Varuthini ekadashi vrat katha. वरुथिनी एकादशी व्रत कथा।

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वरुथिनी एकादशी वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी है इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु के दस अवतार माने जाते हैं, जिनमें से वामन उनका तीसरा अवतार है।यह वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी है इसे वरुथिनी एकादशी कहते हैं यह सौभाग्य प्रदान करने वाली एकादशी है।
इसका व्रत रखने से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में सुख प्राप्त होता है। यदि इस व्रत को एक दुखी स्त्री करती है तो उसे सौभाग्य प्राप्त होता है वरुथिनी एकादशी के व्रत का फल दस सहस्त्र वर्ष तपस्या करने के फल के बराबर है।

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा।

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा- एक बार जब ब्रह्मा जी ब्रह्मांड का सृजन कर रहे थे तब उन्होंने एक बहुत सुंदर युवती का सृजन किया जिसका नाम शतरूपा था। ब्रह्मा जी सतरूपा के रूप को देखकर उसकी ओर आकर्षित हुए और उसे देखने लगे शतरूपा ने अनेक जानवरों के रूप भी धारण किए लेकिन ब्रह्मा जी ने उसे परेशान किया भगवान शिव ने जब यह देखा तो वह क्रोधित हो गए और क्रोध वश उन्होंने ब्रह्मा जी का पांचवा सिर काट दिया था । जिसके कारण भगवान शिव को श्राप लग गया श्राप की मुक्ति के लिए उन्होंने भगवान विष्णु की वामन अवतार की तिथि वरुथिनी एकादशी का व्रत किया तो वह श्राप से मुक्त हो गए।
दस सहस्त्र वर्ष तपस्या के समान फल देने वाला यह व्रत रखने से सुख, समृद्धि और पापों से मुक्ति मिलती है।

वरुथिनी एकादशी व्रत रखने वाले को निम्न काम नहीं करना चाहिए:

शहद का सेवन
चना और मसूर की दाल का सेवन
दूसरी बार भोजन करना
किसी को मारना
स्त्री संबंध

मास का सेवन
चुगलिया,निंदा नहीं करनी चाहिए
मिथ्या भाषण व क्रोध का त्याग करना चाहिए
इस व्रत में नमक, तेल व अन्न का सेवन वर्जित है।

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