govardhan puja. govardhan puja 2021

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कार्तिक माह शुक्ल पक्ष प्रतिपदा अर्थात् दीपावली के दूसरे दिन प्रभात के समय गोवर्धन की पूजा की जाती है।इसके लिए घर के द्वार पर गाय के गोबर से मानव शरीर की तरह गोवर्धन बनाया जाता है।शास्त्रों में इसे वृक्ष की शाखाओं से और पुष्पों से सुशोभित करने का विधान हैं

govardhan puja date 2021

इस बार की गोवर्धन पूजा  5 नवंबर 2021 को हैं।

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गोवर्धन पूजा कार्तिक मास शुक्ल प्रतिपदा अर्थात् दीपावली के दूसरे दिन प्रभात के समय गोवर्धन की पूजा की जाती है । इसके लिए घर के द्वार पर गौ के गोबर से मानव शरीर के गोवर्धन बनाये जाते हैं । शास्त्रों में इसे वृक्ष की शाखाओं से और पुष्पों से सुशोभित करने का विधान है । गोवर्धन पूजा के दिन प्रात : लक्ष्मी जी के जलता हुआ दीपक ही पूजन की थाली में रखना चाहिये और लक्ष्मी – पूजन से शेष बची हुई पूजन सामग्री से पूजन करना चाहिये । कटोरी में दही और बिलोवन रखते हैं और गन्ना जो लक्ष्मी जी के पूजन में चढ़ाया हो उसी का ऊपर का भाग तोड़कर चढ़ाना चाहिये । दही के अतिरिक्त रोली , मोली , चावल , पुष्प , गन्ध आदि से पूजन करके दही को गोवर्धन की नाभि में डालकर गीत गाते हुए बिलोना चाहिये । गीत – ‘ दही को धमड़को कान्हा ने भावे तो एक सबड़को म्हाने दीजे रे कान्हा दही को धमड़को । ‘ फिर गन्ने का तोड़ा हुआ अग्र भाग गोवर्धन जी के पेट में लगाकर उसे पकड़े – पकड़े सात परिक्रमा गोवर्धन जी करनी चाहिये । तथा बधावा गाते हुए घर आ जावें ।

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इस बार गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 5 बज कर 28 मिनट से लेकर सुबह 7 बजकर 55 मिनट तक है।

दूसरा पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को 5 बजकर 16 मिनट से 5 बजकर 43 मिनट तक है।

गोवर्धन पूजा की कहानी

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गोवर्धन पूजा की कहानी

भगवान श्री कृष्ण द्वारा इंद्र की पूजा का विरोध करने पर भगवान इंद्र बहुत क्रोधित हुए और ब्रज पर बहुत तीव्र वर्षा करने लगे । तब  मूसलाधार बारिश से ब्रजवासियों को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर सात दिनों तक रखा और गोप और गोपिकाएं की रक्षा की तथा सभी ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत  की छत्रछाया में खुशी-खुशी सात दिन तक रहे।

सातवें दिन इंद्र को भगवान श्रीकृष्ण की शक्ति का आभास हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण एस क्षमा मांगी और वर्षा को रोक दिया तब  भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और  हर साल गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने का आदेश दिया। तभी से यह पर्व अन्नकूट के रूप में मनाया जाने लगा।

गोवर्धन पूजा का महत्व

दीपावली  के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। भारतीय लोक जीवन में इस पर्व का बहुत महत्व है। इस पर्व में मनुष्य का प्रकृति से सीधा संबंध दिखाई देता है। इस त्योहार की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गाय की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय नदियों में गंगा के समान पवित्र होती है। गाय को देवी लक्ष्मी का रूप भी कहा जाता है। जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी प्रकार गाय माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य के रूप में धन प्रदान करती है। उनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इस तरह गाय का सम्मान पूरी मानव जाति द्वारा किया जाता है। गाय के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोवर्धन की पूजा की जाती है और गाय को उसका प्रतीक माना जाता है

अन्नकूट महोत्सव। गोवर्धन पूजा के बाद अन्नकूट का भोग।

अन्नकूट कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा अर्थात् दीपावली के दूसरे दिन श्री महालक्ष्मी जी के अन्नकूट करने का विधान है । यह विधान द्वापर युग में भगवान कृष्ण के अवतार के बाद आरम्भ हुआ था । श्री महालक्ष्मी जी के छप्पन प्रकार के पकवानों एवं मिठाइयों का भोग लगाया जाता है । फिर प्रसाद के रूप में सभी को विपरित किया जाता है । गोवर्धन पूजा करने के बाद अन्नकूट का भोग लगावे ।

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