करवा चौथ की कहानी।karva chauth ki kahani(katha).

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करवा चौथ का व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है करवा चौथ को सबसे बड़ी चौथ माना गया है। इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत करती है और करवा चौथ की कहानी सुनती है। यह व्रत स्त्रियों का सर्वाधिक प्रिय व्रत है इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां पति के स्वास्थ्य, दीर्घायु एवं मंगल कामना करती हैं। कुंवारी कन्याये सुंदर, सुशील और अच्छे वर की प्राप्ति के लिए करवा चौथ का व्रत करती हैं यह व्रत सौभाग्य और शुभ संतान देने वाला है।

करवा चौथ के व्रत को करने वाली स्त्रियां सुबह स्नान आदि के बाद आचमन करके पति, पुत्र आदि के सुख सौभाग्य का संकल्प लेकर यह व्रत करती है करवा चौथ के व्रत में चौथ माता, गणेश जी महाराज, शिव-पार्वती और श्री कार्तिकेय जी के साथ चंद्रमा का भी पूजन किया जाता है और करवा चौथ की कहानी सुनी जाती है। इस दिन करवा चौथ की कहानी या करवा चौथ की कथा सुनने से चौथ माता प्रसन्न होकर व्रत का पूर्ण फल प्रदान करती है।

करवा चौथ को सभी चौथ में से सबसे बड़ी माना जाता है इस दिन करवा चौथ की कथा के साथ बिंदायक जी की कथा भी सुनी जाती है यहां व्रत के दिन सुनी जाने वाली करवा चौथ की कहानी (karva chauth ki kahani) दी गई है तो आइए जानते हैं करवा चौथ व्रत कथा (karva chauth vrat katha)

करवा चौथ की कहानी।karva chauth ki kahani.

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करवा चौथ की कहानी

करवा चौथ की कहानी – एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। सातों भाई अपनी बहन के साथ रहकर खाना खाते थे कार्तिक माह में करवा चौथ आई। भाई अपनी बहन से बोले आ बहन खाना खा लेते हैं। बहन बोली आज तो मेरा करवा चौथ का व्रत है इसलिए चांद देखकर ही खाना खाऊंगी। भाइयों ने सोचा आज तो हमारी बहन भूखी रह जाएगी इसलिए एक भाई दीया(टोर्च) लाया, एक भाई चलनी लेकर टीले पर चढ़ गया और दीया जलाकर चलनी से ढककर चलनी में चांद दिखा दिया। भाई बोले बहन चांद उग गया , अरख दे ले ।

बहन बोली , आओ भाभियों चांद देखकर अरख दे लो । भाभियाँ बोली कि ननद जी अभी तो आपका ही चाँद उगा है । हमारा तो रात को उगेगा । बहन अरख देकर भाइयों के साथ जीमने बैठी । पहले ग्रास में बाल आया , दूसरे में छींक आई और तीसरा ग्रास तोड़ते ही ससुराल से बुलावा आ गया । वो कपड़े निकालने लगी तो सारे कपड़े ही सफेद निकलते । माँ बोली , तेरे भाग्य में जो लिखा है वहीं होगा । माँ ने उसे सफेद कपड़े ही पहना दिये और हाथ में सोने का रुपया दिया और कहा जो तुझे पूरा आशीर्वाद दे , उसे यह सोने का रुपया दे देना और पल्ले को मोड़कर गांठ दे देना ।

रास्ते में सब औरतें ‘भाइयों का सुख देखना’ कि आशीष देती गई लेकिन किसी ने भी सुहाग का आशीष नहीं दिया वो आगे गई तो उसे पूरा आशीर्वाद किसी ने नहीं दिया । एक छोटी – सी ननद पालने में सो रही थी वो बोली , ” सीली हो सपूती हो सात पूत की माँ हो , थारा अमर सुहाग हो । तो” उसने सोने का रुपया ननद को देकर पल्ले के गाँठ बाँध ली । घर में गई तो रोना कूटना लगा था । उसका पति मर चुका था , वो बोली , मैं तो अपने पति को जलाने नहीं दूंगी । मेरे लिए तो अलग झोपड़ी बनवा दो मैं भी इनके साथ जंगल में रहूँगी ।

उसकी सास रोजाना बची-खुची, ठंडी बासी रोटी भेज देती और कहती जा मुर्दा सेवणी को रोटी दे आ। ननद रोज उसको जंगल में ही खाना दे आती । अब गाजती धोरती माही चौथ आई । करवा ले, सात भाइयों की प्यारी करवा ले, दिन में चाँद ऊगानी करवा ले, बहुत भूखी करवा ले । वह बोली माता वो मेरे पिछले जन्म के दुश्मन थे तुझे मेरा सुहाग देना पड़ेगा । मेरे से बड़ी बैशाख की चौथ आएगी उसके पैर पकड़ लेना ।

