सातुड़ी तीज की कहानी(कजली तीज की कहानी) – 2 ,satudi teej ki kahani(kajli teej ki kahani).
सातुड़ी तीज की कहानी – एक साहूकार था । उसके सात बेटे थे । सत्तू तीज का दिन आया । छ : बेटों की बहुओं के पीहर से तो सत्तू के पींडे आये । सातवीं अर्थात् सबसे छोटी बहू के पीहर नहीं था सो उसके पिंडा नहीं आया । उसने अपने पति से कहा , ” मैंने सातुड़ी तीज का व्रत किया है , मुझे पिंडा लाकर दो , सबके तो पीहर से आया है । ” साहूकार गरीब था । शेष सभी भाईयों के पास धन था । अत : अब साहूकार का लड़का हलवाई की दुकान में चोरी करने घुसा ।
वहाँ चने की दाल पड़ी थी । भट्टी में आँच भी थी । उसने दाल को भट्टी पर सेका । वहीं चक्की भी पड़ी थी । अब वह दाल को पीसने लगा । चक्की चलने की आवाज से दुकान का मालिक जाग गया और उसे पकड़ लिया । तब साहूकार के बेटे ने कहा कि मैं कोई चोर नहीं हूँ । आज मेरी पत्नी ने सातुड़ी तीज का व्रत रखा है । उसके पीहर नहीं है इसलिए उसके पिंडा नहीं आया और मैं गरीब हूँ । केवल सवा सेर सत्तू का पिंडा बनाकर ले जाऊँगा । फिर तुम चाहे मुझे मारो या दरबार में पकड़वा देना ।
इस पर दुकान के मालिक ने कहा कि तुम घर जाओ । हम सुबह पिंडा भिजवा देंगे । तुम्हारी पत्नी को हमने बेटी मान लिया है । दूसरे दिन सवा सेर का पींडा और वस्त्र आदि दुकान के मालिक न साहूकार के घर भिजवा दिये । उसकी सभी जेठानियाँ देखकर ईर्ष्या करने लगी कि उसके तो सवा सेर का पिंडा और बहुमूल्य वस्त्र आदि आए हैं।
सास ने पूछा कि तू तो कहती थी कि मेरे पीहर नहीं है तो फिर यह इतना सब कहां से आया बहू ने उत्तर दिया कि यह मेरे धर्म के माता-पिता ने भेजा है। उसको तीज माता ने पीहर दिया जैसा सबको देना। सातुड़ी तीज की कहानी कहने वाले को और सातुड़ी तीज की कहानी सुनने वाले को सभी के दुखों को दूर करना।
यह थी कजली तीज की कहानी या सातुड़ी तीज की कहानी हम आशा करते हैं कि आपको सातुड़ी तीज की कहानी(satu teej ki kahani)पसंद आई होगी धन्यवाद।