भादवा की चौथ माता की कहानी। bhadwa ki chauth mata ki katha(kahani ).

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भादवा की चौथ को भादुड़ी चौथ या बहुला चौथ भी कहा जाता है इस दिन चौथ माता का व्रत किया जाता है और कहानी(भादुड़ी चौथ माता की कहानी) सुनी जाती है। इसके साथ ही बिंदायक जी की कहानी सुनी जाती हैं। कुंवारी कन्याये सुंदर सुशील और अच्छे पति की प्राप्ति के लिए चौथ का व्रत करती हैं और स्त्रियां इस व्रत को अपने सुहाग और पति की लंबी आयु के लिए करती हैं। आज हम आपके लिए दो भादवा की चौथ माता की कहानी लेकर आए हैं। आप इन दोनों में से कोई भी भादवा चौथ की कथा जो आपको पसंद आए चौथ के व्रत के दिन पढ़ सकते हैं।

तो आइए जानते हैं भादुड़ी चौथ व्रत कथा

भादवा की चौथ माता की कहानी – 1. bhadwa ki chauth ki kahani.

भादवा की चौथ माता की कहानी। bhadwa ki chauth mata ki katha(kahani ).
भादवा की चौथ माता की कहानी

भादवा की चौथ माता की कहानी – एक बुढ़िया माई के ग्वालिया – बछालिया नाम का बेटा था। बुढ़िया माई अपने बेटे के लिए बारह महीने की चारों चौथ करती थी। बेटा लकड़ी लेकर आता था और दोनों मां बेटा उनको बेचकर गुजारा करते थे। बुढ़िया माई रोजाना लकड़ी में से दो लकड़ी रख लेती और चौथ के दिन बेटे से छुप कर बेचकर सामान लाती थी और पांच पुआ बनाती थी।

एक पुआ गणेश जी महाराज को, एक चौथ माता को चढाती, एक ब्राह्मण को और एक अपने बेटे को खिलाती थी और एक पुआ खुद खाती थी। एक चौथ के दिन बेटा अपनी पड़ोसन के घर गया वह पुआं बना रही थी जब उसने पूछा कि आज क्या है जो पूऐ बना रखे हैं तब वह बोली मैंने तो आज ही बनाए हैं पर तेरी मां तो चारों चौथ को पूऐ बनाती है। उसने जाकर मां से पूछा मां तू रोज पुऐ बनाती है मैं इतनी मेहनत से कमाता हूं।

बुढ़िया माई बोली मैं तो चौथ माता का व्रत करती हूं। वह बोला कि तू मुझे रख ले या तो तू चौथ माता को ही रख ले। बुढ़िया माई बोली मैं तो तेरे लिए ही चौथ का व्रत करती हूं इसलिए मैं तुझे छोड़ सकती हूं पर चौथ माता को नहीं जब बेटा घर से जाने लगा तो बुढ़िया माई बोली तू जा रहा है तो मेरे हाथ मे से यह आखा लेते जा जहां संकट आए वहां ही पूर देना। बेटे ने सोचा बात झूठी है पर ले चलने में क्या बुराई है।

वह चलने लगा और वह थोड़ी दूर पहुंचा ही था कि उसने देखा कि खून की नदी बह रही थी कहीं से भी रास्ता नहीं मिला तो आखा पूर कर बोला की चौथ माता अगर तू सच्ची है तो रास्ता हो जाए। ऐसा कहते ही झट से रास्ता मिल गया। आगे गया तो घनघोर अंधेरा, उजाड़ फैला हुआ था उसने मन में सोचा कि मुझे शेर, भघेरे खा जाएंगे इसलिए वह आखा पूर कर बोला चौथ माता मुझे रास्ता मिल जाए। और तब जल्दी से रास्ता मिल गया।

वह आगे चला गया जाते-जाते एक राजा की नगरी में पहुंचा। वहां का राजा रोजाना एक आदमी की बलि देता था। वह एक बुढ़िया माई के पास गया वह बुढ़िया माई रोती जा रही थी और पूऐ बना रही थी। लड़के ने बुढ़िया माई से पूछा कि बुढ़िया माई क्यों रो रही हो तो बुढ़िया माई ने जवाब दिया कि मेरे एक ही बेटा है जिसकी कल राजा बलि देने वाला है मैं उसी के लिए पुए बना रही हूं।

वह बोला बुढ़िया माई अपने बेटे की जगह मुझे पुए खिला दे मैं उसकी जगह बलि चढ़ने चला जाऊंगा। बुढ़िया माई ने कहा कि मैं दूसरे के पुत्र को कैसे भेज सकती हूं। लेकिन वह नहीं माना तो बुढ़िया माई ने उसको पुए खिला दिए। अगले दिन जब राजा का संदेश आया तो बुढ़िया माई ने सोचा कि मैं कैसे दूसरे के बेटे को बलि चढ़ने के लिए भेज सकती हूं मैं ऐसा नहीं कर सकती। लेकिन बाहर की आवाज सुनकर वह जाग गया और राजा के आदमियों के साथ चला गया।

