सोमवार व्रत कथा। somwar vrat katha.

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यह भगवान शिव को समर्पित वार है इस दिन भगवान शिव व पार्वती का व्रत करके सोमवार व्रत कथा सुनी जाती है तथा उनकी  पूजा अर्चना की जाती है।
सोमवार के व्रत  तीन प्रकार के होते हैं साधारण प्रति सोमवार, सौम्य प्रदोष और सोलह सोमवार व्रत।

सोमवार का व्रत सूर्योदय से दिन के तीसरे पहर तक का होता है। व्रत में फलाहार या प्परायण का कोई खास नियम नहीं है किंतु यह आवश्यक है कि दिन रात में केवल एक समय भोजन करें।
सोमवार के व्रत में शिव जी तथा पार्वती का पूजन करना चाहिए। शिव पूजन के पश्चात सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए।  सोमवार व्रत कथा , प्रदोष व्रत कथा, सोलह सोमवार व्रत कथा तीनों अलग-अलग है।

सोमवार का दिन सप्ताह का पहला दिन होता है। इस दिन व्रत कर सोमवार व्रत कथा का सुमिरन करने का विशेष महत्व है। इससे भगवान शिव पार्वती की कृपा प्राप्त होती है यहां सोमवार के दिन सुनी जाने वाली सोमवार की कहानी (somwar ki kahani) या सोमवार व्रत (somwar vrat katha) कथा दी गई है –

सोमवार व्रत कथा। somwar vrat katha.

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सोमवार की व्रत कथा (somvar ki vrat katha)
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सोमवार व्रत कथा – एक नगर में बहुत धनवान साहूकार रहता था। उसके घर में धन की कमी नहीं थी। परंतु वह बहुत दुखी था क्योंकि उसके कोई पुत्र नहीं था। वह इसी चिंता में दिन रात दुखी रहता था। पुत्र की कामना के लिए वह प्रत्येक सोमवार शिव जी का व्रत और पूजन किया करता था। तथा सायं काल मंदिर जाकर शिव जी के सामने दीपक जलाया करता था।

उसके इस भक्ति भाव को देखकर एक समय माता पार्वती ने शिवजी महाराज से कहा हे नाथ! यह साहूकार आपका अनन्य भक्त है, सदैव आपका व्रत और पूजन बड़ी श्रद्धा से करता है।आपको इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए। शिव जी ने कहा हे पार्वती!यह संसार कर्म क्षेत्र हैं।  जैसे किसान खेत में जैसा बीज बोता है वैसी ही फसल काटता है। इसी तरह मनुष्य संसार में जैसा कर्म करते हैं वैसा ही फल भोगते हैं।

माता पार्वती ने अत्यंत आग्रह से कहा हे प्रभु! यह आपका अनन्य भक्त हैं और अगर इसको किसी प्रकार का दुख है तो उसे आपको अवश्य दूर करना चाहिए।
आप तो सदैव अपने भक्तों पर दयालु होते हैं और उनके दुखों को दूर करते हैं। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो मनुष्य आपका पूजन तथा व्रत क्यों करेंगे?

माता पार्वती का ऐसा आग्रह देख शिवजी कहने लगे-
हे पार्वती इसके कोई पुत्र नहीं है इसी चिंता में यह अति दुखी रहता है। इसके भाग्य में पुत्र न होने पर भी मैं इसको पुत्र की प्राप्ति कर देता हूं। परंतु वह पुत्र केवल 12 वर्ष तक जीवित रहेगा। इसके पश्चात वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। इससे अधिक में इसके लिए नहीं कर सकता।

माता पार्वती और भगवान शिव का यह वार्तालाप साहूकार सुन रहा था। इससे साहूकार को न तो प्रसन्नता हुई और न ही दुख हुआ। वह पूर्व की तरह शिवजी का व्रत और पूजन करता रहा। कुछ समय बाद साहूकार की स्त्री गर्भवती हुई और दसवें महीने में उसके गर्भ से अति सुंदर पुत्र हुआ। साहूकार के घर में बहुत खुशी मनाई गई।

परंतु साहूकार तो यह जानता था कि उसकी केवल 12 वर्ष की आयु है, इसलिए उसने अधिक प्रसन्नता प्रकट नहीं की और न ही किसी को यह भेद बताया।
जब वह बालक 11 वर्ष का हो गया तो बालक की माता ने उसके पिता से उसका विवाह करने के लिए कहा। “साहूकार ने कहा अभी मैं इसका विवाह नहीं करूंगा मैं अपने पुत्र को काशी पढ़ने के लिए भेजूंगा।”

साहूकार ने बालक के मामा को बुलाकर उसको बहुत सा धन देकर कहा तुम इस बालक को काशी पढ़ने के लिए ले जाओ और रास्ते में जिस स्थान पर पर जाओ यज्ञ तथा ब्राह्मण को भोजन कराते व दक्षिणा देते जाना।
दोनों मामा भांजे यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते तथा दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े।

रास्ते में उनको एक शहर पड़ा उस शहर के राजा की कन्या का विवाह था। परंतु जो राजकुमार विवाह करने के लिए आया था वह एक आंख से अंधा था। उसके पिता को इस बात की बड़ी चिंता थी कि कही राजकुमार को देखकर राजकुमारी तथा उसके माता-पिता विवाह में किसी प्रकार की अड़चन पैदा ना कर दें।

