आंवला नवमी की कहानी।amla navami ki kahani.

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कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवला नवमी का व्रत किया जाता है । इस आंवला नवमी के व्रत को करने से व्रत , पूजन , अर्पण आदि का फल अक्षय हो जाता हैं इसलिए इसे अक्षय नवमी भी कहते हैं । इस दिन गाय , पृथ्वी , स्वर्ण तथा वस्त्र , आभूषण आदि का दान करने से ब्रह्महत्या जैसे महापाप का भी विनाश हो जाता है ।

आंवला नवमी के व्रत के दिन स्नानादि करके पूर्व की ओर मुख करके आँवले के वृक्ष की षोडशोपचार विधि द्वारा पूजन करते हैं । फिर वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराकर , पेड़ के चारों ओर सूत लपेटकर कपूर या घी की बत्ती से आरती करके एक सौ आठ , परिक्रमाएँ लगाते हैं । पूजन सामग्री में जल , रोली , अक्षत , गुड़ बताशे , दीपक और आंवला होने चाहिये । तत्पश्चात् ब्राह्मण – ब्राह्मणी के भोजन में आंवला अवश्य होना चाहिये ।

आंवला नवमी की कहानी।amla navami ki kahani.

एक आंवला राजा था जो रोज एक मन सोने के आंवला दान करता था और बाद में खाना खाता था । एक दिन उसके बेटों की बहुओं ने सोचा कि रोज इतने आंवले का दान करेंगे तो सारा धन खत्म हो जायेगा इसलिए इन का दान बन्द कर देना चाहिए । फिर पुत्र आया और राजा से बोला कि आप तो सारा धन लुटा देंगे इसलिए आप आंवले का दान करना बंद कर दो ।

तब राजा और रानी उजाड़ में जाकर बैठ गये । चूंकि वह आंवलों का दान नहीं कर सके इसलिए उन्होंने कुछ भी नहीं खाया । तब भगवान ने सोचा कि अगर हमने इनका सत नहीं रखा तो दुनिया में हमें कोई नहीं मानेगा । तब भगवान ने सपने में कहा कि तुम उठो और तुम्हारे पहले जैसी रसोई हो गई है। और आंवले का वृक्ष लगा हुआ है । तुम दान करो और जीम लो । तब राजा – रानी ने उठकर देखा तो पहले जैसे राज – पाठ हो गया है । और सोने के आंवले वृक्ष पर फैले हुए हैं ।

तब राजा रानी सवा मन आंवले का दान करने लगे । वहां पर बेटे बहू के घर अन्न का अकाल पड़ गया । आसपास के लोगों ने कहा कि जंगल में एक आंवलिया राजा है सो तुम वहां चलो तो तुम्हारा दुःख दूर हो जायेगा । वह दोनों वहां पहुंच गए । वहां पर रानी अपने बेटे और बहू को देखकर पहचान गई और अपने पति से बोली कि इन दोनों से काम तो कम करायेंगे और मजदूरी ज्यादा देंगे । एक दिन रानी ने अपनी बहू को बुलाकर कहा कि मुझे सिर सहित नहला दो । बहू सिर धोने लगी तो बहू आंख में से पानी निकल कर रानी की पीठ पर पड़ गया ।

तब रानी बोली कि मेरी पीठ पर आसूं क्यों गिरे हैं ? मुझे बताओ । तो बहू बोली कि मेरी भी सासू की पीठ पर ऐसा ही मस्सा था और हमने उसे घर से निकाल दिया । वह एक मन आंवले का दान करते थे तो हमने उन्हें भगा दिया । तब सासू बोली कि हम ही तुम्हारे सास – श्वसुर हैं । तुमने हमें निकाल दिया था परन्तु भगवान ने हमारा सत्त रख लिया । हे भगवान ! जैसा राजा रानी का सत्त रखा वैसा ही सबका रखना । कहते सुनसे सारे परिवार का सत्त रखना । इस कहानी के बाद बिन्दायकजी की कहानी सुनें ।

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