बैशाख की चौथ आई , उसके पैर पकड़ लिए तो चौथ माता बोली , छोड़ पापिन मेरे पाँव । वो बोली , माता वो मेरे भाई नहीं थे पिछले के जन्म के बैरी , दुश्मन थे । आपको तो मेरा सुहाग देना ही पड़ेगा । मुझसे बड़ी भादवें की चौथ आएगी उसके पाँव मत छोड़ना , अगर उसके पाँव छोड़ दिए तो तुझे कहीं जगह नहीं है । भादवें की चौथ आई ‘ करवा ले, भाइयों की प्यारी करवा ले , दिन में चाँद उगानी करवा ले , बहुत भूखी करवा ले । ‘ उसने माता के पैर पकड़ लिए , तब चौथ माता बोली छोड़ पापिन ! मेरे पैर पकड़ने लायक नहीं है ।

वो बोली कि – हे माता ! वो मेरे भाई नहीं पिछले जन्म के दुश्मन थे । आपको बताना पड़ेगा , मैं क्या करूँ । माता बोली , तुझे इतनी शिक्षा कौन दे गया । माता मुझे किसी ने कुछ नहीं बताया , आप ही बताओ मैं है क्या करूं । तब माता बोली , मेरे से बड़ी करवा चौथ आएगी उसके पाँव मत छोड़ना । वो जो मांगे वो बस सामान मंगा लेना। बेस और सारे सुहाग का सामान मंगा लेना । दूसरे दिन ननद रोटी देने आई तो वो बोली , ननद जी काजल , मेंहदी बिन्दी , रोली , मोली , सारा सुहाग का सामान लाना और बेस भी लाना। ननद ने एक – एक करके सारा सामान ला दिया ।

कार्तिक की करवा चौथ आई , करवा ले करवा ले दिन में चाँद देखनी करवा ले , बहुत भूखी करवा ले । वो बोली, माता वे मेरे पिछले जन्म के दुश्मन थे और ये कहकर उसने माता के पैर पकड़ लिए , छोड़ पापिन मेरे पाँव , तू मेरे पाँव पकड़ने लायक नहीं है । माता आपको मेरा सुहाग देना पड़ेगा । तेरे पास जंगल में सुहाग की क्या चीज है । वो बोली , माता आप मांगो वो सभी है । माता बोली , रोली , मोली , सठेली , गठेली , पताशा , गेहूँ , करवा , जलेबी ला , उसने सभी चीजें निकालकर दे दी ।

माता बोली , तुझे ये ज्ञान कहाँ से आया । हे माता ! मुझे जंगल में ये ज्ञान कौन देगा । मुझे तो सारा ज्ञान आपने ही दिया है । माता ने सारी सुहाग की चीजों को घोलकर छींटा दे दिया तो उसका पति अकड़कर बैठ गया और जाते हुए माता ने झोपड़ी को लात मारी तो महल हो गए । सुबह ननद खाना देने आई तो वो बोली , मेरे भाई – भाभी कहाँ गए । भाभी ने ऊपर से आवाज लगाई , ननदजी आओ । हम तो यहाँ बैठे हैं । ननद ने पूछा , भाभी ये सब कैसे हुआ ।

भाभी बोली , रात में चौथ माता आई थीं वो ही ये कर गई हैं । जाओ ननद ,  माताजी को बोलो कि पुरानी चौथ का उजलवाओं और नई घड़ाओं और हमें गीत गाते लेने आओ । ननद माँ को जाकर बोली , माँ भाभी ने तो भाई को जिन्दा करवा दिया और भाभी बोलती है कि उनको गीत गाते हुए लेने चलो । सासू गीत गाती बहू को लेने गई , बहू सास के पैरों में पड़ी और कहने लगी कि यह तो आपके भाग्य से ही हुआ है , सासू कहने लगी कि नहीं यह तो आपके भाग्य से ही सही हुए हैं ।

सासू बोली , बहू घर चलो और चौथ माता का उजमन करके सास बहू – बेटे को घर लेकर आ गई। जैसे माता ने साहूकार की बेटी को सुहाग दिया वैसे माता सबको देना । करवा चौथ की कहानी कहते को, सुनते को, हुँकारा भरते को सबको देना।

यह थी करवा चौथ की कहानी (करवा चौथ की कथा)। आशा हैं कि आपको करवा चौथ की कहानी पसंद आई होगी धन्यवाद।

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