जब उसने अति सुंदर सेठ के  लड़के को देखा तो मन में विचार किया कि क्यों न द्वाराचार के समय इस लड़के से वर का काम चलाया जाए। ऐसा मन में विचार कर राजकुमार के पिता ने उस लड़के और उसके मामा से बात की। वे राजी हो गए। फिर उस साहूकार के लड़के को वर के कपड़े पहनाकर तथा घोड़ी पर बैठा कर कन्या के द्वार पर ले गए। सभी कार्य प्रसन्नता से पूर्ण हो गया।

राजकुमार के पिता ने सोचा कि यदि विवाह का कार्य भी उसी लड़के से करा लिया जाए तो क्या बुराई है। ऐसा विचार कर लड़के  और उसके मामा से कहा यदि आप फेरों और कन्यादान के काम को भी करा दें तो आपकी बड़ी कृपा होगी। मैं इसके बदले आपको बहुत सारा धन दूंगा। दोनों ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया और विवाह का कार्य भी बहुत अच्छी तरह से संपन्न हो गया।

सेठ का पुत्र जिस समय जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुंदड़ी के पल्ले पर लिख दिया कि तेरा विवाह मेरे साथ हुआ परंतु जिस राजकुमार के साथ तुम को भेजेंगे वह एक आंख से अंधा है। मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूं। सेठ की लड़के  के जाने के पश्चात राजकुमारी ने जब अपनी चुनरी पर ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने अंधे राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया।

उसने अपने माता-पिता को सारी बात बता दी और कहा कि यह मेरा पति नहीं है। मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ है। जिसके साथ मेरा विवाह हुआ है वह तो काशी जी पढ़ने गया है। राजकुमारी के माता-पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं किया और बारात वापस चली गई। उधर सेठ का लड़का और उसका मामा काशी पहुंच गए।

वहां जाकर उन्होंने यज्ञ कराना और लड़के ने पढ़ना शुरू किया। जिस दिन लड़के की आयु 12 वर्ष की हुई उस दिन उन्होंने यज्ञ रचा रखा था। लड़के ने अपने मामा से कहा “मामा जी आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है” मामा ने कहा “अंदर जाकर सो जाओ”।
लड़का अंदर जाकर सो गया और थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गए।

जब उसके मामा ने आकर देखा कि उसका भांजा मृत पड़ा है तो उसको बड़ा दुख हुआ उसने सोचा कि अगर में भी रोना पीटना मचा दूंगा तो यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा। अतः उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के जाने के बाद रोना पीटना शुरू कर दिया। संयोगवश उसी समय शिव पार्वती उधर से जा रहे थे।

जब उन्होंने जोर जोर से रोने की आवाज सुनी तो पार्वती जी कहने लगी हे नाथ कोई दुखिया रो रहा है ,इसके कष्ट को दूर कीजिए।
जब शिव पार्वती वहां पहुंची तो उन्होंने पाया कि वहां एक लड़का है जो आपके वरदान से उत्पन्न हुआ था।
शिव जी ने कहा हे पार्वती इसकी आयु इतनी ही थी वह यह भोग चुका है।

पार्वती जी ने कहा हे नाथ!इस बालक को और आयु दो नहीं तो इसके माता-पिता तड़प तड़प कर मर जाएंगे। माता पार्वती के बार-बार आग्रह करने पर शिवजी ने उसको जीवन का वरदान दिया। शिव जी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया शिवजी और पार्वती कैलाश पर्वत को चले गए।

शिक्षा पूर्ण होने पर वह लड़का और उसके मामा उसी प्रकार यज्ञ करते ब्राह्मणों को भोजन कराते तथा दक्षिणा देते अपने घर की ओर चल पड़े। रास्ते में उसी शहर में आए जहां उस लड़के का वहां की राजकुमारी से विवाह हुआ था। वहां जाकर उन्होंने यज्ञ प्रारंभ कर दिया। उस लड़के के ससुर वहां के राजा ने उसको पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी बहुत आवभगत की।

बहुत से दास दासियों  सहित आदर पूर्वक अपनी राजकुमारी और जमाई को विदा किया।
वहां से विदा होकर सेठ का लड़का अपने मामा व अपनी पत्नी सहित उसी तरह यज्ञ कराते हुए ब्राह्मणों को भोज कराते हुए दक्षिणा देते हुए अपने घर की ओर गए।

घर जाकर लड़के ने अपने माता-पिता को सारी बात बताई। इससे वे बहुत प्रसन्न हुए।
है! शिव पार्वती जैसे आपने सेठ व उसके परिवार को दिया है वैसा सभी को देना। सोमवार व्रत कथा , कहने, सुनने, और हुंकारा देने वाले सबको देना।

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जल अर्पण का महत्व – सनातन धर्म में शिवलिंग पर जल अर्पण करने का विशेष महत्व माना गया है। जब समुंद्र मंथन से कालकूट विष निकला तो उसकी ऊर्जा से देवता और राक्षस जलने लगे और चारों तरफ हाहाकार मच गया। तब भगवान शिव ने विष को अपने कंठ में उतार लिया था,

अत्यधिक ऊर्जा के विष का पान करने से शिवजी का कंठ नीला पड़ गया तब से भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है। विष की उष्णता को शांत करने के लिए समस्त देवी देवताओं ने भगवान शिव पर जल अर्पण किया, तभी से जल अर्पण की परंपरा है। इसी परंपरा के अनुरूप लोग बड़े ही कर्तज्ञ और प्रेम भाव से शिवजी पर जल अर्पण करते हैं। इससे मनुष्य को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है

आशा है कि आपको इस पोस्ट की जानकारी पसंद आई होगी धन्यवाद।

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