वहां मटके पकाने का हाव( जिसमें कुम्हार मटको को पकाता है) बना हुआ था जो एक मनुष्य का भोग लेने के बाद ही उसमें हाव पकते थे उन सब ने मिलकर उसको हाव में चुन दिया। वह आखा पूर कर हाव मैं बैठ गया। एक दिन में ही हाव पक गया और मिट्टी के घड़े सोने चांदी के बन गए। वहां एक जमादारनी झाड़ू लगा रही थी तब झाड़ू से एक कंकड़ उछलकर उन बर्तनों से जा टकराया तब जमादारनी ने राजा को जाकर बताया कि आपका हाव तो पक गया है तब राजा ने सोचा कि हाव तो आठ दिन में पकता है आज एक दिन में ही कैसे पक गया।

जब जाकर देखा तो वहां पर तो मिट्टी के मटके की जगह हीरे मोती और सोने चांदी के कलश हो गए। अंदर से आवाज आई कि धीरे से उतारो अंदर आदमी है आवाज को सुनकर राजा के आदमी डर गए कि अंदर कौन सा भूत प्रेत आ गया। फिर वह बोला कि डरो मत मैं तो सिर्फ एक आदमी हूं जिसको तुमने अंदर चुना था। देखा तो अंदर हरे हरे ज्वारे उग रहे थे।

राजा ने पूछा कि तू अंदर जीवित कैसे बच गया तब उसने बताया कि मेरी मां चौथ का व्रत करती हैं। जब मैं घर से निकला था तो मेरी मां ने मुझे आखे दिए थे मैं उन्हें को पूर कर बैठ गया और चौथ माता के कारण बच गया। तब राजा ने कहा कि मैं तेरे को एक घोड़े पर बैठा कर सांकल बांध देता हूं यदि वह सांकल खुलकर मेरे बंध जाएगी तो मैं चौथ माता को सच्ची मान लूंगा।

तब वह आखे पूर कर बैठ गया और चौथ माता से कहने लगा। हे चौथ माता अब तुम ही मेरी लाज बचाना तब सांकल खुलकर राजा के बंध गई। राजा ने अपनी बेटी की शादी उस लड़के से कर दी और बहुत सा धन दौलत देकर विदा किया। पड़ोसन बोली की माई तेरे बेटे बहू आए हैं जब छत पर चढ़कर देखा तो सच में बैठे बहू आ रहे थे।

हे चौथ माता। जैसे आपने बुढ़िया और उसके बेटे पर कृपा बनाई वैसे सभी पर कृपा बनाना। भादवा की चौथ माता की कहानी कहने वाले को, कहानी सुनने वाले को, हुंकारा भरने वाले को और पूरे परिवार पर अपनी कृपा बनाना।

यह थी भादवा की चौथ माता की कहानी हम आशा करते हैं कि आपको भादुड़ी चौथ माता की कहानी पसंद आई होगी धन्यवाद।

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भादवा की चौथ माता की कहानी – 2. bhadwa ki chauth mata ki katha(kahani).

भादवा की चौथ माता की कहानी। bhadwa ki chauth mata ki katha(kahani ).
भादवा की चौथ माता की कहानी।

पुराने समय की बात है एक ब्राह्मण था जिसके घर एक बेटा और बहू थे। बेटा और पिता कुछ कमाते तो थे नहीं जो बहू के साथ आया हुआ दहेज का धन था उसी से अपना काम चलाते थे। जब भी बहू बाहर कचरा डालने जाती थी तब उसके पास वाली पड़ोसन उससे पूछती थी कि बहू आज खाने में क्या खा कर आई हो तब है बोलती थी कि मैं तो बासी और ठंडी रोटी खा कर आई हूं।

एक दिन साहूकार के बेटे ने यह बात सुन ली। वह वहां से चला गया और अपनी मां के पास जाकर बोला की मां तू तो अपनी बहू को रोज गर्म खाना खिलाती हैं और वह फिर भी बाहर जा कर यह बोलती है कि मैं तो बासी रोटी खा कर आई हूं। तब मां ने कहा कि बेटा मैं तो चारों थालियों में बराबर गर्म खाना परोसती हूं यदि तुम्हें यकीन नहीं है तो तुम खुद देख लेना।

वह अगले दिन तबीयत खराब होने का बहाना बनाकर कंबल ओढ़ कर लेट गया। तब उसको यह देखकर आश्चर्य हुआ कि बहू ने तो गरम गरम खीर और खांड का भोजन किया है और जब बहू बाहर गई तो वह उसके पीछे पीछे जाने लगा तब पड़ोसन के पूछने पर बहू ने वही बात दोहराई कि मैं तो बासी रोटी खा कर आई हूं।

उसका पति उससे पूछने लगा कि तू अभी अभी तो गरमा गरम खाना खाकर आई है और पड़ोसन से कह रही है कि मैं बसी ठंडी रोटी खा कर आई हूं। तू झूठ क्यों बोल रही हो तब उसकी विद्वान पत्नी ने कहा कि यह ना तो तुम्हारे कमाए हुए पैसों की रोटी है और ना ही तुम्हारे पिताजी के कमाए हुए पैसों की रोटी है। यदि हम इसी तरह बैठे बैठे धन को खर्च करते रहे तो यह एक दिन कुएं के पानी की तरह समाप्त हो जाएगा।

