सावन सोमवार व्रत कथा। sawan somvar vrat katha in hindi.

13 Min Read

सावन महीने में प्रत्येक सोमवार को व्रत करने के साथ सावन सोमवार व्रत कथा सुनी जाती है। सोमवार व्रत में शिवजी और पार्वती माता का पूजन किया जाता है और इसके पश्चात सावन सोमवार व्रत कथा सुनी जाती हैं। इस व्रत को करने और सावन सोमवार व्रत कथा को सुनने से मनोकामना पूर्ण होती है, और सभी दुखों का विनाश होता है, अविवाहित कन्याओं को अच्छे वर की प्राप्ति होती है।

श्रावण माह में शिव और पार्वती माता की कृपा पाने के लिए यह व्रत किया जाता है और सावन में इस व्रत को करने और सावन सोमवार व्रत कथा सुनने का विशेष महत्व माना जाता है तो आइए जानते हैं सावन सोमवार व्रत कथा

सावन सोमवार व्रत कथा। savan(sawan) somvar vrat katha.

सावन सोमवार व्रत कथा। sawan somvar vrat katha .
Shiv Parvati image.
सावन सोमवार व्रत कथा। sawan somvar vrat katha

सावन सोमवार व्रत कथा – पुराने समय की बात है एक नगर में एक साहूकार रहता था। साहूकार के घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसके कोई संतान नहीं थी। इस वजह से साहूकार दुखी और परेशान रहता था। पुत्र पाने के लिए वह हर सोमवार व्रत किया करता था और अपनी पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव के मंदिर में जाकर शिव और पार्वती जी की पूजा अर्चना किया करता था।

साहूकार की भक्ति देखकर माता पार्वती प्रसन्न हो गई और शिवजी से उस साहूकार की मनोकामना पूरी करने का आग्रह करने लगी। माता पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा की हे पार्वती इस संसार में सभी को अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ता है जिसके भाग्य में जो लिखा है वही उसे प्राप्त होता है। लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूरी करने का आग्रह किया।

भगवान शिव ने माता पार्वती की इच्छा के अनुसार साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि पुत्र की आयु सिर्फ 12 वर्ष की होगी। साहूकार माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को सुन रहा था। यह सब सुनकर साहूकार को ना तो दुख हुआ और ना ही खुशी हुई। वह पहले की भांति भगवान शिव का व्रत करता रहा।

कुछ दिनों बाद साहूकार के घर में एक पुत्र का जन्म हुआ जब साहूकार का पुत्र 11 वर्ष का हो गया तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया साहूकार के पुत्र के मामा को बुलाया गया और उसे बहुत सारा धन देकर कहां कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्त करने के लिए ले जाओ और रास्ते में यज्ञ करते हुए और साथ में ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए और दक्षिणा देते हुए जाना।

दोनों मामा भांजे यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते तथा दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े। रास्ते में उनको एक शहर पड़ा। उस शहर के राजा की कन्या का विवाह था परंतु जो राजकुमार विवाह करने के लिए आया था वह एक आंख से अंधा था। उसके पिता को इस बात की बड़ी चिंता थी कि कहीं राजकुमार को देखकर राजकुमारी तथा उसके माता-पिता विवाह में किसी प्रकार की अड़चन पैदा न कर दे।

जब उसने अति सुंदर सेठ के लड़के को देखा तो मन में विचार किया कि क्यों न द्वाराचार के समय इस लड़के से वर का काम चलाया जाए। ऐसा मन में विचार करके राजकुमार के पिता ने उस लड़के और उसके मामा से बात की इस बात पर वे दोनों राजी हो गए। फिर उस साहूकार के बेटे को वर के कपड़े पहना कर तथा घोड़ी पर बैठा कर कन्या के द्वार पर ले जाया गया।

सभी कार्य प्रसन्नता से पूर्ण हो गए। राजकुमार के पिता ने सोचा कि यदि विवाह कार्य भी इसी लड़के से करा लिया जाए तो क्या बुराई है ? ऐसा विचार कर लड़के और उसके मामा से कहा – यदि आप फेरों और कन्यादान के काम को भी करा दें तो आपकी बड़ी कृपा होगी । मैं इसके बदले आपको बहुत सारा धन दूंगा । दोनों ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया और विवाह कार्य भी बहुत अच्छी तरह से सम्पन्न हो गया ।

सेठ का पुत्र जिस समय जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुन्दड़ी के पल्ले पर लिख दिया- ” तेरा विवाह मेरे साथ हुआ परन्तु जिस राजकुमार के साथ तुमको भेजेंगे वह एक आँख से काना है । मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूँ । ” सेठ के लड़के के जाने के पश्चात् राजकुमारी ने जब अपनी चुंदड़ी पर ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने काने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया । उसने अपने माता – पिता को सारी बात बता दी और कहा कि यह मेरा पति नहीं है । मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ है । जिसके साथ मेरा विवाह हुआ है वह तो काशी जी पढ़ने गया है ।

राजकुमारी के माता – पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं किया और बारात वापस चली गयी । उधर सेठ का लड़का और उसका मामा काशी जी पहुंच गए । वहाँ जाकर उन्होंने यज्ञ करना और लड़के ने पढ़ना शुरू कर दिया । जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई , उस दिन उन्होंने यज्ञ रचा रखा था । लड़के ने अपने मामा से कहा- ” मामाजी , आज मेरी तवियत कुछ ठीक नहीं है । ” मामा ने कहा – ‘ अन्दर जाकर सो जाओ । ‘

