कार्तिक शुक्ल एकादशी का नाम देवोत्थान एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी है । क्योंकि चार माह तक निद्रावस्था में रहने के बाद आज भगवान विष्णु जागे थे । श्री विष्णुजी के शयनकाल के चार मासों में विवाह आदि कोई मांगलिक कार्य नहीं होते हैं ।
श्री विष्णु के जागने के बाद ही समस्त मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं । इस दिन प्रातः काल स्नान करके घर के आंगन में चौक पूरकर भगवान विष्णु भगवान के चरणों को ढक देते हैं । रात्रि में विधिवत पूजन करके प्रातः काल भगवान को शंख , घंटा – घड़ियाल आदि बजाकर जगाया जाता है । इसके पश्चात् पूजा करके कथा सुनी जाती है । इस दिन श्री विष्णु की कदम्ब – पुष्पों और तुलसी की मंजरियों द्वारा पूजा करने का विशेष महत्त्व होता है ।
prabodhini ekadashi vrat katha
भगवान बोले- हे धर्मराज ! अब मैं कार्तिक कृष्णा एकादशी की कथा कहता हूँ , जिसे तुम ध्यान से श्रवण करो । यह एकादशी पापों का नाश करके सुख पहुँचाने वाली है । यह एकादशी सांसारिक सुख को देने के साथ – साथ अन्त में सद्गति देने वाली है , एकादशी का व्रत करने वाले को सब इन्द्रियों को वश में कर बुरे कर्मों का त्याग कर देना चाहिए ।
भगवान विष्णु की पूजा धूप – दीप अध्यर्य नैवेद्य आदि से पूजा कर रात में जागरण करना चाहिए इस प्रकार विधिपूर्वक जो प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करता है वह संसार में सभी सुखों को भोगकर अन्त में मुक्ति के सुख को प्राप्त करता है । इसलिए सुख और मुक्ति को चाहने वालों को यह व्रत अवश्य ही करना चाहिए ।
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