बछ बारस माता की कहानी : बछ बारस की कहानी व बछ बारस व्रत उद्यापन।bach baras ki kahani(katha).

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बछ बारस का व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी और कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को किया जाता है और बछ बारस की कहानी सुनी जाती हैं। इसे गोवत्स द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत पुत्रवती स्त्रिया पुत्र की मंगल कामना के लिए करती है। गोवत्स द्वादशी या बछ बारस के दिन गाय और बछड़े की पूजा की जाती है।

बछ बारस के दिन गीली मिट्टी से गाय, बछड़ा, बाघ की मूर्तियां बना कर पाटे पर रखकर अंकुरित मूंग, मोठ और चने चढ़ाए जाते हैं इस दिन गेहूं जो और गाय के दूध से बनी वस्तुओं का प्रयोग नहीं किया जाता है। इस दिन निराहार रहकर व्रत करते हैं और बछ बारस की कहानी (बछ बारस की कथा) सुनते हैं। तो आइए जानते हैं बछ बारस की कहानी (बछ बारस व्रत कथा) ।

बछ बारस की कहानी। bach baras ki kahani.

बछ बारस माता की कहानी : बछ बारस की कहानी व बछ बारस व्रत उद्यापन।bach baras ki kahani(katha)
बछ बारस की कहानी। bach baras ki kahani

बछ बारस की कहानी एक साहूकार था जिसके सात बेटे थे। साहूकार ने एक तालाब बनवाया लेकिन बारह वर्षों तक भी वह तालाब नहीं भरा। साहूकार ने कुछ विद्वान पंडितों से पूछा कि इतने दिन हो गए लेकिन मेरा तालाब क्यों नहीं भरता है? तब पंडितों ने कहा कि तुम्हें तुम्हारे बड़े बेटे की या तुम्हारे बड़े पोते की बलि देना होगा तब ही यह तालाब भरेगा।

साहूकार ने पंडित की बात मानकर अपनी बड़ी बहू को पीहर भेज दिया। साहूकार की बहू हमेशा बछ बारस का व्रत कर बछ बारस की कहानी सुनती थी। बड़ी बहू के पीहर जाने के बाद साहूकार ने बड़े पोते की बलि चढ़ा दी। तब घनघोर मेघ बरसने लगे और तालाब भर गया। जब साहूकार तालाब की पूजा करने जाने लगा तो लोग भी उसके साथ तालाब की पूजा करने जाने लगे। जाते समय साहूकार ने अपनी दासी से कहा कि गेऊंला धानुला (चने, मोठ) बना लेना।

साहूकार की गाय के बच्चे का नाम भी गीऊंला धानुला था। तब उस दासी ने गाय के बच्चे को भी गीऊंला धानुला समझकर पका दिया। साहूकार व साहूकारनी गाजे-बाजे के साथ अपने बेटे और बहू के साथ तालाब को पूजने लगे। साहूकार के पूजन कर लेने के पश्चात वहां आए लोग भी तालाब का पूजन करने लगे। उसी वक्त जिस पोते की बलि दी गई थी वह गोबर में लिपटा हुआ मिला और आकर कहने लगा कि मैं भी तालाब में कूदूंगा।

उस बच्चे को देखकर साहूकार ने कहा कि मैंने तो इस की बलि दे दी थी जिससे ही तालाब भरा था। लेकिन गाय माता ने हमारी लाज रख ली और हमें हमारा पोता वापस लौटा दिया। अपने बेटे को देखकर बहू भी बहुत खुश हुई। तब साहूकार दौड़ा-दौड़ा घर वापस आया और अपनी दासी से कहा कि गाय का बच्चा कहां है। तब दासी बोली कि आपने गेऊंला धनुला को पकाने के लिए कहा था तो इसलिए मैंने उसे पका लिया।

यह सुनते ही साहूकार क्रोध से तिलमिला उठा और अपनी दासी से कहने लगा। अरे पापिनी तूने यह क्या अनर्थ कर दिया एक पाप उतार कर आए हैं उससे पहले ही तूने दूसरा पाप हमारे लगा दिया और साहूकार सिर पकड़ कर बैठ गया। साहूकार और साहूकारनी सोचने लगे कि अब गाय आएगी तो उसको क्या जवाब देंगे। साहूकार ने एक हांडी में गाय के बच्चे को डालकर खड्डे में दबा दिया।

जब शाम को जंगल में से गाय आई तो अपने बच्चे को वहां नहीं देख कर चिल्लाने लगी और खड्डे में दबी हुई हंडिया को खोदने लगी। जब गाय ने हांडी को खोदकर निकाल लिया तो उसमें से गाय का बछड़ा निकल आया। जब साहूकार को पता चला तो वह भी बछड़े को देखने के लिए गया तब उसने देखा कि बछड़ा तो गाय का दूध पीने में व्यस्त था। तब साहूकार ने पूरे गांव में ढिंढोरा पिटवा दिया कि सभी स्त्रियों को बछ बारस का व्रत करना चाहिए।

हे बछबारस माता जैसे साहूकार की बहू को दिया वैसे हम सबको देना बछ बारस की कहानी सुनने वाले को, बछ बारस की कहानी कहने वाले को और सभी को देना।

यह थी बछ बारस की कहानी या बछ बारस की कथा(bach baras ki katha) हम आशा करते हैं कि आपको बछ बारस की कहानी पसंद आई होगी धन्यवाद।

बछ बारस का उद्यापन। bach baras ka udyapan.

बछ बारस का हर वर्ष लगातार व्रत करने वाली महिलाएं उद्यापन करती हैं। कहा जाता है कि विवाहिताओं को उद्यापन करना जरूरी होता है। जिस घर मे लड़का हो या लड़के की शादी हो उस वर्ष बछ बारस का उद्यापन किया जाता है उद्यापन के दिन भी सारी पूजा हर वर्ष की तरह ही की जाती है। बछ बारस का उद्यापन निम्न प्रकार से किया जाता है –

बछ बारस उद्यापन – यदि बछबारस का उद्यापन करना हो तो मक्का , बाजरा , बेसन , तेल व भैंस के दूध , घी व दही से भोजन करना चाहिए । तेरह जगह खाना या जो भी बनाया हो थोड़ा – थोड़ा रखकर हाथ फैर लेवें और तेरह औरतों को खिला देवें । और उस हाथ फैरते हुए खाने को तेरह औरतों में एक – एक हिस्सा खाने को परोस दें । इस दिन गाय का दूध या गाय के दूध से बनी वस्तुओं का प्रयोग नहीं किया जाता है।

एक थाली में खाने का सामान रखो , उस पर बेस और शृंगार का सब सामान मेंहदी , चूड़ा और काजल , रिबन , बिछिया व ग्यारह या इक्कीस रुपये रखकर हाथ फेरकर सास नणद या जीठानी को दे देवें । एक थाली में खाना देवर या जेठुते को खिला देवें व पाँच रुपये व नारियल दे देवें । खाने वाली स्त्रियों को एक – एक प्लेट या प्याला देना चाहिये ।

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