देवनारायण की कथा व इतिहास । Dev narayan ki katha & history.

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देवनारायण जी का जन्म सन 1300 ई. में आसींद भीलवाड़ा में हुआ था।यह बगड़ावत गुर्जर वंश के थे।उनके पिता सवाईभोज तथा माता सेढु खटानी थी। भगवान देवनारायण को विष्णु का अवतार माना जाता है।

गुर्जर वंश से संबंधित होने के कारण देवनारायण जी गुर्जर समुदाय के आराध्य देव थे।

देवनारायण की कथा।

देवनारायण की कथा- देवनारायण जी के पिता सवाई भोज बड़े प्रतापी थे। यह गोठा के जागीरदार थे। सवाई भोज ने उज्जेन के सामंत दूधा खटाणा की पुत्री सेढू खटानी और कोटपुतली के पदम पोसवाल की पुत्री पद्मा से विवाह किया था। गढ़ बुवाल (मारवाड़ के पास) के सामंत ईडदे सोलंकी की राजकुमारी जयमती सवाई भोज से शादी करना चाहती थीं।

जयमती के पिता उसका विवाह राण के राणा दुर्जनसाल से करना चाहते थे। राणा दुर्जनसाल जयमती से विवाह हेतु बारात लेकर गढ़ बुवाल के लिए निकले थे लेकिन सवाई भोज ने उन्हें मार्ग भर्मीत कर गोठा पहुंचा दिया। दुर्जनसाल को जब इसके बारे में पता चला तो उसने एक विशाल सेना के साथ गोठा पर हमला किया और सभी विद्रोहियों को मार डाला। राणा दुर्जनसाल को युद्ध के बाद भी जयमती नहीं मिली। युद्ध में सवाई भोज का समर्थन करते हुए उन्हें वीरगति भी प्राप्त हुई थी।
उस समय सवाई भोज की दूसरी पत्नी सेढू खटानी गर्भवती थीं। गुरु रूपनाथ ने सेढू खटानी को समझाया कि उनका गर्भ में जो बच्चा है वहीं बच्चा वंश का बदला लेगा और अन्याय और अत्याचार को मिटा देगा।

गुरु रूपनाथ की बात सुनकर सेढू खटानी आसींद भीलवाड़ा के मालाश्री जंगलों में चली गई जहां पर माघ शुक्ला सप्तमी को देवनारायण जी का जन्म हुआ। और उनका नाम उदय सिंह रखा गया।

राणा दुर्जन सिंह को जब व उदय सिंह के बारे में पता चला तो उसने उसे भी मारने के लिए एक सेना की टुकड़ी को मालाश्री भेजा। जब इसकी सूचना सेढू खटानी को मिली तो वह मालाश्री का त्याग करके अपने पीहर देवास चली गई।

इसके बाद उनका बचपन देवास में ही बीता वहां पर ही उन्होंने शिक्षा ग्रहण की और अस्त्र शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया। तथा आयुर्वेद का ज्ञान भी प्राप्त किया।

देवनारायण जी का विवाह।

देवनारायण जी का विवाह – शिक्षा ग्रहण करके देवनारायण जी जब देवास से अपनी जागीर गोठ के लिए रवाना हुए तो मार्ग में धार मध्य प्रदेश मैं कुछ समय के लिए ठहरे। धार के राजा जय सिंह की पुत्री पीपल दे बहुत बीमार थी जिसे देवनारायण जी ने अपनी आयुर्विद्या से ठीक किया।इससे प्रसन्न होकर जय सिंह ने अपनी पुत्री पीपल दे का विवाह देवनारायण जी के साथ किया।

देवनारायण जी के प्रसिद्ध मंदिर

देवनारायण जी के मंदिर में मूर्ति के स्थान पर ईंट की पूजा की जाती है तथा पूजा में नीम की पत्तियों का प्रयोग किया जाता है।

1. आसींद (भीलवाड़ा) –

आसींद भीलवाड़ा जहां इनका जन्म हुआ था उनके जन्म स्थान पर इनका भव्य मंदिर बना हुआ है। जो भगवान देवनारायण जी का मुख्य मंदिर है।

2. जोधपुरिया (टोंक)

जोधपुरिया टोंक में देवनारायण जी ने अपने शिष्यों को सर्वप्रथम उपदेश दिया था जहां इनका भव्य मंदिर बना हुआ है ।

3. देवमाली (भीलवाड़ा)

देवमाली में भगवान देवनारायण जी ने अपनी देह का त्याग किया था ,तथा इनके पुत्र बीला ने भी यही तपस्या की थी यहां पर इनका भव्य मंदिर बना हुआ है।

देवनारायण की फड़

देवनारायण जी की फड़ राजस्थान की सबसे बड़ी फड़ है, यह गुर्जर भोपो के द्वारा जंतर वाद्य यंत्र के साथ बांची जाती है। 1992 में भारत सरकार ने ₹5 के डाक टिकट पर देवनारायण की फड़ अंकित की थी।

देवनारायण जी का मेला

देवनारायण जी की स्मृति में प्रतिवर्ष भाद्रपद की शुक्ल सप्तमी को आसींद भीलवाड़ा में मेला भरता है।

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