vijaya ekadashi vrat katha. विजया एकादशी व्रत कथा।

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विजया एकादशी फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी है। विजया एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है विजया एकादशी का व्रत रखने से सभी पाप नष्ट हो जाते है।तथा विजय की प्राप्ति होती हैं। विजया एकादशी का व्रत रखने तथा इसकी कहानी पढ़ने या सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ के समान फल मिलता है ।

विजया एकादशी व्रत कथा तथा इसके महत्त्व के बारे में भगवान विष्णु ने युधिष्ठिर को बताया था। आइए जानते हैं विजया एकादशी व्रत कथा और इसके महत्त्व के बारे में-

vijaya ekadashi vrat katha. विजया एकादशी व्रत कथा।

विजया एकादशी व्रत कथा- त्रेता युग में भगवान विष्णु के अवतार श्री राम राजा दशरथ के घर जन्म लेते हैं। जो भगवान श्री राम का राज्याभिषेक का समय आता है तब राजा दशरथ की प्रिय महारानी कैकई अपनी दासी मंदोदरी की बातों में आकर श्री राम के लिए 14 वर्ष का वनवास और अपने पुत्र भरत के लिए राज्य सिंहासन की मांग करती है। पूर्व में दिए गए वचन के कारण राजा दशरथ केकई से वचनबद्ध हो गए इस कारणवश उन्होंने श्री राम को 14 वर्ष का वनवास दिया।

भगवान श्री राम के साथ उनकी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण जीवन में जाते हैं। वन में रावण के द्वारा आदेश देने पर मारीच राक्षस सोने के हिरण का रूप लेकर उनके सामने जाता है उसे देखकर सीता माता भगवान श्रीराम को वह हिरण लाने के लिए बोलती है और श्री राम उस किरण के पीछे उसका शिकार करने के लिए चले जाते हैं। जब राम मारीच राक्षस का वध करते हैं तो मारीच अपनी माया से श्री राम की आवाज में लक्ष्मण को और सीता जी को सहायता की पुकार लगाता है। यह सुनकर सीता माता व्याकुल हो जाती है और लक्ष्मण को श्रीराम की सहायतार्थ भेज देती है। सीता को अकेले पाकर रावण सीता माता का हरण करके लंका ले जाता है। जब राम को सीता के हरण की बात का पता चलता है तो उसकी खोज में निकल जाते हैं। श्री राम सीता को जंगल खोजते हुए आगे बढ़ते हैं ,रास्ते में उन्हें जटायु मूर्छित अवस्था में मिलते हैं जो सीता को रावण से बचाने के प्रयास में रावण के साथ युद्ध करने में घायल हो जाते हैं और जमीन पर आकर गिर जाते हैं । जटायु राम को सीता का रावण के द्वारा हरण की बात बताते हैं। श्री राम सीता को खोजते हुए किष्किंधा पर्वत की ओर जाते हैं जहां उनकी मुलाकात वानर राज सुग्रीव से होती है। सुग्रीव की सहायता के साथ वानर सेना एकत्रित करके श्रीराम लंका की ओर लंका विजय के लिए निकलते हैं। जय श्री राम समुद्र तट पर पहुंचते हैं तो समुद्र से रास्ता देने के लिए विनती करते हैं। पर समुद्र के द्वारा रास्ता नहीं दिए जाने पर लक्ष्मण के सुझाव पर वह वकदालभ्य ऋषि के आश्रम में जातें है। वकदालभ्य ऋषि  श्री राम को उनके आश्रम में आने का कारण पूछते हैं तो श्रीराम उन्हें सारा वृतांत सुनाते हैं।

वकदालभ्य ऋषि श्रीराम की बात सुनकर उन्हें विजया एकादशी के महत्व के बारे में बताते हैं और उसका व्रत रखने के लिए बोलते हैं और कहते हैं कि यदि आप फाल्गुन मास की कृष्ण एकादशी जिसे विजय एकादशी भी कहते है,यदि आप इस एकादशी का व्रत रखते हैं तो निश्चित ही आपकी विजय होगी और आपको रास्ता भी मिलेगा।वकदालभ्य mऋषि व्रत की विधि के बारे में बताते हैं कि

फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन सोना,चांदी, तांबा या मिट्टी का एक घड़ा बनाकर उस में जल भरे वेदिका के ऊपर सतनजा रखकर उस पर घड़ा स्थापित करें और इस पर जौ रख दे। साथ ही वेदिका पर भगवान श्री विष्णु की मूर्ति की स्थापना करें। एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करके निवृत हो जाए और फूल, नैवेद्य ,दीप तथा नारियल से भगवान विष्णु की पूजा करें। दिन में घड़े के सामने बैठकर पूजा अर्चना करें और रात में जागरण करें।

वकदालभ्य ऋषि ने कहा कि हे राजन यदि आप पूरे मन से यह एकादशी का व्रत पूरे विधि विधान से करते हैं तो आप शीघ्र ही लंका को विजय कर लेंगे। भगवान श्रीराम ने पूरे विधि विधान के साथ विजया एकादशी के व्रत का पालन किया इस वजह से उन्हें रावण और सभी राक्षसों पर विजय प्राप्त हुई।

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