मकर संक्रांति की कहानी। makar sankranti ki kahani(katha).

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मकर सक्रांति सनातन धर्म का प्रमुख त्योहार है यह संपूर्ण भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तब मकर संक्रांति मनाई जाती है। मकर सक्रांति का दिन पवित्र तथा धार्मिक कार्यों के लिए उपयुक्त माना जाता है इसलिए इस दिन दान करने का विशेष महत्व है।

मकर सक्रांति से अनेकों पुरानी कहानियां जुड़ी हुई है , मकर सक्रांति के दिन धर्मराज जी की कहानी और धरती माता की कहानी भी सुनते हैं मकर सक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जा मिली थी। इसलिए मकर सक्रांति के दिन गंगासागर में मेला भी लगता है। यहां पर गंगा जी से जुड़ी यह मकर सक्रांति की कहानी दी गई है

मकर संक्रांति की कहानी। makar sankranti ki kahani

मकर सक्रांति की कहानी,मकर संक्रांति की कहानी। makar sankranti ki kahani(katha).
मकर सक्रांति की कहानी

मकर संक्रांति की कहानी – राजा सगर नाम के एक सूर्यवंशी सम्राट थे, उनकी दो नारियां थी, बेदमी और शैव्या । रानी शैव्या से एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम असमन्जस रखा गया , दूसरी रानी बेदमी ने भी पुत्र की कामना से भगवान शंकर की उपासना की । शिवजी के वरदान से उसे भी गर्भ हो गया ।

पूरे सौ वर्ष बीत जाने पर उसके गर्भ से एक मांसपिण्ड की उत्पत्ति हुई, उसे देखकर वह बहुत दुःखी हुई और उसने भगवान शिव का ध्यान किया । तब शिवजी ब्राह्मण के वेश में उसके पास पधारे और उस मांसपिण्ड को साठ हजार भागों में बांट दिया । वे सभी टुकड़े पुत्र रूप में बदल गए ।

तब राजा सगर ने सौ अश्वमेघ यज्ञ करने का संकल्प किया।जब वे निन्यानवे यज्ञ कर चुके थे तथा सौवाँ यज्ञ करने के लिए उन्होंने अपना श्याम वर्ण घोड़ा छोड़ा तो इन्द्र ने यह समझकर कि राजा सगर के सौ अश्वमेघ यज्ञ पूरे हो जाने पर इन्द्रासन न छिन जाए , उनके घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम में ले जाकर बांध दिया , तात्पर्य ये था कि राजा सगर का कुल बहुत बड़ा होने से वह किसी ऋषि शाप से ही नष्ट हो सकता था ।

कपिल मुनि सबसे श्रेष्ठ माने जाते थे और उनके तेज को सहने की सामर्थ्य किसी राजा में न थी । राजा सगर के साठ हजार तेजस्वी पुत्र घोड़े को खोजते कपिल मुनि के आश्रम तक पहुंच गये । अश्व को वहाँ देखकर उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई और वह मुनि को प्रणाम किये बिना उस अश्व को पकड़ने दौड़े । अपना ऐसा अनादर देखकर कपिल मुनि क्रोध में आ गए ।

उस क्रोध भरी दृष्टि से ही वह क्षणभर में वहीं पर भस्म हो गए। ये समाचार सुनकर राजा सगर की आंखें निरन्तर जल बहाने लगी । वे दुःखी होकर घोर जंगल में चले गये । तब उनके पुत्र असमंजस ने अपने भाईयों के उद्धार के लिए एक लम्बे समय तक तपस्या की लेकिन अन्त में वह भी काल को प्राप्त हुए। उसके बाद असमंजस का पुत्र अंशुमान कपिल मुनि की बहुत सेवा करके उस अश्व को वापिस लाया ।

जिससे राजा का यज्ञ पूर्ण हुआ । यज्ञ तो पूर्ण हो गया लेकिन साठ हजार कुमार भस्म हो गए थे । वे किसी प्रकार मुक्त न हो सके । अंशुमान ने उन राजपुत्रों की मुक्ति का उपाय भी कपिल मुनि से पूछा । तब उन्होंने कहा कि जब गंगाजी पृथ्वी पर आयेंगी तभी उनका उद्धार होगा । अंशुमान ने गंगाजी को पृथ्वी पर लाने का भरसक प्रयास किया , किन्तु असफल रहा । कालान्तर में अंशुमान का पुत्र दिलीप राज्य का अधिकारी बना ।

उसने भी पिता की आज्ञा मानकर गंगा को लाने के लिए बहुत तप किया परन्तु वह भी सफल न हो सका । राजा दिलीप के पुत्र श्रद्धा रखने वाले भगीरथ भगवान के परम भक्त , विद्वान , श्रीहरि में अटूट गुणवान पुरुष थे ।

उन्होनें गंगा को धरती पर ले आने का निश्चय करके बहुत समय तक तपस्या की तब शिवजी के साक्षात् दर्शन उन्हें हुए। उनकी दिव्य झाँकी पाकर भगीरथ ने उन्हें बार – बार प्रणाम किया और स्तुति की। उन्हें भगवान से अभीष्ट वर भी मिल गया। वे चाहते थे कि मेरे पूर्वजो को मुक्ति मिल जायें। भगवान ने गंगा से कहा- हे सुरेश्वरी ! तुम अभी भारतवर्ष में जाओ और मेरी आज्ञानुसार सगर के सभी पुत्रों को पवित्र करो। तब श्री गंगाजी ने धरती पर आना स्वीकार कर लिया।

जिस समय गंगा पृथ्वी पर आने को हुई तो उस समय उनके वेग को संभालने के लिए शिवजी ने उन्हें अपने मस्तक पर धारण किया और वे गंगाधर के नाम से विख्यात हुए, फिर जब जटाओं में से उन्होंने एक बूंद छोड़ी तो गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ गंगा भूतल पर उतर कर राजा भगीरथ के पीछे–पीछे चली। गंगा के वेग के कारण मार्ग में ऋषि का आश्रम बह गया।तब मुनि कुपित हो गए और सारी नदी का आचमन कर गए।

तब फिर भागीरथ की आराधना से जब मुनि प्रसन्न हुए तो गंगा को अपनी जंघा से प्रकट किया। तब गंगा भगीरथी से जाह्नवी कहलाई। फिर राजा भगीरथ गंगा की स्तुति करके उन्हें अपने साथ ले वहां पहुंचे , जहां सगर के साठ हजार पुत्र जलकर भस्म हो गए थे।

परम पवित्र गंगा जल का स्पर्श पाकर वे राजकुमार बैकुण्ठ को चले गए। भगीरथ अपने पूर्वजों को तारकर कृत कृत्य हो गए । चूंकि राजा भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए। इसलिए गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है ।

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