पुत्रदा एकादशी व्रत कथा। putrada ekadashi vrat katha.

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श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के नाम पर व्रत रख कर पूजा करने का विधान है। पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन करा कर दान दक्षिणा देकर उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए। सारा दिन भगवान के भजन कीर्तन आदि में व्यतीत करें वह पुत्रदा एकादशी व्रत कथा सुने और रात को भगवान की मूर्ति के निकट ही सोए। यदि व्रत रखने वाला व्यक्ति निसंतान है तो उसे शीघ्र ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

पुत्रदा एकादशी का महत्व।

सभी एकादशी व्रतों में पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व माना गया है। मान्यता है कि संतान की प्राप्ति हेतु पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाता है और संतान ज्ञानवान आज्ञाकारी और गुणवान हो इसके लिए माता पुत्रदा एकादशी का व्रत रखती हैं। पुत्र के कल्याण से संबंधित होने के कारण ही इस एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है।

एकादशी व्रत को पूर्ण विधि विधान से करने से मनुष्य की इच्छाएं पूरी होती है और यह व्यक्ति के पापों को नष्ट करने वाली होती है। पुत्रदा एकादशी के दिन व्यक्ति को पूर्ण विधि विधान से व्रत रखना चाहिए और साथ ही पुत्रदा एकादशी व्रत कथा सुनकर व्रत को पूर्ण करना चाहिए।

विधि : जो भी पुत्रदा एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें प्रातः काल स्नान ध्यान और नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ और साफ कपड़े पहनना चाहिए। श्री हरि विष्णु को प्रणाम करके दीप प्रज्वलित करें और व्रत का संकल्प ले। इस दिन पूर्ण विधि-विधान से विष्णु भगवान की पूजा अर्चना करें और पुत्रदा एकादशी व्रत कथा सुने। पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण अगले दिन अर्थात द्वादशी के दिन किया जाता है।

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा। putrada ekadashi vrat katha.

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा। putrada ekadashi vrat katha.
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा।

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा : प्राचीन समय में भद्रावती राज्य में सुकेतुमान नाम के राजा रहा करते थे। राजा की पत्नी का नाम शैव्या था। राजा और रानी को कोई संतान नहीं थी इस कारण वे हमेशा दुखी रहा करते थे। बहुत दिनों से दुखी रहने से राजा के मन में आत्महत्या करने का विचार आया लेकिन राजा ने आत्महत्या को सबसे बड़ा पाप मानकर विचार को त्याग दिया।

एक दिन राजा का मन कामकाज में नहीं लग रहा था तो वह घोड़े पर बैठकर जंगल की ओर चले गए। लेकिन वहां पर भी राजा को बेचैनी होने लगी और मन में बुरे विचार आने लगे इससे परेशान होकर राजा एक तालाब के किनारे बैठ गया वहां पर कुछ ऋषि-मुनियों के आश्रम बने हुए थे। राजा एक ऋषि के आश्रम में गया और ऋषि को हाथ जोड़कर प्रणाम किया।

ऋषियो ने राजा के आने का कारण पूछा और अपनी इच्छा बताने को कहा। राजा ने कहां की है मुनिवर मेरे कोई संतान नहीं है इस कारण में हमेशा दुखी रहता हूं कृपा करके मुझे कोई संतान प्राप्ति का मार्ग बताएं। तब उन ऋषियो ने राजा को पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने को कहा और पूर्ण विधि-विधान से व्रत का पालन करने और पुत्रदा एकादशी व्रत कथा सुनने को कहा।

राजा ने वैसा ही किया और ऋषि मुनियों के कहे अनुसार पूर्ण विधि-विधान से पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा और पुत्रदा एकादशी व्रत कथा सुनी। अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण किया व्रत के प्रभाव से कुछ समय पश्चात रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने पश्चात उन्हें एक सुंदर और तेजस्वी पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। वह राजकुमार अत्यंत शोर वीर साहसी तेजस्वी और गुणवान हुआ।

पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत रखना चाहिए जो भी पुत्रदा एकादशी के महात्म्य को पढता और सुनता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

यह थी पुत्रदा एकादशी व्रत कथा हम आशा करते हैं कि आपको पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (putrada ekadashi vrat katha) की जानकारी पसंद आई होगी धन्यवाद।

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