बड़ मावस। बड़ मावस की पूजा और व्रत की कथा। badmavas.

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जेष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को वट सावित्री अमावस(badmavas) व्रत किया जाता हैं,जो स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है। बड़ मावस(badmavas) व्रत – मूलत : सौभाग्वती स्त्रियों का है । फिर भी सभी प्रकार की स्त्रियाँ, कुमारी , विवाहिता , विधवा , कुपुत्रा , सुपुत्रा आदि इसे करती हैं । इस व्रत को करने का विधान ज्येष्ठ मास की अमावस्या को है । इस दिन वट, बड़ या बरगद का पूजन होता है । इस व्रत को स्त्रियाँ अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं ।

बड़ मावस की पूजा। badmavas ki puja.

badmavas ki puja : व्रत – विधान प्रातःकाल स्नान आदि के पश्चात् बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करके ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें । इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करके टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखना चाहिए। ब्रह्मा और सावित्री के पूजन के पश्चात् सावित्री तथा सत्यवान की पूजा करके बड़ की जड़ में जल सींचना चाहिये ।

पूजा के लिए जल , मोली , रोली , कच्चा , सूत , भिगोये हुए चने , पुष्प तथा धूप होने चाहिये । जल से वट वृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करनी चाहिये । बड़ के पत्तों के से बने गहने पहनकर वट – सावित्री की कथा सुननी चाहिये । भीगे हुए चनों का बायना निकालकर उसके उपर रुपये रखकर सासूजी के चरणस्पर्श करके उन्हें देना चाहिये । यदि सासूजी दूर हो तो बायना बनाकर वहाँ भेज देना चाहिये । वट और सावित्री की पूजा के पश्चात् प्रतिदिन पान , सिन्दूर और कुमकुम से सौभाग्यवती स्त्री के पूजन का भी विधान है। पूजा की समाप्ति पर व्रत के फलदायक होने के लक्ष्य से ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएँ बांस के पात्र में रखकर दान करनी चाहिये ।

बड़ मावस व्रत कथा। badmavas vrat katha/ badmavas ki kahani.

इस दिन व्रत करने के साथ बड़ मावस व्रत कथा सुनी जाती है। बड़ अमावस की व्रत कथा को सुनने और कहने से मनोकामनाएं पूर्ण होती है

badmavas ki katha/ badmavas ki kahani.

भद्र देश में अश्वपति नाम का राजा था , जिसके संताने नहीं थी । उसने बड़े – बड़े पण्डितों(ब्राह्मणो) को बुलाया और कहा , ” मेरे संतान नहीं है । इसलिए तुम ऐसा उपाय करो जिससे मेरे संतान हो जाये । ” पण्डितो ने कहा” राजन् आपके भाग्य में एक कन्या लिखी है। बारह वर्ष की आयु में ही उसके पति की मौत होने के कारण विधवा हो जायेगी । ” राजा ने कहा , मेरे पुत्र नही होगा तो मेरा वंश कैसे चलेगा ? ” बाद में खूब यज्ञ – हवन इत्यादि कराये गये । जब पण्डितों ने कहा – उस लड़की से पार्वती की और बड़ सायत अमावस की पूजा कराना । यज्ञ – होम कराने से उसकी स्त्री गर्भवती हो गई और एक कन्या हो गई । तो उसका नाम सावित्री रखा गया । तब पण्डितों ने उसकी जन्मपत्रिका देखकर कहा कि जिस दिन यह कन्या बारह वर्ष की होगी , उस दिन इसका विधवा होने का योग है । इसलिए इससे पार्वती जी और बड़ सायत अमावस की पूजा करवानी होगी। जब सावित्री बड़ी हुई तो उसका विवाह सत्यवान के साथ कर दिया । सावित्री के सास-ससुर अंधे थे । जिनकी वह बहुत सेवा करती थी और सत्यवान जंगल से लकड़ी तोड़कर लाया करता था और सावित्री को मालूम था कि जिस दिन बारह वर्ष की होगी उस दिन मेरे पति की मृत्यु हो जायेगी । जिस दिन जब  वह बारह वर्ष की हुई उसे पता था कि आज उसके पति के मोत होगी इसलिए उस दिन वह अपने पति से हाथ जोड़कर बोली , ” आज मैं भी आपके साथ चलूंगी । ” तब सत्यवान बोला , ” तू मेरे साथ चलेगी तो मेरे अन्धे माँ -बाप की कौन सेवा करेगा ? अगर वह कहेंगे तो तेरे को ले चलूंगा । ” फिर वह अपने सास – ससुर के पास गई और जाकर बोली , “ तुम कहो तो आज मैं जंगल देखने चली जाऊं । ” जब वह बोले , ” बहुत अच्छी बात है , चली जा । ” जंगल में जाकर सावित्री तो लकड़ी तोड़ने लगी और सत्यवान पेड़ की छाया में सो गया । उस पेड़ में एक सांप रहता था । जिसने उसको डस लिया । वह अपने पति को गोदी में लेकर रोने लगी तो महादेव और पार्वती जी वहाँ से जा रहे थे । उसने उनके पैर पकड़ लिए और बोली , “ मेरे पति को जिन्दा कर दो । ” जब वह बोले कि आज बड़ सायत अमावस है जिसकी तू पूजा करेगी तो तेरा पति जिन्दा हो जायेगा । फिर वह खूब प्रेम से बड़ की पूजा करने लगी । बड़ के पत्तों का गहना बना कर पहना जो हीरे मोती के हो गए । इतने में धर्मराज का दूत आ गया और उसके पति को ले जाने लगा तो उसने उसके पैर पकड़ लिए । तब धर्मराज बोला कि तू वरदान माँग । तो उसने कहा के मेरे माँ – बाप के पुत्र नहीं है । जब धर्मराज बोला कि सत्य वचन हो जाएगा । फिर वह बोली मेरे सत्यवान से 100 पुत्र हो जाएं । फिर धर्मराज बोला , 100 पुत्र हो जाएंगा । फिर वह सत्यवान को ले जाने लगे । सब सावित्री बोली के हे महाराज । आप मेरे पति को ले जायेंगे तो पुत्र कहाँ से होंगे ? फिर धर्मराज बोले – हे सती ! तेरा सुहाग तो नहीं था , परन्तु बड़ सायत अमावस करने से और पार्वती जी की पूजा करने से तेरा पति जीवित हो जायेगा और सारे में ढिंढोरा पिटवा दिया कि कहते सुनते जेठ की अमावस आएगी जब बड़ की पूजा करना और बड़ के पत्तों कागहना बना कर पहनना । बायना निकालना ! हे महाराज ! जैसे बड़ सायत अमावस ने सावित्री को सुहाग दिये उसी प्रकार सब को दियो । जो भी इस कहानी को कहता , सुनता है उसकी सब मनोकामानाएँ पूर्ण होती हैं ।

आपको बड़ मावस(badmavas)की जानकारी पसंद आई होगी धन्यवाद।

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