लड़का अन्दर जाकर सो गया और थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गए । जब उसके मामा ने आकर देखा कि उसका भानजा मृत पड़ा है तो उसको बड़ा दुःख हुआ । उसने सोचा कि अगर में अभी रोना पीटना मचा दूंगा तो यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा । अतः उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के जाने के बाद रोना पीटना शुरू कर दिया । संयोगवश उसी समय शिव – पार्वती उधर से जा रहे थे ।

जब उन्होंने जोर – जोर से रोने की आवाज सुनी तो पार्वती कहने लगी – महाराज ! कोई दुखिया रो रहा है इसके कष्ट को दूर कीजिए । ‘ जब शिव – पार्वती वहाँ पहुँचे तो उन्होंने पाया कि वहाँ एक लड़का है जो आपके बरदान से उत्पन्न हुआ था । शिवजी ने कहा ‘ हे पावंती ! इसकी आयु इतनी ही थी वह यह भोग चुका । तब पार्वती – जी ने कहा – ‘ हे महाराज ! इस बालक को और आयु दो नहीं तो इसके माता – पिता तड़प – तड़पकर मर जाएंगे । ‘ माता पार्वती के बार – बार आग्रह करने पर शिवजी ने उसको जीवन का वरदान दिया ।

शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया । शिवजी और पार्वती कैलाश पर्वत को चले गए । शिक्षा पूर्ण होने पर वह लड़का और उसका मामा , उसी प्रकार यज्ञ करते , ब्राह्मणों को भोजन कराते तथा दक्षिणा देते अपने घर की ओर चल पड़े । रास्ते में उसी शहर में आए जहाँ उस लड़के का वहाँ की राजकुमारी से विवाह हुआ था । वहाँ आकर उन्होंने यज्ञ आरम्भ कर दिया ।

उस लड़के के ससुर वहाँ के राजा ने उसको पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी बहुत आवभगत की । बहुत से दास – दासियों सहित आदरपूर्वक अपनी राजकुमारी और जमाई को विदा किया।

इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे प्यासे रहकर अपने बेटे के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रण लिया था कि यदि हमें अपने पुत्र के मृत्यु का समाचार मिला तो वह अपना भी शरीर त्याग देंगे। लेकिन अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वे अत्यधिक प्रसन्न हुए।

उसी दिन भगवान शिव ने साहूकार के सपने में आकर कहा कि मैं तेरे सोमवार का व्रत करने और सावन सोमवार व्रत कथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान कर रहा हूं। इस प्रकार जो कोई भी सोमवार व्रत करता है और सावन सोमवार व्रत कथा सुनता है उसके सभी दुख दूर होते हैं।

हे शंकर भगवान जिस प्रकार आप ने साहूकार के बेटे पर कृपा की उस प्रकार सभी पर अपनी कृपा बनाए रखना और सावन सोमवार व्रत कथा सुनने वाले को, कहने वाले को, हांमी भरने वाले को और पूरे परिवार के दुखों को दूर करना।

यह भी पढ़ें – गणेश जी की खीर वाली कहानी।

सावन सोमवार व्रत कथा सुनने के बाद करें भगवान शिव और पार्वती माता की आरती।

सावन सोमवार व्रत कथा सुनने के बाद भगवान शिव और पार्वती माता की आरती करनी चाहिए।

शिवजी की आरती।

जय शिव ओंकारा , भज जय शिव ओंकारा ।

बह्मा विष्णु सदाशिव , अर्द्धांगी धारा ॥ जय….

एकानन चतुरानन , पंचानन राजे ।

हंसानन गरुड़ासन , वृषवाहन साजे ।। जय….

दो भुज चारु चतुर्भुज , दशभुज अति सोहे ।

तीनों रूप निरखते , त्रिभुवन – मन मोह ॥ जय….

अक्षमाला वनमाला , रुण्डमाला धारी ।

त्रिपुरारी कंसारी , करमाला धारी ।। जय….

श्वेताम्बर पीताम्बर , बाघाम्बर अंगे ।

सनकादिक गरुड़ादिक , भूतादिक संगे ॥ जय….

कर मध्ये सुकमण्डल , चक्र त्रिशूल धारी ।

सुखकारी दुखहारी , जग – पालनकारी ॥ जय ….

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव , जानत अविवेका ।

प्रणवाक्षर में शोभित , ये तीनों एका ॥ जय….

त्रिगुणस्वामि की आरती , जो कोई नर गावे ।

कहत शिवानन्द स्वामी , मनवांछित फल पावै ।।

पार्वती माता की आरती।

जय पार्वती माता जय पार्वती माता।

ब्रह्म सनातन देवी शुभ फल कदा दाता।

जय पार्वती माता जय पार्वती माता।

अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता ।

जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता।

सिंह को बाहन साजे कुण्डल हैं साथा।

देबबंधु जस गावत नृत्य करा ताथा।

सतयुगरूपशील अतिसुन्दर नामसतीकहलाता।

हेमाचल घर जन्मी सखियन संग राता।

शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमाचल स्थाता।

सहस्त्र भुजा धरिके चक्र लियो हाथा।

सृष्टिरूप तुही है जननी शिव संगरंग राता।

नन्दी भृंगी बीन लही है हाथन मद माता।

देवन अरज करी तब चित को लाता।

गावन दे दे ताली मन में रंगराता।

श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता।

सदा सुखी नित रहता सुख सम्पति पाता । जय पार्वती माता….

हम आशा करते हैं कि आपको सावन सोमवार व्रत कथा की जानकारी पसंद आई होगी धन्यवाद।

यह भी पढ़ें – बिंदायक जी की कहानी

Share This Article