने राक्षसों को भी कामदा एकादशी का व्रत करने से उनके पाप नष्ट होते थे और कोई होने से मुक्ति मिलती थी। इस एकादशी का व्रत करने से घर से बुरी शक्तियों का प्रभाव नष्ट होता है और सुख शांति बनी रहती है।

कामदा एकादशी व्रत का पालन करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और सुहागिन स्त्रियों द्वारा यह व्रत करने से उनको अखंड सौभाग्यवती होने का फल प्राप्त होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कामदा एकादशी का व्रत करने राक्षसों को भी कामदा एकादशी का व्रत करने से उनके पाप नष्ट होते थे और कोई होने से मुक्ति मिलती थी। इस एकादशी का व्रत करने से घर से बुरी शक्तियों का प्रभाव नष्ट होता है और सुख शांति बनी रहती है।

Share This Article