इसके बाद उसका पति कमाने के लिए विदेश चला गया पीछे से उसकी पत्नी 12 महीने का चौथ का व्रत करती थी। उसको विदेश में रहते हुए 12 वर्ष व्यतीत हो गए तब चौथ माता और बिंदायक जी महाराज ने सोचा कि इसको अब घर बुलाना चाहिए। चौथ माता लड़के के सपने में जाकर बोली कि तू अब घर चला जा तेरी पत्नी को तेरी बहुत याद आती है। वह बोला कि मैं घर कैसे चला जाऊं मेरे यहां इतना बड़ा कारोबार फैला हुआ है।

तब चौथ माता ने कहा कि तू सुबह एक दीपक जलाकर चौथ माता का नाम लेकर बैठ जाना जिन के पैसे बकाया है वह पैसे दे जाएंगे और लेने वाले ले जाएंगे। लड़के ने वैसा ही किया और उसका सारा काम एक ही दिन में निपट गया। जब वह घर जा रहा था तो उसे रास्ते में एक सांप दिखाई दिया जो आग के पास जा रहा था। उसने सांप को आग से बचाने के लिए सिसकार दिया।

ऐसा करने से नागराज क्रोधित हो उठे और कहां की है पापी मैं तो इस नाग योनि से मुक्ति के लिए जा रहा था और तूने मुझे सीसकार दिया अब मैं तुझे डस लूंगा। तब वह लड़का बोला कि मैं 12 वर्ष बाद अपने घर जा रहा हूं आप मुझे अवश्य ही डस लीजिएगा किंतु आज मुझे अपने घरवालों से मिलने दीजिए आप कल रात को आकर मुझे डस लेना। नाग ने उसकी शर्त मान ली और वहां से चला गया।

जब लड़का घर आया तो वह उदास था उसने अपनी पत्नी के पूछने पर सारी बात बता दी। उसकी पत्नी बहुत चतुर थी। उसकी पत्नी ने एक सीढी पर दूध का कटोरा रख दिया, दूसरी सिढी पर बालू रेत बिछा दी, तीसरी पर फूल माला बिखेर दिए, चौथी पर ईत्र छिड़क दिया, पांचवी पर मिठाई रख दी छठी सीढी पर जौ और सातवी में पर रोटी रख दिया।

रात को जब सांप आया तो सबसे पहले ठंडी ठंडी रेत में लौटकर आया फिर दूसरी सीढी पर दूध पीकर कहा के मैं एक ब्राह्मणी के बेटे को डसता तो नहीं लेकिन वचन दिया हुआ है इसलिए डसना पड़ेगा फिर हुआ है फूल माला की सीढी से होता हुआ प्रसन्नता पूर्वक इत्र की खुशबू लेता हुआ ऊपर की ओर आने लगा।

सांप को ऊपर आता हुआ देखकर बिंदायक जी ने चौथ माता से कहा कि इस ब्राह्मणी के बेटे की रक्षा करनी होगी क्योंकि इसकी पत्नी इसके लिए चौथ का व्रत करती है उसका फल तो देना ही पड़ेगा। तब बिंदायक जी ने सीढी पर रखे हुए आखो से सेल(सुई) बनाएं और चौथ माता ने रोटी की ढाल बनाई और सांप के आगे लगा दी। बिंदायक जी ने जौ के सेल बनाए थे उनसे सांप की मौत हो गई।

सुबह उस लड़के से मिलने गांव के लोग आने लगे क्योंकि वह 12 वर्ष के बाद वापस घर आया था लोगों ने उसे आवाज दी लेकिन वह तो उदास बैठा था इसलिए बोला नहीं। जब उन्होंने देखा कि सीढियो पर तो खून पड़ा हुआ है तो वे चिल्लाने रोने चीखने लगे के ब्राह्मण आज तो तेरा बेटा मर गया यह सब देखकर ब्राह्मणी भी जोर जोर से रोने लगी। आवाज सुनकर उसका बेटा नीचे आया और कहां की मां मैं मरा नहीं हूं यह तो मुझे डसने आया सांप मरा है।

यह सब देख कर उसकी पत्नी भी प्रसन्न हो गई कि मेरे पति के प्राण बच गए उसने चौथ माता को धन्यवाद दिया और कहां की यह तो चौथ माता ने मेरे व्रत करने का फल दिया है चौथ माता जैसा फल ब्राह्मणी के बेटे को दिया वैसा सभी को देना कहानी करने वाले को कहानी सुनने वाले को हुंकार देने वाले को और पूरे परिवार को देना।

यह थी भादवा की चौथ माता की कहानी हम आशा करते हैं कि आप को भादवा की चौथ माता की कहानी पसंद आई होगी धन्यवाद।

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