पन्नाधाय की कहानी। pannadhay ki kahani.

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पन्नाधाय की कहानी(pannadhay ki kahani) : चित्तौड़ के महाराणा संग्रामसिंह की वीरता प्रसिद्ध है । उनके स्वर्गवासी होने पर चित्तौड़ की गद्दी पर राणा विक्रमादित्य बैठे ; किन्तु वे शासन करने की योग्यता नहीं थे । उनमें न बुद्धि थी और न वीरता । इसलिये चित्तौड़ के सामन्तों और मन्त्रियों ने सलाह करके उनको गद्दी से उतार दिया तथा महाराणा संग्रामसिंह के छोटे कुमार उदयसिंह को गद्दी पर बैठाया । उदयसिंह की अवस्था उस समय केवल छ : वर्ष की थी । उनकी माता रानी करुणावती का स्वर्गवास हो चुका था । पन्ना नाम की एक धाय उनका पालन – पोषण करती थी । राज्य का संचालन दासी – पुत्र बनवीर करता था । वह उदयसिंह का संरक्षक बनाया गया था । बनवीर के मन में राज्य का लोभ आया । उसने सोचा कि यदि विक्रमादित्य और उदयसिंह को मार दिया जाय तो सदा के लिये वह राजा बन सकेगा । सेना और राज्य का संचालन उसके हाथ में था ही । एक दिन रात में बनवीर नंगी तलवार लेकर राजभवन में गया और उसने सोते हुए राजकुमार विक्रमादित्य का सिर काट लिया । जूठी पत्तल उठाने वाले एक बारी ने बनवीर को विक्रमादित्य की हत्या करते देख लिया । वह ईमानदार और स्वामिभक्त बारी बड़ी शीघ्रता से पन्ना के पास आया और उसने कहा – ‘ बनवीर राणा उदयसिंह की हत्या करने शीघ्र ही यहाँ आयेगा । कोई उपाय करके बालक राणा के प्राण बचाओ । ‘ पन्ना धाय अकेली बनवीर को कैसे रोक सकती थी । उसके पास कोई उपाय सोचने का समय भी नहीं था । लेकिन उसने एक उपाय सोच लिया । उदयसिंह उस समय सो रहे थे । उनको उठाकर पन्ना ने एक टोकरी में रख दिया और टोकरी पत्तल से ढककर उस बारीको देकर कहा – ‘ इसे लेकर तुम यहाँ से चले जाओ । वीरा नदी के किनारे मेरा रास्ता देखना । ‘ उदयसिंह को छिपाकर हटा देने से भी काम चलता नहीं था । बनवीर को पता लग जाय कि उदयसिंह को छिपाकर भेजा गया है तो वह घुड़सवार भेजकर उन्हें अवश्य पकड़ लेगा। पन्ना ने एक दूसरा ही उपाय सोचा उसके भी एक पुत्र था उसके पुत्र चंदन की अवस्था भी छह वर्ष की थी। उसने अपने पुत्र को उदयसिंह के पलंग पर सुलाकर रेशमी चद्दर उढ़ा दी और स्वयं एक ओर बैठ गयी । जब बनवीर रक्त में सनी तलवार लिये वहाँ आया और पूछने लगा – ‘ उदयसिंह कहाँ है ? ‘ तब पन्नाने बिना एक शब्द बोले अंगुली से अपने सोते लड़के की ओर संकेत कर दिया । हत्यारे बनवीर ने उसके निरपराध बालक के तलवार द्वारा दो टुकड़े कर दिये और वहाँ से चला गया । अपने स्वामी की रक्षा के लिये अपने पुत्र का बलिदान करके बेचारी पन्ना रो भी नहीं सकती थी । उसे झटपट वहाँ से नदी किनारे जाना था , जहाँ बारी उदयसिंह को लिये उसका रास्ता देखता था । पन्ना ने अपने पुत्र की लाश ले जाकर नदी में डाल दी और उदयसिंह को लेकर मेवाड़ से चली गयी । उसे अनेक स्थानों पर भटकना पड़ा । अन्त में देवरा के सामन्त आकाशाह ने उसे अपने यहाँ आश्रय दिया । बनवीर को अपने पापका दण्ड मिला । बड़े होने पर राणा उदयसिंह चित्तौड़ की गद्दी पर बैठे । पन्ना धाय उस समय जीवित थी । राणा उदयसिंह माता के समान उसका सम्मान करते थे। पन्ना माई धन्य है । स्वामी के लिये अपने पुत्र तक का बलिदान करने वाली पन्ना माई धन्य है।

पन्नाधाय की कहानी(कथा)। pannadhay ki kahani

तो दोस्तों मैं आशा करता हूं कि आपको यह पन्नाधाय की कहानी(pannadhay ki kahani) पसंद आई होगी धन्यवाद।

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