Jal par nibandh. विश्व मे गहराते जलसंकट पर निबंध।

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  1. प्रस्तावना
  2. जल का महत्व
  3. जलाभाव का परिणाम
  4. जल की उपलब्धता
  5. भावी जल संकट
  6. उपसंहार

1. प्रस्तावना

वेदों में कहा गया है- ‘ आप एव ससर्जादौ ‘ अर्थात् परमात्मा ने सबसे पहले जल की सृष्टि की । पुराणों में विष्णु के प्रथम अवतार वाराह द्वारा जलमग्न पृथ्वी का उद्धार किए जाने का वर्णन मिलता है । प्रलय अर्थात् सृष्टि का अन्त होने पर समस्त धरती जलमग्न हो जाती है । इन बातों को हम मिथक कह सकते हैं । किन्तु विज्ञान के अनुसार जल जीवन या जीव सृष्टि की प्रथम शर्त है । चन्द्रमा या मंगल पर जीवन की खोज में जुटे वैज्ञानिकों की आशा का बिन्दु भी , वहाँ कभी न कहीं जल की उपस्थिति पर ही टिका है । शब्दकोश भी जल और जीवन को पर्यायवाची बताता है ।

2. जल का महत्व

Jal par nibandh. विश्व मे गहराते जलसंकट पर निबंध।

सम्पूर्ण सौरमण्डल में आज तक ज्ञात ग्रहों में पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जहाँ जल का अपार भण्डार है । जल के बिना जीवन की कल्पना ही असम्भव है । जल ने ही पृथ्वी पर चर – अचर जीव जगत् को सम्भव बनाया है । जीवाणु से लेकर स्थूलतम जीव हाथी तक और शैवाल से लेकर गगनचुम्बी वृक्षों तक सभी का जीवनाधार जल ही है । मानव शरीर में भी सर्वाधिक मात्रा जल की ही है । जल की कमी हो जाने पर जीवन के लाले पड़ जाते हैं और कृत्रिम उपायों से शरीर में उसकी पूर्ति करनी पड़ती है ।

हमारे भोजन , वस्त्र , भवन , स्वच्छता , स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संतुलन सभी के लिए जल का कोई विकल्प नहीं है । हमारी सुख – सुविधा , आमोद – प्रमोद और मनोरंजन भी जल से जुड़ा हुआ है । घरों में कपड़े धोने , भोजन बनाने , स्नान करने और गर्मी से बचने को कूलर चलाने में जल ही सहायक होता है ।

जलाशयों में तैरकर और नौकाविहार करके हम आनन्दित होते हैं । हमारी गृह – वाटिकाओं में जल चाहिए । पार्कों और वनांचलों की हरियाली जल पर ही टिकी है । जल के बिना कृषि की कल्पना ही नहीं की जा सकती । जीवन के अस्तित्व और पोषण से जुड़ी किसी भी वस्तु को देख लीजिए , किसी न किसी स्तर पर उसे जल के योगदान की आवश्यकता अवश्य होती है ।

3. जलाभाव का परिणाम

कल्पना कीजिए कि पृथ्वी कभी जल – विहीन हो जाय तो क्या दृश्य उपस्थित होगा ? जीव जगत् तड़प – तड़प कर दम तोड़ेगा । यह मनोरम हरीतिमा , ये इठलाती नदियाँ , झर – झर करते निर्झर , लहराते सागर , रिमझिम बरसते मेघ , ये चहल – पहल , दौड़ते वाहन , नृत्य – संगीत के आयोजन , ये मारामारी , सब कुछ नामशेष हो जाएँगे ।

4. जल की उपलब्धता

प्रकृति ने जीवनाधार जल की प्रभूत मात्रा मानव जाति को उपलब्ध कराई है । पृथ्वी का लगभग तीन – चौथाई भाग जलावृत है । इसमें मानवोपयोगी जल की मात्रा भी कम नहीं है । नदियों , सरोवरों , झीलों आदि के रूप में पेयजल उपलब्ध है ।

5. भावी जल संकट

आज प्रकृति के इस निःशुल्क उपहार पर संकट के बादल मँडरा रहे हैं । नगरों और महानगरों के अबाध विस्तार ने तथा औद्योगीकरण के उन्माद ने भूगर्भीय जल के मनमाने दोहन और अपव्यय को प्रोत्साहित किया है । भारत के अनेक प्रदेश , जिनमें राजस्थान भी सम्मिलित है , जल स्तर के निरंतर गिरने से संकटग्रस्त हैं ।

जल की उपलब्धता निरंतर कम होती जा रही है । इस संकट के लिए मनुष्य ही प्रधान रूप से उत्तरदायी है । अति औद्योगीकरण से बढ़ रहे भूमण्डलीय ताप ( ग्लोबल वार्मिंग ) से , ध्रुवीय हिम तथा ग्लेशियरों के शीघ्रता से पिघलने की आशंका व्यक्त की जा रही है । वैज्ञानिक घोषणा कर रहे हैं कि अगली तीन चार दशाब्दियों में गंगा , यमुना , ब्रह्मपुत्र आदि का केवल नाम ही शेष रह जाएगा । हिम तथा ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र का जल – स्तर बढ़ जाएगा तथा समुद्र तट पर बसे शहर खत्म हो जायेंगे ।

6. उपसंहार

जल है तो जीवन है ‘ इस सच को राजस्थान से अधिक और कौन जानता है । जल जैसी बहुमूल्य वस्तु प्रति हमारा उपेक्षापूर्ण रवैया कितना घातक हो सकता है , यह उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है । अतः अभी से जल – प्रबंधन के प्रति जागरूक होना हमारे लिए जीवित रहने की शर्त बन गया है । अतः परम्परागत एवं आधुनिक तकनीकों से जल के संरक्षण और भंडारण का कार्य युद्ध स्तर पर होना चाहिए । जनता और प्रशासन दोनों के उद्योग और सहयोग से ही इस भावी संकट से पार पाना सम्भव है

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